हमारे मानव समाज में हजारों तरह की साधनाओं और विद्याओं के बारे में वर्णन मिलता है.
साधना से व्यक्ति सिद्धियां प्राप्त करता है. इसके पीछे उनका उद्देश्य आध्यात्मिक लाभ या सांसारिक लाभ प्राप्त करना होता है. मुख्य तौर पर साधना चार प्रकार के माने जाते हैं.
यहां सवाल ये उठता है कि तंत्र साधना लोगों में भय पैदा करती है, क्योंकि मान्यता है कि ये साधना अघोरियों की साधना या भयानक विद्या होती है. जबकि ऐसा है नहीं.
तंत्र साधना अलग होती है और अघोर साधना अलग.
मंत्र तंत्र और यंत्र में तंत्र को सबसे पहले रखा है. तंत्र एक रहस्यमयी विद्या होती है. हिंदू धर्म के साथ जैन धर्म और बौद्ध धर्म में भी तंत्र विद्या का प्रचलन है.
1. तंत्र में शरीर महत्वपूर्ण है
साधारण शब्द में कहें तो तंत्र का मतलब तन से, मंत्र का अर्थ मन से और यंत्र का अर्थ किसी वस्तु या मशीन से होता है. तंत्र का एक दूसरा मतलब होता है व्यवस्था. तंत्र इस बात को मानता है कि हम शरीर में हैं और यही एक वास्तविकता है. भौतिक शरीर हमारे सारे कार्यों का केंद्र होता है. इसलिए इस शरीर को पूरी तरह स्वस्थ और तृप्त रखना अत्यंत आवश्यक है. शरीर की क्षमता को बढ़ाना आवश्यक है, क्योंकि शरीर से हीं अध्यात्म को साधा जाना संभव है.
तंत्र का संभोग और मांस मदिरा से कोई संबंध नहीं होता. जो व्यक्ति इस तरह के कर्मों में लिप्त होता है वो किसी भी तरह से तांत्रिक नहीं बन सकता. तंत्र को इसी तरह के लोगों ने बदनाम किया है. तांत्रिक साधना का मुख्य उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना होता है. इस विद्या को प्राप्त करने के लिए अंतर्मुखी होकर साधना की जाती है.
2. तंत्र के ग्रंथ
तंत्र को मुख्य रुप से शैव आगम शास्त्रों से जोड़ा जाता है. लेकिन इसका मूल अथर्ववेद में ही पाया जाता है. तंत्र शास्त्र तीन भागों में बंटा हुआ है. यामल तंत्र, आगम तंत्र और मुख्य तंत्र. आगम में रुद्रागम, शैवागम और भैरवागमन मुख्य है.
वाराही तंत्र के अनुसार जिसमें देवताओं की पूजा, सृष्टि प्रलय, सत्कर्यों के साधन, षट्कर्मसाधन, पुरश्चरण और चार प्रकार के ध्यान योग का वर्णन हो उसे ‘आगम’ कहा जाता है. जिसमें सृष्टितत्व, नित्य कृत्य, ज्योतिष, सूत्र, क्रम, युगधर्म और वर्णभेद का वर्णन हो उसे ‘यामल’ कहा जाता है. इसी तरह जिसमें लय, सृष्टि निर्णय, मंत्र, प्रेम, आश्रमधर्म, कल्प, व्रतकथा, ज्योतिषसंस्थान, शौच – अशौच, राजधर्म, स्त्रीपुरुष लक्षण, दानधर्म, राजधर्म, युगधर्म, व्यवहार तथा आध्यात्मिक नियमों का वर्णन हो उसे ‘मुख्य तंत्र’ कहा जाता है.
वाराही तंत्र के अनुसार 9 लाख श्लोकों में से 1 लाख श्लोक भारत में है. विस्मृति के कारण तंत्र साहित्य उपेक्षा और विनाश का शिकार हो गया है. आज के समय में तंत्र शास्त्र के अनेकों ग्रंथ लुप्त हो गए हैं.
वर्तमान में मिली जानकारी के अनुसार 199 तंत्र ग्रंथ मौजूद हैं.
3. रहस्यमई विद्याएं
तंत्र में बहुत सारी विद्याएं शामिल हैं. उसी में से एक है गुह्य- विद्या, गुह्य का मतलब होता है रहस्य. तंत्र विद्या से व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति को बढ़ा कर कई तरह की शक्तियों से संपन्न बन सकता है और यही होता है तंत्र का मूल उद्देश्य. इसी तरह तंत्र विद्या से हीं त्राटक, सम्मोहन, इंद्रजाल, त्रिकाल, अपरा, परा और प्राण विद्या का जन्म हुआ. तंत्र से उच्चाटन, विद्वेषण, मोहन, वशीकरण और स्तंभन क्रियाएं की जाती है.
इसी तरह मनुष्य से जानवर बन जाना, एक साथ 5-5 रूप बना लेना, गायब हो जाना, विशाल पर्वतों को उठाना, समुंद्र को लांघ जाना, करोड़ों मील दूर के व्यक्ति को देख लेना और उससे बात कर लेने जैसे कई कार्य तंत्र विद्या की वजह से ही संभव होता है.
