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एमपी में 19 साल पहले भी कांग्रेस के राज में पुलिस की गोली से मारे गए थे 24 किसान!

किसानों की मौत

भारत के हृदय प्रदेश यानि मध्यप्रदेश में इन दिनों राजनीति गरमाई हुई है।

पिछले दिनों हुए किसान आंदोलन में पुलिस की गोलियों से 6 किसानों की मौत ने मध्यप्रदेश का माहौल ख़राब कर दिया है। ये घटना पिछले दिनों एमपी के मंदसौर में हुई थी। इस घटना की वजह से हर तरफ एमपी के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की आलोचना हो रही है। कई संगठन मिलकर उनके खिलाफ लगातार प्रदर्शन कर रहे है। इस घटना में चारों तरफ से आलोचना झेल रहे शिवराजसिंह चौहान इस पूरे मामले में विलेन बने हुए है।

इस घटना में एमपी सरकार की तरफ से कई बातें हड़बड़ी में कही गई जैसे पहले कहा गया कि किसान आपसी फायरिंग में मारे गए, फिर कहा गया कि पुलिस की गोलियों से किसानों की मौत हुई। वही बात मुआवजे राशी को लेकर भी हुई पहले मुआवजा राशी घोषित कर दी लेकिन बाद में इस मुआवजे राशी को बड़ा कर एक करोड़ कर दिया गया। इस पुरे मामले में मुख्यमंत्री शिवराज का ये भी कहना है कि इसमें कांग्रेस का हाथ है।

अब माहौल ये है कि कई लोगों ने शिवराजसिंह चौहान से इस्तीफ़े की मांग की है।

हालाँकि पुलिस फायरिंग में किसानों की मौत का मामला एमपी में पहली बार नही है।

किसानों की मौत

इससे पहले भी पुलिस की गोलियों से किसानों की मौत हुई है। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह की सरकार में हुए गोलीकांड में 24 बेकसूर किसानों की मौत हुई थी। ये बात 19 साल पहले की है जब 12 जनवरी 1998 को एमपी के बैतूल जिले की मुलताई तहसील परिसर में पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में 24 बेकसुर किसानों की मौत हुई थी और करीब 150 से ज्यादा किसान पुलिस की गोलीयों से घायल हुए थे।

किसानों की मौत

एमपी में उस समय मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी।

उस समय भी हालात आज की ही तरह थे किसान अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन के जरिये अपनी आवाज़ को शासन और प्रशासन तक पहंचाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन पुलिस ने उनकी आवाज़ को गोलियों के शोर तले बंद कर दिया।

उस घटना ने मध्यप्रदेश की राजनीति में कोहराम मचा दिया था जिसका नतीजा बाद में ये हुआ की दिग्विजय सिंह दोबारा सीएम की कुर्सी पर कभी बैठ ही नहीं पायें।