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अगले तीन महीनों में होगी नोटों की बारिश! आप लूटोगे या लुटवाओगे?

festival

अरे अरे यह क्या?

तुम तो नोट गिनने की मशीन ही लेकर बैठ गए!

क्यों यार, सिर्फ नोट लूटने का ही मन बना लिया है, लुटवाओगे नहीं? वैसे तुम नहीं भी चाहोगे तो भी जेब तो हल्की होने ही वाली है!

मैं बात कर रहा हूँ हमारे देश में शुरू हो चुके त्योहारों के मौसम की!

गणेशोत्सव का आगमन हो चूका है और व्यापारी समुदाय के अनुसार इन दस दिनों की धूम-धाम में कुल मिला कर खर्च होने वाला है क़रीब 20 हज़ार करोड़ रूपए!

क्यों, रह गयीं ना आँखें फटी की फटी?

जी हाँ, और यह व्यापार होगा सिर्फ उन्हीं चुनिंदा शहरों में जहाँ गणेशोत्सव की धूम सबसे ज़्यादा रहती है जैसे कि मुंबई, पुणे, नागपुर और महारष्ट्र के दूसरे शहर! उसके अलावा आजकल गुजरात और उत्तर भारत के भी कई शहरों में गणेशोत्सव का प्रचलन बढ़ने लगा है| तो पंडालों के बनाने से लेकर, उन में अर्पित होने वाली दान-दक्षिणा और सोने-चांदी की कीमत लगाएँगे तो होगा 20 हज़ार करोड़ का व्यापार!

इसके बाद शुरू होंगे नवरात्रे और उस में अलग से व्यापार होगा!

फिर दशहरा और उसके बाद सबसे बड़ी दिवाली! सोच के देखो दोस्तों, दिवाली तो सारे देश में मनाई जाती है तो उस में व्यापार की कितनी ज़्यादा संभावना है| कई लाख करोड़ का लेन-देन होगा और पता भी नहीं चलेगा कि किसकी जेब से कितना निकल गया और किसकी जेब में कितना जमा हो गया!

ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ़ इसी साल हो रहा है| हमारे देश में त्यौहार ऐसे हैं कि भले ही पेट में डालने के लिए दाना ना हो, लेकिन मंदिरों और पूजापाठ के स्थलों पर भेंट चढ़ाने के लिए पैसे कहीं ना कहीं से आ ही जाते हैं! और इसका फ़ायदा उन सभी को होता है जो बाकी साल कुछ और काम नहीं कर पाते! जिनका काम ही त्योहारों से चलता है जैसे कि पंडाल बनाने वाले कारीगर, पटाखे बनाने की फ़ैक्टरी के मज़दूर, मिठाईयों के विक्रेता वगैरह वगैरह इन दो-तीन महीनों में अपनी पूरी साल की कमाई कर जाते हैं!

कुछ लोग हैं जो मानते हैं कि यह सिर्फ़ पैसे की बर्बादी है और कुछ नहीं|

मानता हूँ कि कुछ चीज़ें सच में पैसा जलाने जैसी ही होती हैं जैसे कि बेहिसाब पटाखे जलाना या ज़रुरत से ज़्यादा शॉपिंग करना| इस तरह त्योहारों का महत्व पैसे की चकाचौंध के आगे छुप सा जाता है| लेकिन उन व्यापारियों, उन कारीगरों से पूछिए जो इन तीन महीनों का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं| आखिर वो भी तो पैसा कमा कर फिर से खर्चेंगे ही ना? इस तरह त्यौहार ना सिर्फ़ खुशीयाँ लाते हैं, देश की अर्थव्यवस्था पर भी एक सकारात्मक असर छोड़ते हैं!

तो हो जाओ तैयार धूम-धाम के लिए और थोड़े दिनों के लिए भूल जाओ कि कितना कमाया या कितना गँवाया! उसके लिए पूरा साल पड़ा है यार|

बस मज़े लो और अपने अपनों के साथ यह लम्हे हँस-खेल के बिता डालो!