एक जमाने में अमेरिका के सबसे खतरनाक दुश्मन रहे क्यूबा के क्रांतिकारी नेता और पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो का निधन हो गया है.
इसके पहले भी फिदेल कास्त्रों के मरने की खबरें आती रही हैं और उस वक्त ऐसा अनुमान लगाया जाता था कि क्यूबा के तानाशाह फिदेल की मौत की खबर को गोपनीय रखा जा रहा है. लेकिन इस बार 90 साल के फिदेल की मौत की पुष्टि उनके भाई और क्यूबा के राष्ट्रपति राउल कास्त्रो ने की है.
अमरीकी तट से मात्र 93 मील दूर स्थित क्यूबा 1960 के दशक से ही अमरीका की नजर में खटकता रहा है.
दरअसल, क्यूबा का राष्ट्रपति फुल्गेन्सियो बतिस्ता अमेरिकी का अंध समर्थक राष्ट्रपति था. कहा जाता है कि उसने अपने शासनकाल (1951-1959) के दौरान क्यूबा के हितों के बजाए अमेरिकी हितों को सर्वोपरि रखा और आम जनता को नजरअंदाज किया.
भ्रष्टाचार, असमानता और अन्य तरह की परेशानियों से बढ़ते रोष के वजह से क्यूबा में क्रांति ने जन्म लिया, जिसकी अगुआई फिदेल कास्त्रो कर रहे थे.
दिसंबर 1958 को राष्ट्रपति बतिस्ता का तख्तापलट कर दिया गया.
वर्ष 1959 में क्यूबा में क्रांति के बाद फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में वहां कम्युनिस्ट सरकार बनी. राष्ट्रपति बनते ही फिदेल ने अमेरिकी विरोधी रुख अपनाया. इस घटना से नाराज अमरीका ने क्यूबा से अपने तमाम कूटनीतिक रिश्ते तोड़कर उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे. इसके जवाब में फिदेल कास्त्रों ने सोवियत संघ का हाथ थामा कर सीधे सीधे अमरीका को ही आंख दिखा दी.
बताया जाता है कि अमेरिका और क्यूबा के बीच अविश्वास इतना गहरा था कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने फिदेल को मारने का कई बार प्रयास किया लेकिन वे उसमें सफल नहीं हो सके.
कम लोगों को पता होगा कि क्यूबा और अमेरिका में फिदेल कास्त्रों के नेतृत्व में जो दुश्मनी चल रही थी उसकी जड़ में सोवियत संघ था. क्रांति से पहले फिदेल कास्त्रो एक युवा वकील थे, जो क्यूबा के पूर्व तानाशाह राष्ट्रपति फुल्गेन्सियो बतिस्ता के खिलाफ 1952 के चुनाव में खड़े हुए.
लेकिन इससे पहले लोग वोट कर पाते, वोटिंग खत्म कर दी गई.
इसके गुस्साए फिदेल कास्त्रो ने अपने 100 साथियों के साथ 26 जुलाई को सैंटियागो डी क्यूबा में सैनिक बैरक पर हमला किया, लेकिन नाकाम रहे. इस हमले के बाद फिदेल कास्त्रो और उनके भाई राउल बच तो गए, लेकिन अन्य लोगों को जेल में डाल दिया गया. लेकिन फिदेल कास्त्रो ने बतिस्ता शासन के खिलाफ अभियान बंद नहीं किया. यह अभियान उन्होंने मैक्सिको में निर्वासित जीवन जीते हुए चलाया. वहां उन्होंने सोवियत संघ की मदद से एक छापामार संगठन बनाया. इस संगठन को 26 जुलाई मूवमेंट नाम दिया गया.
फिदेल कास्त्रो इस संगठन और सोवियत संघ की मदद से क्यूबा की क्रांति के जरिए ही अमेरिका समर्थित फुल्गेंकियो बतिस्ता की तानाशाही को उखाड़ फेंका.
क्यूबा क्रांति के प्रमुख नेता फिदेल साल 1959 से दिसंबर 1976 तक क्यूबा के प्रधानमंत्री रहे थे. इसके बाद वह क्यूबा के राष्ट्रपति बने.
वर्ष 2006 में अपने भाई राउल कास्त्रों को सत्ता हस्तांतरण करने के बाद उन्होंने फरवरी 2008 में अपने पद से इस्तीफा देकर राजनीति से दूरी बना ली थी.
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