हम सब ने फेसबुक या व्हाट्सअप्प में किसी व्यक्ति की मौत पर उस से जुड़े लोगों द्वारा RIP लिखा हुआ स्टेटस ज़रूर देखा होगा.
लेकिन क्या आप जानते हैं ‘RIP’ को लिखने की वजह क्या हैं?
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती हैं, तब हम सब यही कहते हैं कि उसकी आत्मा को शांति मिले. इस बात से यह सवाल उठता हैं कि लोगों की मौत के बाद भी शायद कुछ बाकि रह जाता हैं जिसे शांति की ज़रूरत हैं.
जीवन के अंत के बाद यही कहा जाता हैं कि मृत्यु ही एक पूर्णविराम हैं.
लेकिन लोगों को श्रद्धांजलि देने के अपने सन्देश में ‘रिप’ से यही लगता हैं कि मौत के बाद भी कुछ हैं जो बाकि हैं. वैज्ञानिक तौर पर यह बात सर्वमान्य है कि शरीर के नष्ट हो जाने के बाद सब कुछ ख़त्म हो जाता हैं पर यह मान्यता सभी लोग नहीं मानते हैं. उनके अनुसार शरीर तो नष्ट हो जाता हैं लेकिन आत्मा शेष रह जाती हैं.
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म में पुनर्जन्म जैसे मान्यताएं प्रचलित हैं. इस धर्म के मानने वाले लोग कहते हैं कि मौत विश्राम नहीं हैं इसलिए ‘रेस्ट इन पीस’ जैसी बात पर इन धर्मो से जुड़े लोग यकीन नहीं रखते पर शांति की बात हम हमेशा कहते हैं. इन धर्मों के अनुसार आत्मा कभी भी नहीं मरती हैं. यह हमेशा जन्म और पुनर्जन्म के खेल में उलझी रहती हैं. आत्मा का यह खेल तब तक चलता रहता हैं, जबतक उसे परम ज्ञान की प्राप्ति न हो जाये और आत्मा को जैसे ही इस रहस्य का पता चलता हैं वह जीवन-मरण के इस बंधन से मुक्त हो जाती हैं.
वहीँ मिस्र, इस्लाम और ईसाई जैसे धर्मों में मौत के बारे में थोड़ी अलग सोच रही हैं. इन धर्मों से जुड़े लोगों की मान्यताएं एक दुसरे से भी भिन्न ही रही हैं. मिस्र के लोग कहते हैं कि इंसान मृत्यु के बाद पश्चिम दिशा की ओर जाते हैं. वहीँ ईसाई धर्म में यह दिशा पूर्व हो जाती हैं. इस्लाम से जुड़े लोगों का मानना हैं कि मौत के बाद हम मक्का की ओर जाते हैं.
इन सारी मान्यताओं से दूर जानवरों के लिए मृत्यु एक सच्चाई हैं.
जानवर किसी और जानवर के मरने पर ‘रिप’ नहीं कहते. अपने साथी के जाना का दुःख उन्हें ज़रूर होता हैं लेकिन कुछ देर में वह सामान्य होकर अपने रोज़ के कामों में व्यस्त हो जाते हैं. वह इंसानों की तरह कोई कब्र नहीं बनाते या स्मरण दिवस नहीं मनाते हैं. जबकि इंसानों के लिए यह प्राकृतिक सच्चाई स्वीकार करना मुश्किल होता हैं. इंसान हमेशा भौतिकता के मोह में फंस कर रह जाता हैं और हमारा यह शरीर ही इस भौतिकता का सबसे प्रमाण हैं.
भौतिक चीज़ों से शांति तलाशने के बजाये इंसान को यह समझना होगा कि शांति की सहज प्राप्ति हमें तबतक संभव नहीं होगी, जब तक हम यह सत्य अपना ना ले कि जीवन सत्य नहीं बल्कि म्रत्यु ही सत्य हैं.
इस शरीर का मोह ही हमारी अशांति का कारण हैं.
मृत्यु के बाद उस परम ज्ञान की प्राप्ति ही शांति का प्रतीक हैं जिसे हम रेस्ट इन पीस कहते हैं.
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