एग्ज़ाम देने में तो हम सब शेर ही होते हैं, वो तो रिज़ल्ट का डर हमें चूहा-बिल्ली-कछुआ और ना जाने क्या-क्या बना देता है!
क्यों, सही कह रहा हूँ ना?
अरे यार, बचपन से, मतलब नर्सरी क्लास से एग्ज़ाम देने की प्रैक्टिस करवा देते हैं यह दुनियावाले! स्कूल में एग्ज़ाम काफ़ी नहीं होते कि घर पर आओ तो दोस्तों-रिश्तेदारों के सामने पोएम और कहानी सुनाने का एग्ज़ाम दो!
मम्मी-पापा तो हर वक़्त बस कुछ ना कुछ सिखाते ही रहते थे और फिर टेस्ट लेते रहते कि याद हुआ कि नहीं!
दादा-दादी ने भजन और प्रार्थनाएँ याद करवायीं तो मम्मी ने स्कूल की पढ़ाई! कोई बड़ा भाई या बहन हुई तो उसने फ़िल्मी गाने! और फिर याद करवाके कहते, चलो मुन्ना, अब गा के सुनाओ!
इसीलिए इतनी प्रैक्टिस हो जाती है जवानी तक आते-आते कि एग्ज़ाम तो हम सोते-सोते भी लिख सकते हैं! पर रिज़ल्ट कैसा आएगा इसकी भैया कोई गारंटी नहीं! अब अच्छा रिज़ल्ट लाने के लिए सही किस्म की मेहनत भी तो करनी पड़ती है| और कौन कहता है कि हम मेहनत नहीं करते? स्कूल के दिनों में 100 टन का स्कूल बैग उठा के जाते हैं! फिर 7-8 घंटे स्कूल में बिताने के बाद घर आकर 200 किस्म की टियूशंस पढ़ने जाते हैं| उसके अलावा माँ-बाप ने किसी खेल, किसी और एक्टिविटी में भी दाखिला करवा रखा होता है| यह सब करके जब खाली वक़्त मिलता है तो खाना-पीना और सोना भी हो जाता है! इस से ज़्यादा मेहनत कौन करता होगा भला?
लेकिन घरवालों और स्कूल में टीचर्स को फिर भी यह शिकायत रहती है कि बच्चा रिज़ल्ट अच्छा नहीं लाया! अरे यार गधा मज़दूरी तो करवा ली पूरा साल, पढ़ने का मौका दिया कहाँ? रटना सिखा दिया लेकिन ज्ञान को समझने, उसे अपनाने का वक़्त कहाँ है? बस पन्ने पर पन्ना चाटे जाओ और एग्ज़ाम में जाके जितना याद हो, उसकी कागज़ों के ऊपर उलटी कर दो! बस, हो गयी पढ़ाई और मिल गया ज्ञान! आजकल पढ़ाई के बस यही मायने रह गए हैं|
लेकिन यह समझ हम में होती तो हम तुर्रम खां बन गए होते! यह बात तब दिमाग़ में घुसती है जब पढ़-लिख के स्कूल-कॉलेज से बाहर निकलते हैं| पढ़ाई के दिनों में तो सिर्फ़ रिपोर्ट कार्ड और पप्पा जी की जूती नज़र आती है कि अभी पड़ी कि तभी पड़ी! समझ फिर भी नहीं आता कि यार मेहनत तो बहुत की थी, यह नंबर कहाँ नौ-दो-ग्यारह हो गए?
देश की शिक्षा प्रणाली में गहरे बदलावों की ज़रुरत है अगर देश को शेर बच्चे चाहिएँ जो कुछ नया कर सकें, जो देश की उन्नति और विकास में योगदान दे सकें! वरना इंसान रुपी तोते तो पिछले कई दशकों से तैयार हो ही रहे हैं!
इस बेकार और किसी काम ना आनेवाली शिक्षा को बंद करना पड़ेगा और सरकार को चाहिए कि गहरायी से स्कूल और कॉलेज में पढ़ाये जाने वाले सब्जेक्ट्स पर ध्यान दें|
बच्चों को वही पढ़ाया जाए जो उनकी प्रैक्टिकल ज़िन्दगी में काम आएगा, ना कि वो सब जो आज पढ़ा और कल भूल गए!
एक बार करके तो देखिये, फिर एग्ज़ाम से तो क्या, रिज़ल्ट से भी किसी को नानी नहीं याद आएगी!
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