1953 में जनसंघ का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन कानपुर में हुआ था.
जी हाँ, वही जनसंघ जो आज बीजेपी बनकर पूरे देश में राज कर रही है. इसी अधिवेशन में डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने देश को जम्मू-कश्मीर के बारे में यह तेजस्वी नारा दिया- ” एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान – नहीं चलेंगे नहीं चलेंगे “.
इस वीर नेता ने यह नारा तब इसलिए दिया था क्योकि तब कश्मीर के अन्दर अलग रंग का झंडा लहराता था. कश्मीर का संविधान ही अलग था और तो और सबसे बड़ा मजाक यह था कि वहां अन्य राज्य के भारतीयों को जाने के लिए वीजा जैसा परमिट भी लेना होता था.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने तय किया था कि वह पूरे देश में घूमकर जनता का समर्थन लेंगे और जनता की मदद से धारा 370 को हटाने का प्रयत्न करेंगे.
क्या था श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सपना
तब जम्मू-कश्मीर का मुख्यमन्त्री प्रधानमन्त्री बोला जाता था. उसे वजीरे-आजम बोलते थे. संसद के अन्दर भाषण में डॉ॰ मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की जोरदार वकालत की.
अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में बोलते हुए इन्होनें कहा था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा.
ज्ञात हो कि उस समय देश का प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे. श्यामा प्रसाद से इनको कड़ी टक्कर मिल रही थी. नेहरू जल रहे थे क्योकि प्रसाद जी का रुतबा अब तेजी से बढ़ रहा था. अपने संकल्प को पूरा करने के लिये श्यामा प्रसाद जी 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े थे.
जब श्यामा प्रसाद को गिरफ्तार किया गया
यह बातें 1953 की हैं तब जम्मू-कश्मीर में घुसने के लिए पंजाब के रावी नदी से जाया जाता था. प्रसाद जी बिना परमिट के रावी नदी पर पहुँचते हैं और जम्मू कश्मीर में घुसते ही जम्मू पुलिस उनको गिरफ्तार कर लेती है. इनको जेल में डाल दिया जाता है. जब तब जनसंघ के लोग इनको जेल से छुड़ाने आते हैं तब तक रहस्यमयी स्थितियों में इनकी मौत हो चुकी होती है.
जेल के अन्दर मौत
जेल के अन्दर कौन इस हिन्दू नेता की हत्या करता है यह आज भी रहस्य बना हुआ है. पहली बड़ी बात यह है कि इतने बड़े नेता को एक जर्जर इमारत में क्यों रखा गया था? आखिरकार नेहरू इनके लिए एक सही जगह की व्यवस्था नहीं करा पा रहे थे? जब कैद के दौरान इनकी तबियत खराब हुई तो अगले 60 दिन तक इनको क्यों अस्पताल नहीं ले जाया गया? क्या इनको कोई जहर दिया गया था ? शायद हाँ एक ऐसा जहर जो धीरे-धीरे इनको मार रहा था. और 60 दिन बाद उसका असर शरीर से खत्म हो जाता है जब व्यक्ति मर जाता है.
नेहरू को तब सब ख़बरें मिल रही थी. तब के कश्मीर के वजीरे आजम से नेहरू ने आखिर क्यों बात नहीं की थीं. जब इनको अस्पताल में भर्ती किया तो तब तक भारत का एक हिन्दू नेता मार दिया गया था.
सबसे बड़ा सवाल और उठ जाएगा पर्दा
मुखर्जी की मां जोगमाया देवी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मामले की जांच की मांग की.
लेकिन कोई जांच कमेटी नहीं बनाई गयी. तो अब यह सवाल किससे किया जाए कि आखिर क्यों नेहरु ने तब जाँच नहीं कराई थी?
किसके कहने पर इस हत्या को मौत बना दिया गया था? अब शायद आगे कहने को कुछ बचता नहीं है क्योकि सब साफ़-साफ़ नजर आता है कि इस पूरे घटनाक्रम में किसकी क्या भूमिका रही थी. बस मज़बूरी के कारण किसी का नाम नहीं लिया जा सकता है.
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