अभी कुछ ही वक्त पहले पूरे दुनिया पर फीफा वर्ल्ड कप फुटबॉल टूर्नामेंट का खुमार सर चढ़ कर बोल रहा था।
हमारे देश में भी इस टूर्नामेंट को लेकर दीवानगी कुछ कम नहीं थी लेकिन हमारा देश इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेता, ये भी एक बड़ा सवाल है जो अक्सर लोगों के मन में कौंधता है।
फुटबॉल टूर्नामेंट –
दरअसल, अगर इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए इतिहास के पन्नों को खंगाले तो पता चलता है कि इसके पीछे एक बड़ी ही अजीब कहानी है, जिसे शायद कम ही लोग जानते हैं।
असल में आज़ादी के बाद 1950 में भारत ने फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई किया था लेकिन प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया था। फीफा के इतिहास में ये पहला और इकलौता मौका था जब कोई टीम सलेक्ट होने के बाद प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए नहीं गई थी।
क्वालिफाई होने से उत्साहित टीम पूरे जोश के साथ प्रैक्टिस कर रही थी लेकिन ऐड मूमेंट पर टीम का नाम वापिस ले लिया गया जिससे ना केवल टीम हताश हुई बल्कि उनका मनोबल कुछ ऐसे टूटा कि वो दोबारा कभी वर्ल्ड कप के लिए क्वालिफाई ही नहीं कर पाई।
आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन ये वो समय था जब इंडिया फुटबॉल टीम की गिनती वर्ल्ड की बेस्ट टीमों में की जाती थी।
टीम इंडिया का नाम वापिस लेने के बारे में ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन( जो उस वक्त पर फुटबॉल से जुड़ी एक सरकारी संस्था हुआ करती थी) ने अलग-अलग तर्क दिए, पहले ब्राजील में आयोजकों को ये बात कही गयी कि भारतीय टीम का नाम इसलिए वापिस लिया जा रहा है क्योकि सरकार के पास टीम को ब्राजील भेजने के पैसे नहीं है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इस पर आयोजकों ने टीम की यात्रा और ठहरने का पूरा खर्चा उठाने की बात कही लेकिन सरकार ने ये प्रस्ताव भी ठुकरा दिया।
कहा तो ये भी जाता है कि मीडिया और जनता में गुस्सा ना भड़के इसलिए ये कारण सबसे छिपा लिया गया।
इसके बाद एक नईं वजह के तौर पर ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने कहा कि फीफा ने खिलाड़ियों के नंगे पांव फुटबॉल टूर्नामेंट खेलने पर पाबंदी लगा दी है और भारतीय खिलाड़ियों ने नंगे पांव ही प्रैक्टिस की है इसलिए उन्हे वहां नहीं भेजा जा सकता।
हालांकि तब के फुटबॉल कैप्टन शैलेंद्र नाथ मन्ना ने इस बात को सिरे से नकार दिया था।
अगर इस बात के असल कारण पर गौर करें तो कहा जाता है कि उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इसके पीछे की असल वजह थी। टीम इंडिया को फुटबॉल वर्ल्ड कप में ना भेजने का फैसला उन्ही का था।
दरअसल, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनका परिवार शाही सुख-सुविधाओं से युक्त ज़िदंगी जिया करते थे, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कपड़े भी धुलने स्पेशल प्लेन से विदेश भेजा जाया करते थे और इसलिए उन्होने अपनी निजी सुख-सुविधाओं को सर्वोपरि रखते हुए टीम का मनोबल तोड़ दिया और इसके बाद भी कभी टीम को दोबारा वर्ल्ड कप में भेजने का प्रयास नहीं किया।
इसे नेहरू सरकार की बड़ी असफलता के तौर पर गिना जाता है।
फुटबॉल टूर्नामेंट – इन बातों में कितनी सच्चाई है और कितनी नहीं, ये नहीं कहा जाता है लेकिन अगर इतिहास के पन्नों को खंगाले तो जो भी जानकारी मिलती हैं ये उसका सार है।
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