रिश्तों की अहमियत – ज़िंदगी में रिश्तों की बहुत अहमियत होते हैं, ये रिश्ते परिवार के साथ ही दोस्तीं के भी होते हैं, रिश्तों के बिना ज़िंदगी अधूरी और नीरस हो जाती है, लेकिन आजकल के लोग खुद में इतने बिज़ी हो गए हैं कि किसी भी रिश्ते के लिए समय नहीं निकालतें और न ही उसे अहमियत देते हैं.
शायद यही वजह है कि आजकल के लोग अकेलेपन और डिप्रेशन के ज़्यादा शिकार होते हैं.
हमेशा मोबाइल और कंप्यूटर पर बिज़ी रहने वाली आज की युवा पीढ़ी को रिश्ते बोझ लगने लगे हैं, घर में अगर दो रिश्तेदार आ जाए तो वो असहज हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि अब उनकी प्राइवेसी खत्म हो गई. रिश्तेदार तो छोड़िए वो तो अपने माता-पिता से भी ज़्यादा बात नहीं करते. कॉलेज या ऑफिस से आते ही अपने लैपटॉप या फोन पर बिज़ी हो जाते हैं, परिवार क्या होता है परिवार का साथ और अपनापन क्या होता है या सारी चीज़ें आज की युवा पीढी भूल चुकी है. कोई समस्या हुई तो भी किसी से कुछ कहते नहीं है और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं जिससे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं.
अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ मंजूर है इन्हें, मगर रिश्ते निभाना नहीं. हम शायद रिश्तों की अहमियत नहीं समझते – पहले लोग घर में साथ-साथ रहते थे, चाचा, काका, चाची, बुआ जैसे ढेरों रिश्तों के बीच पले बच्चे आजकल के बच्चों से ज़्यादा सामाजिक और संवेदनशील होते थे, कोई समस्या होने पर परिवार के किसी न किसी सदस्य से तो बात शेयर कर ही लेते थें जिससे समस्या का समाधान भी मिल जाता है था, मगर शहरों में बढ़ती न्यूक्लियर फैमिली ने रिश्तों की अहमियत को तो जैसे खत्म ही कर दिया है. पारिवारिक रिश्तों में समझ की कमी ने उन्हें बोझ बना दिया है.
वैसे परिवार के साथ ही एक रिश्ता और होता है जो बहुत अहम है और वो रिश्ता होता है दोस्ती का. हर किसी की ज़िंदगी में एक सच्चा दोस्त होना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि ये दोस्त ही होता जिससे हम अपनी सारी अच्छी-बुरी बातें करके दिल का बोझ हल्का कर सकते हैं. दोस्त हमें मुश्किल वक्त में रास्ता दिखाता है, हमारा साथ देता है और अजनबी शहर में जहां कोई अपना नहीं होता ये दोस्त ही है ज अपनेपन का एहसास कराता है, ऐसे में यदि आपके पास कोई अच्छा दोस्त है तो उससे दोस्ती कभी मत तोड़िएगा. रिश्तेदार मतलब होने पर ही आपका साथ देंगे, मगर दोस्त निःस्वार्थ भाव से आपका साथ देता है.
वैसे देखा जाए को हर रिश्ता अपनेआप में बहुत अहम होता है फिर चाहे वो परिवार का हो या दोस्ती का, मगर आजकल लोगों को ये बात समझ नहीं आती. अकेले होने पर हम किसी से अपने दिल की बात शेयर नहीं कर पातें, मुश्किल वक़्त में कोई हमें संभालने वाला नहीं होता ये लैपटॉप और मोबाइल किसी काम नहीं आते, उस वक़्त अपने लोगों की ज़रूरत होती है, रिश्तों की ज़रूरत होती है. रिश्तों से दूर होने के कारण ही आज की पीढ़ी बहुत स्वार्थी भी होती जा रही है उसे अपने आगे कुछ नहीं सूझता.
रिश्तों की अहमियत – यदि आप ज़िंदगी खुशी, सूकून और अपनापन चाहते हैं तो हर रिश्ते की वैल्यू करिए और उसे वक़्त दीजिए क्योंकि एक बार वक़्त निकल गया तो रिश्ते भी टूट जाएंगे. रिश्ते बोझ नहीं, ज़िंदगी में खुशी लाने का ज़रिया है.
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