वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेष और पंजाब में होने वाले विधान सभा में इस बार सड़कों से अधिक शोर मोबाइल में सुनाई पड़ेगा.
अब की बार सोशल साइट पर चुनाव प्रचार ज्यादा होगा. इस बार चुनाव प्रचार में बैनर पोस्टर गली मोहल्लों की दीवार से ज्यादा मोबाइल और कम्प्यूटर की स्क्रीन पर अधिक नजर आएंगे.
काले धन पर 500 और 1000 के पुराने नोट बंद होने का सबसे अधिक असर राजनैतिक दलों पर पड़ा है. चुनावों में राजनैतिक दलों और नेताओं द्वारा सबसे अधिक काले धन का उपयोग किया जाता था.
लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काले धन को लेकर बड़े नोटों को रातोंरात बंद करने की एकाएक घोषणा से काले धन की चुनावी राजनीति पर करारा आघात हुआ है. काले धन के सहारे करोड़ों रूपए चुनाव प्रचार में बहाने वाले नेताओं का नंबर दो का अरबों खरबों रूपया पानी हो गया है.
इसलिए इस बार जो लोग चुनाव लड़ेंगे वे न केवल प्रसार में तय सीमा के अंदर खर्च करेंगे बल्कि नोटों के जरिए वोट खरीदने से भी बचेंगे. इसके बदले अब चुनाव में प्रत्याशी प्रचार करने के लिए फेसबुक और वाट्सएप जैसे प्रचार साधनों पर अधिक बल देंगे. अब राजनैति दल सोशल साइट पर चुनाव प्रचार कर अपनी बात लगभग हर घर तक पहुंचने की कवायद करेंगे.
इसमें उन दलों को सबसे अधिक लाभ होगा जो काफी पहले से सोशल साइट पर चुनाव प्रचार में सक्रिय है.
चुनावों को लेकर देखें तो मोदी सरकार के इस फैसले से सबसे अधिक खुश भाजपा है. क्योंकि सोशल साइट पर चुनाव प्रचार का सबसे अधिक फायदा लेने की स्थिति में वही है. उत्तर प्रदेश में मोबाइल के जरिए पार्टी के सदस्य बने लगभग पौने दो करोड़ सदस्य हैं.
एक सर्वे के मुताबिक लगभग डेढ़ करोड़ लोगों के पास स्मार्ट फोन हैं और उनमें से अधिकांश वाट्सएप का प्रयोग कर रहे हैं. यही कारण है कि इस घटना के बाद सभी राजनैतिक दल चुनाव को लेकर अपनी रणनीति में बदलाव कर रहे हैं.
इस काम के लिए अभी से राजनैतिक दलों ने अपने यहां सोशल साइट पर वालंटियरों की संख्या बढ़ाने और वाट्सएप ग्रुपों को बनाने की दिशा में गंभीरता से सोचना प्रारम्भ कर दिया है.
आईटी मामलों के जानकारों का कहना है कि वर्तमान बदले परिवेश में सोशल मीडिया पर प्रचार अभियान काफी उपयोगी हो सकता है.