मनोरंजन

आँखों देखी फिल्म रि-रिलीज़ हो

कई बार हम बोलते हैं कि “अब अच्छी फ़िल्में नहीं आती हैं. एक दौर था जब हम पूरे परिवार के साथ फिल्म देखने जाते थे. अब हमारे पास सिनेमा नहीं रह गया”.

यदि आप आज भी ऐसा बोलते हैं तो गलत बोलते है. यकीन मानिये आप खुद ही घटिया और अश्लील फिल्में देखना पसंद करते हैं, जिसका फायदा फिर वो लोग उठाते हैं, जो फिल्मों की दुनिया से पैसा कमाते हैं.

अच्छी फ़िल्में या तो बनती नहीं हैं या फिर हमारे सिनेमा घर उन्हें ज्यादा दिन लगाते नहीं हैं, क्योकि हमारे दर्शक उन्हें देखने जाते ही नहीं हैं. आप लोगों में से बहुत कम लोग जानते होंगें कि साल 2013 के अंत में एक फिल्म आई थी, आँखों देखी. कुछ याद आया? नहीं ना? हाँ अब शायद याद आये. वही जिसको नेशनल अवार्ड में 3 अवार्ड मिले थे. आपको याद आया हो या ना आया हो, पर इस फिल्म को उस साल की सबसे बेहतरीन फिल्म बताया गया था.

पर अफ़सोस कि फिल्म को उतना नहीं देखा गया, जितना उसे हक़ था. लेकिन अब एक आवाज उठ रही है कि आँखों देखी फिल्म रि-रिलीज़ हो. ये बात निश्चित है कि अब हमारे दर्शक फिल्म को थियेटर में देखना चाहते हैं. सबसे पहले ये आवाज उठाई है, मशहूर फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने. अपने फेसबुक अकाउंट से अनुराग ने फिल्म के निर्देशक और निर्माता दोनों को टैग कर, ये पोस्ट किया है कि शायद आप लोगों को आँखों देखी फिल्म को दुबारा से रिलीज़ करना चाहिए. वैसे ये बात सच है कि हमारा युवा भी खुले आम ये बोल रहा है, कि हम फिल्म को वापस से देखना चाहते हैं.

Sanjay Mishra as Babuji

आपको यहाँ फिल्म की कहानी से पहले फिल्म की बनने की पूरी कहानी को समझना ज्यादा ज़रूरी है. आप अभिनेता-निर्देशक रजत कपूर का नाम तो जानते ही होंगे, पर आपने इसके निर्माता मनीष मुंद्रा का नाम शायद ना सुना हो. हुआ कुछ ये था कि जब फिल्म की कहानी के लिए लेखक रजत कपूर को कोई निर्माता नही मिल रहा था तब इन्होंने ट्विटर पर अपना गुस्सा निकाला था और मनीष, रजत जी को वहां फॉलो कर रहे थे. जब इन्होनें ये ट्वीट पढ़ा तो, रजत जी से संपर्क किया और फिल्म बनने की प्रक्रिया यहाँ से शुरू हुई. कहते हैं कि ऊपर वाला अच्छे के लिए अच्छा ही करता है और जहाँ हर चीज पवित्र हो, वहां इसी प्रकार की कला का उदय होना निश्चित रहता है.

Sanjay Mishra playing Babuji

फिल्म की कहानी पर बात करें तो यहाँ मुख्य किरदार में संजय मिश्रा जी हैं. इन्होनें एक बूढ़े आदमी राजा बाबू का किरदार निभाया है जो की एक संयुक्त परिवार में रहते हैं। एक दिन अचानक ही बाबूजी ये फैसला करते हैं कि अब से वो दूसरों की बातों को सुनने की बजाय सिर्फ उसी पर यकीन करेंगे जो कि वो खुद अपनी आंखों से देखेंगे। बाबूजी के इस फैसले के बाद से उनकी पूरी जिंदगी ही बदल जाती है और उनके आस-पास के लोगों की भी राय इन्हें लेकर बदलने लगती है। इस फैसले के चलते बाबूजी को काफी कुछ सहना पड़ता है। उनके परिवार के सदस्यों को लगता है कि वो पागल हो गये हैं, सठिया गये हैं। लेकिन बाबूजी सिर्फ अपनी आंखो देखी पर ही यकीन करते हैं। किसी के कुछ भी कहने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता हैं. फिल्म में ये भी दिखाया गया है की परिवार क्या होता है? और आपस का प्यार क्या होता है?

Sanjay Mishra in Ankhon Dekhi

ऐसा नही है की भारत में पहले किसी और फिल्म के ऐसा साथ नही हुआ हो. पड़ोसन फिल्म को भी दर्शकों की मांग पर ही, रि-रिलीज़ किया गया था. ये फिल्म हमारे सामने सबसे बड़ा उदाहरण है. अब आँखों देखी फिल्म के निर्माता और निर्देशक को जनता की आवाज सुनकर फिल्म को दुबारा रिलीज़ कर देना चाहिए और आगे भी इसी तरह का सिनेमा हमारे दर्शकों तक आता रहे, इस ओर काम करते रहना चाहिए.

Chandra Kant S

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Chandra Kant S

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