आज जिस भारत की खुली हवा में आप सांस ले रहे हैं उसे आजाद करवाने में कई जवान शहीद हुए हैं और इन शहीदों की लिस्ट में सबसे पहले नाम आता है खुदीराम बोस का।
जी हां, खुदीराम बोस देश की क्रांति के लिए शहीद होने वाले सबसे पहले शख्स थे।
आज हम आपको देश के सबसे पहले शहीद के बारे में कुछ दिलचस्प बातें बताने जा रहे हैं। बचपन में ही देखा था क्रांतिकारी बनने का सपना
जिस उम्र में खुदीराम के दोस्त पढ़ाई और परीक्षा के बारे में सोच रहे थे उस उम्र में खुदीराम के दिल में क्रांति की मशाल जल रही थी।
जिस उम्र में लोग जिंदगी के हसीन ख्वाब देखते हैं उस उम्र में वह वतन पर निसार होने का जज्बा लिए हाथ में गीता लेकर फांसी के फंदे की ओर बढ़ चले थे। देश में आजादी की राह में अपनी शहादत का दीप सबसे पहले खुदीराम बोस ने ही जलाया था।
18 साल की उम्र में फांसी
ये बहुत दुखत बात है कि खुदीराम के बगावती तेवरों को देखकर अंग्रेजी सरकार ने घबराकर महज़ 18 साल की उम्र में ही खुदीराम को फांसी के तख्ते पर लटका दिया था। खुदीराम भले ही मर गए हों लेकिन उनकी शहादत ने वो दीप जलाया जिससे देश में स्वतंत्रता संग्रमा के शोले भड़क उठे।
11 अगस्त, 1908 को ब्रिटिश सरकार ने 18 साल की उम्र में ही खुदीराम को फांसी की सजा सुना दी थी।
अनाथ थे खुदीराम
3 दिसंबर, 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में जन्में खुदीराम बोस जब बहुत छोटे थे तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया था। उनकी बड़ी बहन ने ही उन्हें पाला पोसा और बड़ा किया था। 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद ही खुदीराम के दिल में क्रांति की आग जल गई थी। सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम ने अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत की। अपने स्कूल के दिनों से ही वो राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने लगे थे। जलूसों और जलसे में शामिल होकर वो ब्रिटिशों के खिलाफ नारे लगाते थे। नौवी कक्षा के बाद पढ़ाई छोडने के बाद उन्होंने अपेन सिर पर कफन बांध लिया था।
वंदे मातरम के पर्चे भी बांटे
खुदीराम ने वंदे मात्रम् के पर्चे भी बांटे हैं। सन् 1906 में सोनार बंगला नामक एक इश्तहार बांटते हुए पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया लेकिन बोस इस बार पुलिस के शिकंजे से भागने में सफल रहे।
कलकत्ता में किंग्सफर्ड चीफ प्रेजिडेंसी मैजिस्ट्रेट को बहुत सख्त और क्रूर माना जाता था। वो क्रांतिकारियों के लिए किसी जल्लाद से कम नहीं था। उसी की हत्या की साजिश में खुदीराम को चुना गया था लेकिन उन्होंने गलती ये किसी और की बग्घी में बम फेंक दिया और समझा कि मैज्स्ट्रिेट मर गया है।
पांच दिन मुकदमा चलने के बाद 8 जून, 1908 को अदालत ने उन्हें हत्या की साजिश करने के जुर्म में 13 जून को मौत की सजा सुनाई। 11 अगस्त, 1908 को खुदीराम को 18 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ा दिया गया।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में जान न्योछावर करने वाले पहले सेनानी खुदीराम बोस माने जाते हैं।
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