कोई भी व्यक्ति किसी नशे का आदी कैसे जाता है.
अधिकांश लोग नशे को अपनी मर्जी से शौकिया तौर पर लेना प्रारंभ करते हैं पर जल्द ही नशा इन्हें अपने गिरफ्त में ले लेता है और उसके बिना इनका जीना मुश्किल हो जाता है. इस अवस्था को नशे का लत लग जाना कहते हैं.
नशे की लत को अगर हम वैज्ञानिक दृष्टि से समझने की कोशिश करेंगे तो पहले हमे यह जानना होगा की आखिर कोई भी नशा हमारे दिमाग या हमारे शरीर पर किस प्रकार असर करता है. नशा करने पर हमारे मस्तिष्क के वे हिस्से सक्रीय हो जाते जो की हमे खुशी देन के लिए जिम्मेदार होते हैं. हमें खुशी का अनुभव मस्तिष्क के इन्ही हिस्सों के सक्रीयता के कारण होता है जैसे कुछ स्वादिष्ट खाने पर या अपने किसी प्रियजन के मिलने पर. इसके पीछे डोपामीन नाम के एक हॉर्मोन (रसायनिक द्रव्य) का हाथ होता.
जो नशे का आदी होता है उसके शरीर पर अलग-अलग तरीके से काम करता है ये अलग अलग नशा –
नशे का आदी –
1 – निकोटीन-
इस नशीले द्रव्य को लोग मुख्य रुप से तंबाकू के जरिए लेते हैं. चाहे वह सिगरेट-बीडी हो या गुटखा-खैनी, सब में निकोटीन की भारी मात्रा होती है. यहां तक की चाय में भी नीकोटीन पाया जाता है. निकोटीन की लत बड़ी आसानी से लग जाती है. सिगरेट पीने पर धुंएं के जरिए निकोटीन फेफड़ों के जरीए दिमाग तक पहुंचता है. सिगरेट अजमाने वाले दो तिहाई लोगों को अंतत: सिगरेट की लत लग जाती है.
2 – शराब-
शराब का शरीर पर कई तरह का असर पड़ता है. यह व्यक्ति का लिवर और किडनी को क्षति तो पहुंचाता ही है दिमाग पर भी इसका बेहद बुरा असर पड़ता है. शराब दिमाग में डोपामीन की मात्रा को 40 से 360 फीसदी तक बढ़ा दैता है. एकबार शराब चखने वाले 22 प्रतिशत लोग शराब के लत के शिकार हो जाते हैं.
3 – कोकेन-
कोकेन मनुष्य के मस्तिष्क में मौजूद न्यूरॉन के कार्य में बाधा डालता है. न्यूरॉन वे तंतु होते हैं जो दिमाग से संदेश को शरीर के किसी दूसरे हिस्से में पहुंचाने के लिए जिम्मेवार रहते हैं. कोकेन दिमाग में डोपामीन के स्तर को 3 गुणा बढ़ा देता है. क्रिस्टल कोकेन का पाउडर लेने वाले ज्यादा असानी से लती बन जाते हैं.
4 – हेरोइन-
नशा करने वालों के बीच हेरोइन बेहद लोकप्रिय है. इस पदार्थ की लत से गंभीर परिणाम तो सामने आते ही हैं, अगर इसकी मात्रा अधिक हो जाए तो यह जानलेवा भी हो सकता है. हेरोइन के कारण दिमाग में डोपामीन का स्तर 200 फीसदी तक बढ़ जाता है.
जब भी कोई नशे का आदी किसी प्रकार का नशा करता है तो इस खुशी देने वाले हॉर्मोन का स्राव हमारे मस्तिष्क में होता है. अंतर बस यह रहता है कि आमतौर पर खुशी मिलने पर जितना डोपामीन निकलता है उससे कई गुना अधिक डोपामीन, नशा करने की स्थिति में रीलीज होता है. इस कारण से नशा करने की स्थिति में अत्यधिक आनंद की अनुभूति होती है.
धीरे-धीरे दिमाग को अत्यधिक डोपामीन की लत लग जाती है और वह बार-बार नशा करने के लिए व्यक्ति को मजबूर करने लगता है. नशे की लत के बाद व्यक्ति का खुद पर नियंत्रण कम हो जाता है औऱ वह जब नशा छोड़ने की कोशिश करता है तो कई तरह के विड्रॉवल सिंड्रोम नजर आने लगते हैं.
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