पीरियड से हर लड़की को गुज़रना पड़ता है। इस दौरान स्त्री के शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं। महिलाओं के शरीर में जब अंडाणु टूटते हैं तो उसमें जमा खून और टिष्यूज़ वजाइना के ज़रिए शरीर के बाहर निकलते हैं। इन प्राकृतिक प्रक्रिया को पीरियड कहते हैं।
देश के कई हिस्सों में पीरियड को लेकर कई तरह की परंपराएं प्रचलित हैं। जब सैनेटिरी पैड्स का प्रचलन नहीं था तो महिलाओं को खुले में खून बहने के लिए मजबूरन रहना पड़ता था। इस दौरान उन्हें कुछ राहत देने के लिए कुछ रस्में शुरु की गई जिससे उन दिनों में उनके शरीर को थोड़ा आराम मिल सके।
आज भी देश के कुछ पिछड़े इलाकों में ये परंपराएं प्रचलित हैं।
कर्नाटक
पहले पीरियड के दौरान कर्नाटक में घर की औरतें लड़की की आरती उतारती हैं और गाने गाती हैं। इसके बाद लड़की को तिल और गुड़ से बनी डिश चिगली उंडे खिलाई जाती है। कहते हैं कि इसे खाने से खून का बहाव बिना किसी रुकावट के होता है।
तमिलनाडु
यहां पर पहले पीरियड को बड़े स्तर पर पूरे ठाट-बाट के साथ मनाया जाता है। इस परंपरा का नाम ‘मंजल निरट्टू विज्हा’ है। ये रस्म किसी शादी के समारोह से कम नहीं होती है। इसमें लड़की को सिल्क की साड़ी पहनाई जाती
असम
इस राज्य में पहले पीरियड की परंपरा को तुलोनी बिया कहते हैं। इस दौरान लड़की अपने परिवार से अलग एक कमरे में रहती है। यहां पर पुरुषों का प्रवेश वर्जित होता है। पुरुष चार दिन तक उस कमरे में नहीं जा सकते और ना ही उस लड़की का चेहरा देख सकते हैं। दो जोड़ा छाली को लाल कपड़े में बांधकर पड़ोसी के यहां रख दिया जाता है। सात विवाहित महिलाओं को नहलाया जाता है। फिर पड़ोसी के घर में रखी छाली की पूजा करती हैं। लड़की को दुल्हन की तरह गहने और जोड़े पहनाकर सजाया जाता है।
केरल
केरल में सबसे ज्यादा शिक्षित लोग रहते हैं लेकिन फिर भी यहां पर पुरानी पंरपराओं को माना जाता है। केरल में पहले पीरियड के शुरुआती तीन दिनों तक लड़की को सबसे अलग रहना पड़ता है। उसे एक ऐसे कमरे में रहना पड़ता है जहां एक दीया जल रहा हो। उस दीये के पास पीतल के एक बर्तन में नारियल के फूल रखे जाते हैं। माना जाता है कि इस फूल में जितनी कलियां खिलेंगीं लड़की को उतने बच्चे होंगें।
सुनने में काफी अजीब लगता है कि आज के आधुनिक ज़माने में भी पहले पीरियड को लेकर लोग इस तरह की पुरानी परंपराओं का पालन कर रहे हैं। इन परंपराओं के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है बल्कि ये केवल लोगों का अंधविश्वास और परंपरा को मानने का प्रण है।
पीरयिड्स एक शारीरिक क्रिया है जिसका परंपराओं और नियमों से कोई लेना-देना नहीं है। देखा जाए तो पहले पीरियड के दौरान लड़कियों को वैसे ही अत्यंत पीड़ा से गुज़रना पड़ता है, उस पर इन परंपराओं का पालन करना और भी ज्यादा कष्टदायक हो जाता है।
देश के कई गांवों में तो पहले पीरियड को लेकर कई दर्दभरी और कष्टदायक परंपराएं प्रचलित हैं।
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