अमेरिका दुनिया में हमेशा ही खुद को एक टेकेदार के रूप में समझता आया हैं, और आये दिन अपना तुगलकी फरमान सुनाकर दुनिया में अपनी ताक़त का प्रदर्शन करता रहता हैं.
अब अमेरिका की यही आदत भारत के आतंरिक मामलों में भी दिखने लगी हैं.
अभी कुछ दिन पहले अमेरिका ने भारत पर धार्मिक आधार पर एक रिपोर्ट निकाली, जिसमे यही कहा गया कि भारत में धार्मिक असहिष्णुता और असहनशीलता के चलते आये दिन कोई न कोई घटना होती रहती हैं.
धर्म के आधार पर लिखी गई इस रिपोर्ट में यह बताया गया कि भारत जैसे देश में अल्पसंख्यक के रूप में रह रहे ईसाई धर्म के लोगों पर सबसे अधिक हमले हुए हैं. भारत देश में वैसे ही पहले से अल्पसंख्यक समुदायों पर अत्याचार होने के आरोप आये दिन ही लगते आये हैं, लेकिन इस बार अमेरिका द्वारा किये गए सर्वे थोड़े पक्षपाती भी लगते हैं क्योकि अमेरिका किसी अन्य देश पर उंगली उठाने से पहले ये भी देख ले के तीन उंगली उसकी तरह ही हैं.
कुछ दिन पहले हुए दादरीकाण्ड ने भारत की इमेज पूरी दुनिया में ख़राब की हैं, वही अमेरिका की इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया हैं कि ईसाईयों के 167 से भी ज्यादा धार्मिक स्थलों पर अन्य धर्म के लोगों द्वारा हमले हुए हैं. यदि इन सब बात पर यकीन भी कर लिया जाये तो फिर भी एक देश का दूसरें देश पर दख़ल कितना जायज़ हैं? जबकि उसके खुद के देश और राज्यों में आये दिन नस्लीय दंगे हो रहे हैं.
अमेरिका के फर्गुसन क्षेत्र में माइकल नाम के अश्वेत लड़के को पुलिस द्वारा की गयी मारपीठ के बाद हुई मौत से वहाँ नस्लीय हिंसा भड़क गयी और इस नस्लीय विवाद की आग इतनी बढ़ गयी की अमेरिका के 9 राज्यों में फ़ैल गयी. हर जगह हिंसा, मार पीठ और दंगे होने लगे. यह सारे झगड़े इतने बढ़ गए कि लोगों द्वारा अमेरिका के झंडा तक जला दिया गया.
फर्गुसन के बाद बाल्टीमोर में भी ऐसे ही एक हादसे में पुलिस हिरासत में एक अश्वेत युवक की मौत से लोगों का गुस्सा और भड़क गया और दंगे रोकने के लिए सरकार को बाल्टीमोर में कर्फ्यू लगा कर स्थिति नियंत्रण में लेनी पड़ी.
नस्लवाद और अश्वेतों के साथ हो रहे ऐसे व्यवहार को देखे तो मार्टिन लूथर किंग द्वारा 60 के दशक में किये आन्दोलन की याद आती हैं, जब अमेरिका में अश्वेतों को वोट करने का भी अधिकार नहीं था लेकिन इस आन्दोलन के बाद ही अश्वेत अपना अधिकार हासिल कर पाए थे.
अब जिस देश में आये दिन हिंसा हो, नस्लवाद जैसी समस्या आज तक चली आ रही हो, वह अगर चौधरी बनकर भारत को या पूरी दुनिया को शांति की नसीहत दे तो सुनने में भी अजीब लगता हैं, क्रोध आता हैं कि अमेरिका पहले खुद को क्यों नहीं सुधारता फिर दुनिया बदलने निकले.
भारत पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबां में देखे अमेरिका.
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