गोविंद निहलानी – भारत में सिनेमा का हमेशा से ही एक अहम प्रभाव रहा है। भारत जैसे देश में लोग केवल दो ही चीजों के लिए पागल हैं एक सिनेमा तो दूसरा क्रिकेट, लेकिन आज हम फिल्मी दुनिया के एक ऐसे फिल्ममेकर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने लगभग अपनी हर मूवी के लिए नेशनल अवॉर्ड जीता है।
इस बेमिसाल फिल्ममेकर का नाम है गोविंद निहलानी, जिन्हें अपनी पहली फिल्म ‘आक्रोश’ (1982) के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था। निहलानी ने ‘अर्धसत्य’, ‘द्रोहकाल’, ‘दृष्टि’, ‘संशोधन’, ‘तमस’, तक्षक और देव जैसी कई मूवीज़ बनाईं जिन्हें बेहद सराहा गया।उनका फिल्मों को लेकर नज़रिया काफी अलग है।
तो आज हम इसी नज़रिए को समझने के लिए आपको उनकी लाइफ के कुछ किस्से बताने जा रहे हैं।
गोविंद निहलानी का जन्म कराची में 19 अगस्त 1940 में हुआ था। उनके परिवार में सभी को हिंदी और संस्कृत आती थी। गोविंद अपने परिवार के पहले ऐसे सदस्य हैं जिन्होंने पूरी ग्रेजुएशन की थी। आजादी के बाद पाकिस्तान छोड़ गोविंद अपने परिवार के साथ राजस्थान के जयपुर में आ बसे। उन्होंने यहीं से अपनी प्राइमरी एजुकेशन ली और बाद में बैंगलोर से सिनेमैटोग्राफी का कोर्स किया।
ऐसे पड़ा सिनेमैटोग्राफी का चस्का
गोविंद निहलानी को सेकेंड्री एजुकेशन पूरी करने के बाद सिनेमैटोग्राफी के बारे में पता चला, जो कि ड्राइंग और फ़ोटोग्राफी जैसी कलाओं का मिश्रण होती है। गोविंद ने इसके बारे में जानते ही बैंगलोर के जाया चम्राजेंद्र पॉलिटेक्निक कॉलेज में एडमिशन ले लिया और जब गोविंद कॉलेज से बाहर आए तब तक उन्हें फिल्ममेकिंग की बढिया नॉलेज हो चुकी थी।
कैसे मिले गुरु दत्त और वीके मूर्ति से
कॉलेज से निकलते ही गोविंद ने मशहूर सिनेमैटोग्राफर वीके मूर्ति के साथ काम करना शुरू किया जहां उनकी मुलाकात गुरु दत्त साहब से हुई और वह जल्द ही अच्छे दोस्त भी बन गए।
हॉलीवुड फिल्मों के लिए भी कर चुके हैं काम
1982 में आई डायरेक्टर रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’में गोविंद ने सिनेमैटोग्राफी का बेहद उम्दा काम किया और इस फिल्म ने उन्हें कई तरीको से इंस्पायर भी किया।
बॉलीवुड में गोविंद निहलानी अकेले ऐसे शख्स हैं जिन्हें इतनी ज्यादा फिल्मों के लिए नेशनल अवॉर्ड मिल चुका है।