बेबी हलदर – कामयाबी सिर्फ उसी के कदम चूमती है जो पूरी लगन से कड़ी मेहनत करते हैं और रास्ते में आनेवाली हर मुश्किल का डटकर सामना करते हैं. जिन लोगों में ये खूबी नहीं होती है कामयाबी भी उनसे कोसों दूर ही रहती है.
हमारे आसपास ही कई ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाते हैं जो साधारण होते हुए भी असाधारण बन जाते हैं. ऐसे लोग गरीब होकर भी अपने दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत के दम पर अपने सपनों को हकीकत में बदल देते हैं.
इस लेख में आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी साधारण सी कामवाली बाई की कहानी, जो वैवाहिक बलात्कार के बाद 13 साल की उम्र में मां बन गई थी लेकिन आज उसे एक मशहूर लेखिका के तौर पर लोग जानते हैं.
बेबी हलदर बन गई एक प्रसिद्ध लेखिका
दरअसल बेबी हलदर नाम की 41 वर्षीय महिला कभी एक साधारण सी कामवाली बाई हुआ करती थी लेकिन आज वो एक जानी मानी लेखिका है और गुडगांव में लोगों के घरों में घरकाम करती हैं.
आपको बता दें कि बेबी हलदर की अब तक तीन सफल किताबें छप चुकी हैं. इतना ही नहीं उनकी किताबों का बारह अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद भी किया गया है जिनमें जापानी, जर्मन और फ्रेंच भाषाएं शामिल हैं.
बेबी को शोहरत साल 2006 में मिली, जब उनकी पहली किताब ‘आलो आंधारी’ छपी थी. लेखिका बनने के बाद बेबी ने पेरिस और फ्रैंकफर्ट जैसी जगहों का ना सिर्फ दौरा किया बल्कि कई साहित्यिक समारोहों का भी हिस्सा बनीं.
इस तरह से बेबी को मिला उनका मेंटर
बताया जाता है कि बेबी के पिता ने उनकी पढ़ाई बीच में ही छुड़वाकर दोगुने उम्र के लड़के से शादी करा दी थी. जिसके बाद बेबी के साथ पति ने जबरन वैवाहिक बलात्कार किया और महज 13 साल की उम्र में ही बेबी ने एक बच्चे को जन्म दिया. आए दिन पति की प्रताड़ना से तंग आकर जब बेबी की हिम्मत जवाब दे गई तब उन्होंने अपने बच्चों को लेकर कहीं दूर जाने का फैसला कर लिया.
आखिरकार एक दिन बेबी ने पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर से दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ ली और दिल्ली में बहुत ही कम पैसों में घरेलू कामवाली बाई का काम किया और एक दिन उन्हें प्रोफेसर प्रबोध कुमार के घर न सिर्फ काम करने का मौका मिला बल्कि उन्हें लेखन के प्रति प्रेरित करनेवाला एक मेंटर भी मिल गया.
आपको बता दें कि बेबी प्रोफेसर प्रबोध कुमार के घर पिछले 16 सालों से काम कर रही हैं और प्रबोध कुमार ही उनके मेंटर व अनुवादक हैं. वो एंथ्रोपोलॉजी के एक रिटायर्ड प्रोफेसर हैं और हिंदी साहित्यके प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचंद के पोते हैं.
सिर्फ सातवीं कक्षा तक पढ़ी हैं बेबी
आज भी लोग बेबी से यही एक सवाल पूछते हैं कि एक मशहूर लेखिका बनने के बावजूद वो घरकाम क्यों करती हैं. जिसपर बेबी यही जवाब देती हैं कि जिन्होंने मुझे काम दिया और लेखन के लिए प्रेरित किया उन्हें छोड़कर नहीं जाउंगी.
छोटी सी उम्र में शादी के बंधन में बंधनेवाली बेबी मुश्किल से सातवीं तक पढ़ाई कर पाई हैं. महज सातवीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद बेबी ने जो उपलब्धि हांसिल की है वो वाकई काबिले तारीफ है.
बेबी की मानें तो एक लेखिका के रुप में उनका दूसरा जन्म हुआ है और उनकी लिखी हुई कहानी लोगों के दिलों को स्पर्श करती है. अब बेबी की यही ख्वाहिश है कि वो अपनी किताबों से कमाए हुए पैसों से कोलकाता में एक घर बना सकें ताकि भविष्य में वो कभी कोलकाता वापस लौट सकें.
वाकई लोगों के घरों में काम करनेवाली इस साधारण सी कामवाली बाई की कामयाबी की ये कहानी असाधारण है. कामवाली बाई से लेखिका बनने की ये कहानी आम लोगों के लिए सच में काफी प्रेरणादायक है.
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