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काम पर जाने का मन नहीं है, लेकिन काम पर पहुचने की जल्दी रोज़ है!

काम

दौड़ा दौड़ा भागा भागा सा – दौड़ा दौड़ा भागा सा… वक्त ये वक्त है थोडा सा…

अभिनेता कमल हासन पर फिल्माया ये गीत जैसे हरएक के पैरो की जंजीर बन चूका है.

इस दुनिया में 90% लोगो पर ये गाना बिलकुल सटीक बैठता है, जो काम पर जाना नहीं चाहते लेकिन काम पर पहुचने की जल्दी रोज़ होती है.

सुबह उठते ही दिनचर्या जितनी तेज़ी से गुजरती है, दोपहर होते होते मानो पैर जकड़ जाते है और शाम होते ही समय बड़े आराम से बीतने लगता है.

फिर घर पहुचकर यक़ीनन जन्नत नसीब होती है.

आजकल पैसे कमाने वालो की लाइफ कुछ ऐसी ही गुजर रही है.

सुबह-सुबह तो आपको हार्ट अटेक भी आ सकता है, तब-जब आपको दफ्तर पहुचने में लेट हो रहा हो. क्योकि दफ्तर लेट पहुचे तो बॉस की गालियाँ, कलीग्स की गॉसिप और डरावना माहौल जो झेलना पड़ सकता है.

वैसे आजकल दफ्तरों में आप काम कम करेंगे तो चलेगा लेकिन समय से देर पहुचे तो आपका प्रजेंटेशन ज़ीरो माना जाने लगता है. दफ्तर में मौजूद यमराज के रूप में विराजमान एचआर, आपकी सेलेरी काटने में ज़रा भी रहम नहीं दिखता और आपका दिल चूर-चूर हो जाता है.

मज़े की बात तो ये है कि जिस दीन हमें बॉस की फटकार सुननी पड़ती है, उस दीन हमें ये सारा जग सौतेला लगने लगता है. पूरा दीन तो सत्यानाश होता ही है और हम अपना पूरा गुस्सा अपनी बीवी, बच्चे और माँ-बाप पर उतारते है. ऐसा करने से हम अपने परीवार को तो दुखी करते ही है, खुद भी दुखी होते है.

क्या आपको पता है कि, 10% प्रतिशत लोग अपने जीवन में कामयाब क्यों है?

आखिर क्यों उन्हें काम पर जाना भी अच्छा लगता है और काम करना भी अच्छा लगता है.

क्योकि वे कामयाब लोग वक्त के मुल्यता को समझते है. वें मानते है कि कर्म ही पूजा है. अगर इंसान के रूप में धरती पर जन्म लिया है तो अपनी करनी करते ही जाना है. उन्हें पता है कि तडके सुबह उठकर व्यायाम/योग कर अपने शरीर और मन को स्वस्थ रखना है. क्योकि वे तंदरुस्त होंगे तब ही अपने काम को पुरी इमानदारी से निभा पाएंगे.

अगर काम इमानदारी से किया तो बॉस खुश. बॉस खुश तो हम खुश. हम खुश तो हमारा परीवार खुश. बस फिर क्या है, ये जिंदगी जीने का सफल तरीका है.

अब हम अगर उन 90% लोगों की बात करे जो समय, दफ्तर, बॉस से हमेशा त्रस्त रहते है तो वे तो यही कहेंगे कि… ‘काम पर जाने का मन नहीं है लेकिन काम पर पहुचने की जल्दी रोज़ है’

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