माता-पिता अपने बच्चों को बचपन से डॉक्टर या इंजीनियर बनाने का ख्वाब देखते हैं और इसके लिए वो अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर ज्यादा ज़ोर देते हैं.
एक ओर जहां आज भी अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर बनाने के पीछे लगे हैं तो वहीं देश में कुछ ऐसे युवा भी हैं जिन्हें डॉक्टरी या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद अच्छी नौकरी तो मिली लेकिन उन्हें नौकरी रास नहीं आई लिहाजा उन्होंने नौकरी छोड़कर किसानी को अपना पेशा बना लिया
आज हम आपको एक ऐसे ही नौजवान से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसने इंजीनियर की नौकरी छोड़कर अमरूद की बागवानी को अपना पेशा बना लिया.
डेवलपर की नौकरी छोड़कर किसान बने नीरज
दरअसल हरियाणा के जींद जिले के संगतपुर गांव में रहनेवाले नीरज ढांडा पेशे से एक काबिल इंजिनियर हैं. बताया जाता है कि बीटेक की पढ़ाई करने के बाद नीरज ने कुछ समय तक डेवलपर की नौकरी की थी लेकिन उन्हें अपने घर-परिवार और गांव से दूर करने वाली ये नौकरी रास नहीं आई.
लिहाजा नीरज ने अपनी नौकरी छोड़कर अपने गांव वापस लौटने के फैसला कर लिया और उन्होंने गांव वापस लौटने के बाद खेती को अपना पेशा बना लिया.
7 एकड़ में शुरू की थी अमरूद की बागवानी
नीरज की मानें तो कुछ साल पहले जब वो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में थे तब उन्होंने वहां के अमरूद की खास प्रजाति के बारे में सुना था. उन्होंने जब रायपुर के खास अमरूद को देखा तब उसके आकार और सुंदरता को देखकर नीरज का मन ललचा सा गया.
इन अमरूदों को देखने के बाद ही नीरज ने अमरूदों की बागवानी करने का फैसला किया और अपनी 7 एकड़ जमीन पर नीरज ने अमरूद के करीब 1900 पौधे लगाए और ये सारे पौधे उन्होंने रायपुर से ही मंगाए थे.
हालांकि अमरूद के पौधों को लगाने में काफी खर्च भी आया था लेकिन नीरज ने अपने कदम पीछे नहीं लिए जिसका नतीजा यह हुआ कि कुछ ही सालों में इस खास किस्म के अमरूदों ने नीरज की जिंदगी बदल दी और अब उनके इन अमरूदों की चर्चा देश के बड़े-बड़े शहरों में होने लगी है.
लाजवाब है नीरज की मार्केटिंग रणनीति
नीरज के बाग के इन पौधों पर इतने बड़े अमरूद होते हैं कि एक ही अमरूद खाने से इंसान का पेट भर जाए. बताया जाता है कि इस साल नीरज के एक पेड़ से करीब 50 किलो अमरूद मिले हैं.
पेशे से एक इंजीनियर और काबिल किसान के तौर पर अपनी पहचान बनानेवाले नीरज की मार्केटिंग रणनीति का भी कोई जवाब नहीं है, क्योंकि नीरज अपने अमरूदों को किसी सब्जी मंडी या दुकान में नहीं बेचते बल्कि वो इन अमरूदों को ऑनलाइन रिटेलिंग के जरिए बेचकर भारी मुनाफा कमाते हैं.
नीरज को देश के कई बड़े शहरों से अमरूद के लिए ऑर्डर मिलते हैं इसके लिए नीरज ने डोर नेक्स्ट फार्म नामक एक वेबसाइट भी बनाई है जिसपर ऑर्डर करने के महज 48 घंटे के भीतर अमरूदों की डिलीवरी हो जाती है. नीरज के अनुसार उनके बागों के अमरूद 500 रुपये किलो तक बिकते हैं.
गौरतलब है नीरज इन पेड़ों को रासायनिक खाद के बजाय ऑर्गैनिक तरीके से पोषण देते हैं. इसलिए इनके पेड़ों पर उगनेवाले अमरूद दूसरे अमरूदों के मुकाबले ज्यादा पौष्टिक और स्वास्थवर्धक होते हैं.
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