4. तांत्रिक गुरु
तंत्र के प्रथम उपदेशक भगवान शंकर हुए और उनके बाद भगवान दत्तात्रेय बाद में सिद्ध योगी शाक्त और नाथ परंपरा का चलन है. तंत्र साधना के प्रणेता भगवान शंकर और दत्तात्रेय के अलावा परशुराम, नारद, पिप्लादि, वसिष्ठ, शुक, सनक, भैरव, भैरवी, सनतकुमार, सन्दन, काली, भैरवी इत्यादि कई ऋषि मुनि उपासक रहे हैं.
ब्राह्मयामल में अनेकों ऋषियों के उल्लेख हैं. इसमें शिव ज्ञान के प्रवर्तक के रूप में जाने जाते हैं. उनमें वृहस्पति, उशना, सनत्कुमार, दधीचि आदि के नामों के उल्लेख मिलते हैं. जयद्रथयामल के मंगलाष्टक प्रकरण में बहुत सारे ऋषियों के नाम तंत्र प्रवर्तक के रूप में है. जैसे सनक दुर्वासा कश्यप और विश्वामित्र जैसे ऋषि.
5. तंत्र हथियार
प्राचीन काल में तंत्र के माध्यम से ही घातक हथियारों को तैयार किया जाता था. जैसे नागपाश, पाशुपतास्त्र और ब्रह्मास्त्र इत्यादि. पदार्थों की रचना, विनाश का भारी काम और परिवर्तन बिना किसी यंत्र की सहायता से तंत्र के द्वारा किया जा सकता है. विज्ञान के इस तंत्र भाग को ‘सावित्री विज्ञान’ वाममार्ग, तंत्रसाधना जैसे नामों से पुकारा जाता है.
6. तांत्रिक साधना
तांत्रिक साधनाओं को मुख्य रूप से तीन मार्ग – वाम मार्ग, मध्यम मार्ग और दक्षिण मार्ग बताया गया है. हालांकि ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं. एक वाम मार्गी तथा दूसरा दक्षिण मार्गी.
7. तंत्र के प्रतीक
आंगन द्वारों पर चित्रित की जाने वाली अल्पना, हाथों में लगाई जाने वाली मेहंदी, त्रिकोण से बनाए गए स्टार के बीच स्वास्तिक या ओम का चिन्ह इत्यादि तंत्र के प्रतीक होते हैं. तंत्र के दूसरे प्रतीक भी होते हैं. जैसे योग की कुछ मुद्राएं, क्रियाएं इत्यादि.
8. तांत्रिक मंत्र
तांत्रिक मंत्र मुख्यतौर भर्ती तरह के होते हैं.
शाबर मंत्र
तांत्रिक मंत्र
वैदिक मंत्र
तांत्रिकों के बीच मंत्रों में ह्रीं, क्लीं, श्रीं, ऐं, क्रूं इत्यादि अक्षरों का प्रयोग होता है. जिन मंत्रों में शुरुआत में इस तरह के अक्षर होते हैं वो सभी तांत्रिक मंत्र हैं. एक अक्षर से पता चल जाता है ये मंत्र किस देवता का है. जैसे काली माता के लिए क्रीं का प्रयोग करते हैं. और लक्ष्मी माता के लिए श्रीं का प्रयोग किया जाता है.
9. तंत्र साधना के देवी और देवता
तंत्र साधना में अष्ट भैरवी, देवी काली, दस महाविद्या, नवदुर्गा, 64 योगिनी देवियों की साधना होती है इसी तरह देवताओं में काल भैरव, भकूट भैरव, नाग महाराज की साधना होती है. इन सब की साधना को छोड़कर जो पिशाचिनी, यक्षिणी, वीर साधना, अप्सरा, किन्नर साधना, गंधर्व साधना, नायक नायिका साधना, वेताल, भूत, राक्षस, दानव इत्यादि की साधनाएं निषेद होती हैं.
10. कैसे करें तांत्रिक साधना
अगर आप तांत्रिक साधना करना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे पहले आपको इस बात को स्पष्ट करना होगा कि आप ये साधना क्यों करना चाहते हैं.
जब आपको अपने सवाल के जवाब मिल जाए, तो उससे संबंधित किताबों का अध्ययन करें और इसके बाद किसी योग्य तंत्र साधक को खोज कर उनसे शिक्षा लें. हो सकता है कि ये आपको हिंदू धर्म के संन्यासी समाज के 13 अखाड़ों के सन्यासियों में हीं मिल जाएं.
तो दोस्तों ये हैं तंत्र साधना के कुछ रहस्य, जो वाकई में चौकाने वाले हैं. जरा सोचिए कि इस तंत्र साधना में कितनी शक्ति है. लेकिन अगर आप भी इस विद्या को सीखना चाहते हैं और कुछ किताबें पढ़कर साधना करते हैं तो आपको सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि इसके बुरे परिणाम भी हो सकते हैं.
अगर आप का उद्देश्य इस साधनों के माध्यम से किसी ओर का बुरा करना है, तब भी आपको सावधान हो जाना चाहिए. क्योंकि इसका परिणाम भी आपको हीं भुगतना पड़ सकता है.