रश्मिता पात्रा – अब इसे खिलाड़ी का दुर्भाग्य कहेंगे या देश का….
जिस देश में इतने काबिल खिलाड़ी होना उर वो देश खेल में पीछे हो तो इसमें देश का ही दुर्भाग्य है. आज भारत में जितना प्रोत्साहन और पैसा क्रिकेट में लग रहा है उतना किसी और गेम में नहीं लग रहा है.
बाकी खेल के खिलाड़ी वक्त के हाथों मजबूर होकर अपना जीवन यापन के लिए ऐसे काम कर रहे हैं, जो इन्हें शोभा नहीं देता.
फुटबॉल की चैम्पियन –
हमारे खेल सिस्टम की गलतियों का खामियाज़ा न जाने कितने प्रतिभाशाली लोगों को भुगतना पड़ता है.
सिस्टम और सरकार की लापरवाही के चलते न जाने कितने ही प्रतिभाशाली खिलाड़ी दर दर की ठोकरें खा रहे होते हैं. उन्हें कभी सपने म एन भी इस बात का अंदाजा नहीं होता कि एक दिन वो अपने ही गेम के कारण कहीं के नहीं रह जाएंगे और किस्मत के साथ ही गेम के आलाकमान भी उनका साथ नहीं देंगे.
वैसे तो ऐसे बहुत से खिलाड़ी हैं, जो आज गरीबी में जीवन बिता रहे हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी स्टार फुटबॉल की चैम्पियन की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आपकी ऑंखें भी भर आएंगी.
इस खिलाड़ी का नाम है रश्मिता पात्रा. कभी भारतीय फुटबॉल टीम की लीडिंग डिफेंडर रहीं रश्मिता पात्रा आज अपना परिवार चलाने के लिए पान बेचने पर मजबूर हैं.
वो एक छोटी सी दुकान लगती हैं और लोगों को पान लगाकर खिलाती हैं. ओडिषा की इस खिलाड़ी ने कई अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मुक़ाबलों में हिस्सी लिया है. ग़रीबी ने उन्हें फुटबॉल छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. अपने गांव वापस जाकर उन्होंने विवाह कर लिया और आज एक पान दुकान चला रही हैं.
रश्मिता पात्रा वह महिला है, जिसने 12 साल की उम्र में प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन किया और अंतरराष्ट्रीय मंच तक देश का परचम लहराया.
उन्होंने सालों तक न सिर्फ़ भारत का फुटबॉल में बतौर डिफेंडर प्रतिनिधित्व किया, बल्कि साल 2011 में भारतीय राष्ट्रीय टीम को बहरीन के खिलाफ एशिया कप के क्वालिफाइंग टूर्नामेंट में जीत भी दिलाई.
इस प्रतिभावान खिलाड़ी की उपलब्धियां यहीं ख़त्म नहीं होतीं. रश्मिता पात्रा ने 2008 में मलेशिया में हुए अंडर 16 एशियन फुटबॉल कंफेडेरशन कप में हिस्सा लिया और 2010 में उनके शानदार प्रदर्शन की बदौलत ओडिशा टीम ने राष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिता को जीता भी.
रश्मिता पात्रा जूनियर और सीनियर टीम दोनों में शानदार प्रदर्शन कर चुकी हैं, लेकिन वो कहते हैं न कि अगर किस्मत साथ न दे तो काबिलियत भी कुछ नहीं कर पाती. शायद ये कहावत रश्मिता पात्रा पर सटीक बैठ गई.
१२ साल की उम्र से जिस खेल को अपना सबकुछ दे दिया आज उसी खेल ने २५ साल की उम्र में सपने पर पानी फेर दिया और गाँव में एक छोटी सी दुकान करने के लिए बाधित कर दिया. २१ साल में परिवार वालों ने रश्मिता पात्रा की शादी कर दी. गरीब होने के कारण रश्मिता को आज पान की दुकान खोलकर अपने पति की मदद करनी पड़ रही है. रश्मिता पात्रा के सपने कुछ इस कदर टूटे हैं कि उसकी चोट की आवाज़ से रश्मिता का जीवन ही बदल गया.
इस तरह की कहानियाँ अक्सर खिलाड़ियों का मनोबल गिरा देती हैं. सरकार और प्रशासन को इस तरह के खिलाड़ियों की मदद करनी चाहिए ताकि देश को और भी स्टार खिलाड़ी मिल सकें.
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