आज की तारिख में जीवन बेहद आसान हो गया है. सारी चीजे फटाफट होती है और परिणाम भी जल्दी दीखते है.
वक़्त के साथ इंसान की गति अधिक तेज़ हो गई है. मानो इंसान अब वक़्त को हराने पे तुला है. लेकिन वक़्त से पहले किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ है. वक़्त से पहले पाने की सोच ही इंसान को डिप्रेसन का शिकार बना देती है.
भारत में अवसाद (डिप्रेशन) के मरीज कुछ अधिक बढ रहे है. शहर के साथ गांव के लोग भी डिप्रेशन का शिकार हो रहे है. ख़ास करके युवा और किसान, जिसकी वजह से आत्म हत्या के आंकड़े बढे है.
अवसाद (डिप्रेशन) क्या है.
यह कैंसर से भी घातक बिमारी है.
एक बार हो जाए तो मरीज जब तक खुद कोई सकारात्मक तबदीली नहीं लाता तब तक उसे इस पीड़ा से गुजरना पड़ता है.
लम्बे समय तक नकारत्मक सोच जब दिमाग में घर करती है तब ऐसी बिमारी उत्पन्न होती है.
यह बिमारी कैसे और किसे होती है?
- अवसाद वैश्विक है और अनुवांशिक. तो ऐसे में यह बिमारी आपको भी हो सकती है.
- पुरुषों से अधिक अवसाद महिलाओं को होता है.
- अवसाद में आत्महत्या की प्रवृत्ति अक्सर निर्माण होती रहती है.
- जो लोग जीवन में किसी बुरे समय से गए हो उनको यह बिमारी होनी बहुत सहज है.
महिला और बुजुर्गों में अवसाद थोडा बहुत सामान्य है.
महिलांए जब अधिक तर माँ बनती है उस वक़्त अवसाद उसे घेर सकता है. जिसके चलते वह नवजात को अनदेखा तक कर सकती है.
उम्र हो जाने से भी कई बार नकारत्मक बाते दिमाग में आते रहती है. जिसके चलते बुजुर्ग ज्यादा तर चिडचिडे हो जाते है.
अब बात करते है युवांओं की
जैसे की मैंने कहा की जीवन बड़ी रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है.
ऐसे में जीवन शैली सहज हो गई है.
खाना बनाने से लेकर पढाई के सारे काम टेकनोलोजी से होता है.
कुछ सामान भी खरीदना हो तो ऑनलाइन शॉपिंग होती है.
ऐसे में शारीर का लचीलापन खो रहा है.
केवल एक चीज हासिल करने के लिए जीवन भर जदोज़हद चलती है और वह नहीं मिलने पर मानसिक रूप से बेबस एवं हताशा सी छाने लगती है.
कोई आप को नकारता है तो वह सोच आपको अपराधिक भाव से जकड लेती है.
नौकरी में काम का दबाव और आकांक्षाओं पर खरे न उतर पाना.
किसी प्रतियोगिता में सफल न हो पाना. यह सारी बाते युवाओं को अवसाद से नहीं बचा पाते क्योंकि आज के युवा के पास धीरज नहीं है. उनको ऐसे लगता है कि हर एक चीज तेजी से जीवन में मिले.
किसान भी अवसाद से पीड़ित
पिछले एक दशक से किसान आत्महत्या कर रहे है.
कभी मौसम की मार फिर सरकार की मदत नहीं मिलती है.
किसानो कि इन समस्याओं का हल अब तक किसी सरकार ने नहीं निकला है.
ऐसे में सर पर बैंक का कर्जा और छाती पर परिवार का बोझ एक किसान कब तक ढोएगा.
खाने के लिए अनाज के लाले पड़े है, ऐसे वक़्त में बेटी की शादी, लड़के की पढाई, माता पिता की बिमारी और अन्य सारी जरूरते कब पूरी करेगा.
इसी पीड़ा के निचे यह किसान हताश होते रहता है. इस आस में की अगले वर्ष अच्छी फसल आएगी और कुछ मदद सरकार करेगी.
किंतु ऐसा कुछ नहीं होता आखिर में वह आत्महत्या जैसा जघन्य कदम उठा ही लेता है. और उसका परिवार भुखमरी की कगार पर आ जाता है.
अवसाद से कैसे बचे?
बाज़ार में अवसाद से लड़ने के लिए कई दवाइयां है. परन्तु उसके साथ योग और अपना आचार ब्यवहार बहुत जरुरी होता है, सब कुछ डॉक्टर की दवा से ही सम्भव नहीं है.
- व्यायाम करना शुरू कर दो
- परिवार के साथ दो वक़्त खाने पर रहना और बाते करना
- मित्र और परिजनों से मेल बढाना
- वक़्त निकालकर जरुरतमंदों की मदत करना
- सहयोगी और सफ़र में लोगों को एक प्यारी मुस्कान देना
- किसी चुटकुले की याद आने पर पर खुलकर हसना
- हॉबीज का जतन करना और जूनून के साथ हमेशा अच्छा करना
- अपेक्षाओं को कम और समझदारी को अधिक बढावा देना
- हेल्दी खाना और अच्छे रहन सहन रखना
- सुबह एक बार तो आईने के सामने तैयार होकर खुद की प्रशंसा करना
नियमित रूप से आप अगर यह कोशिश करेगे तो कोइ भी बीमारी आपके करीब नहीं आएगी.
माना की सबको अपने दर्द बेहद ज्यादा लगते है. किंतु दुनिया में इससे भी अधिक दर्द और बदनसीब लोग होते है. जिनके पास पैसे तो होते है लेकिन खुशियाँ बाटने के लिए जानवर तक नहीं होते है.
सुप्रसिद्ध कलाकार जो निशब्द में अमिताब बच्चन के साथ नज़र आई जिया खान ने भी अपनी जिंदगी का अंत अवसाद में आकार किया.
इस लिए यह भूल जाइए की यह बीमारी गरीबों को ही होती है. केवल खुश रहिये और निस्वार्थ प्यार बाटिये.