भावना
ये व्यापारी हमारी आस्था और भावना से खेलते है. सब जानते हैं धर्म के नाम पर पैसा चढाने से कामयाबी और ख़ुशी नहीं आती, लेकिन फिर भी भावनात्मक अपना पैसा व्यर्थ में लुटाने लगते है. भले ही खुद की जेब खाली हो जाए, मंदिर के बहार बैठे गरीब को खाना ना खिलाये, लेकिन व्यापारियों की झोली भरने सबसे आगे खड़े मिलते है.