शिक्षा का स्तर – भारत शिक्षा के मामले में विकासशील देशों तक पहुंचना चाहता है लेकिल वहां तक पहुंचने में भारत की 6 पीढियां गुज़र जाएंगी।
शिक्षा के मामले में विकासशील देशों के शिक्षा का स्तर पहुंचने में भारत को 126 साल लग जाएंगें। अगर शिक्षा के क्षेत्र में भारत इसी गति से आगे बढ़ता रहा तो इसमें कोई शक नहीं है कि उसे दूसरों देशों के स्टैंडर्ड तक पहुंचने में सालों लग जाएंगें।
हालांकि, भारत ने तेजी से प्रगति की है लेकिन शिक्षा के मामले में विकसित देशों ने काफी खर्चा किया है लेकिन शिक्षा का स्तर तक भारत को पहुंचने में काफी समय लग जाएगा।
भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का 3.83 प्रतिशत ही शिक्षा पर खर्च करता है जोकि विदेशों के स्तर तक पहुंचने के लिए काफी कम है।
यूएसअपनी जीडीपी का 5.22%, जर्मनी 4.95%और यूके अपनी जीडीपी का 5.72%हिस्सा एजुकेशन पर खर्च करता है। इस तरह इन देशों का शिक्षा के क्षेत्र में निवेश भारत के मुकाबले काफी ऊंचा है। भारतीय जीडीपी की तुलना में यूएस का जीडीपी सात गुना ज्यादा है।
हालांकि संयुक्त राष्ट्रों की मानें तो भारत को उनका मुकाबला करने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में अपनी जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करना चाहिए।
अगर भारत अपने संसाधनों को शिक्षा पर खर्च करे तो वह पूरी दुनिया में खुद को साबित कर सकता है क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जहां प्रतिभा की कोई कमी नहीं है लेकिन यहां छात्रों को अवसरों और संसाधनों की कमी जरूर महसूस होती है। भारत इस समय दुनिया का सबसे युवा देश है।
भारत की 315 मिलियन पॉपुलेशन अभी पढ़ाई कर रही है।
शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे शिक्षकों की कमी सबसे बड़ी चुनौती है। वर्तमान में 1.4 मिलियन शिक्षकों की कमी से भारत जूझ रहा है। दुर्भाग्यवश, भारत में 20 प्रतिशत शिक्षक एनसीटीई के मानकों के अनुसार योग्य नहीं हैं। वहीं कौशल विकास की कमी के कारण भी भारत कुशल देशों की लिस्ट से बाहर है। भारत में ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट लोगों को बेरोज़गारी या नौकरी में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ये बहुत ही दुख की बात है कि पर्याप्त कार्यबल होने के बावजूद भारतीयों में कौशल विकास की कमी है।
शिक्षा का स्तर – हमारे देश में सिर्फ 4.7 प्रतिशत लोगों को ही औपचारिक प्रशिक्षण मिलता है जबकि जापान में ये आंकड़ा 80%, दक्षिण कोरिया में 95%, जर्मनी में 75%, यूके में 68%और यूएस में 52%है।