फिल्मों में कॉमेडी आजकल लगभग ख़त्म हो गई है. उसकी जगह ने डबल मीनिंग डायलाग ने ले लिया है.
कोई भी फिल्म उठाकर देख लीजिए उसमें इस तरह के डायलाग इतने भरे होंगे जिसे आम लोग समझ ही नहीं सकते. असल में इस तरह के संवाद को समझने के लिए शार्प माइंड की ज़रुरत होती है.
हर किसी के पास ऐसा दिमाग नहीं होता कि वो समझ सकें. आज हम आपको बॉलीवुड की कुछ फिल्मों के ऐसे डायलाग बताएँगे जो सच में डबल मीनिंग से भरे हैं. इन्हें समझना हर किसी के बस की बात नहीं. तो तैयार हैं आप इन्हें सुनने के लिए.
१- फिल्म हम्पटी शर्मा की दुल्हनियां तो आपको याद ही होगी. वरुण धवन और अलिया की दमदार जोड़ी ने फिल्म को मज़ेदार बना दिया था. इस फिल्म में कई संवाद ऐसे थे जो डबल मीनिंग के थे. उसमें से ये बहुत ही फेमस हुआ-
सिर्फ दिमाग बड़ा है तेरा और दिल इतना सा
और वो उससे भी छोटा.
अब आप इसका मतलब समझते रहिए. समझ आ जाए तो हंस लीजिए और अपने दोस्तों को भी बताइये.
२- एक फिल्म आयी थी गैंग्स ऑफ वासेपुर. इसे गालियों की फिल्म कहें तो गलत नहीं होगा. इस फिल्म के दोनों हिस्सों में डबल मीनिंग डायलॉग्स की भरमार थी.
तुम्हें याद कर करके हाथ थक गया हमारा
अब इसका मतलब खोजते रहिए. हाँ, इतना ज़रूर है आपके किसी स्मार्ट दोस्त को ये ज़रूर पता होगा. उससे पूछिये और मज़ा लीजिये.
३- वन्स अपन अ टाइम इन मुंबई ये फिल्म ही मजेदार थी. हिट भी थी. इस फिल्म में ऐसे कई डायलाग थे जो सुनकर हंसी आ जाए. कई ऐसे भी थे जो आम दिमाग वालों को समझ में ही नहीं आएं. इस फिल्म का ये डायलाग बहुत फेमस हुआ था.
जो बिस्तर पर जुबां देते हैं वो अक्सर बदल जाते हैं.
इस फिल्म में सबने बड़ी ही दमदार एक्टिंग की थी. उसी के साथ इसके संवाद भी ज़ोरदार थे.
४- फिल्म रामलीला तो आपको याद ही होगी. बात-बात पर गाली. लड़के लड़की सब इस फिल्म में गली और बन्दूक चला रहे थे. इसका भी संवाद बहुत ही डबल मीनिंग था.
जितनी तू गरम है उतना तेरा बिस्तर नरम है.
अब समझ में आया कि इसका मतलब क्या है. कुछ लोग तो ये सोच रहे होंगे कि इसे बोला कब गया था. लो तो याद कर लो. या फिर एक बार फिर से फिल्म देख लो जनाब. सारे संवाद अपने आप ताज़ा हो जाएंगे.
इन फिल्मों की ही तरह अब तो आम लाइफ में भी लोग इतने डबल मीनिंग संवाद बोलते हैं कि कुछ लोगों को समझ आता है तो कुछ बिना समझे ही हंस देते हैं. आप भी अपने दोस्तों में कभी न कभी ऐसे संवाद ज़रूर बोले होंगे.
इस तरह के डायलाग वही बोलते हैं जिनका दिमाग बहुत तेज़ चलता है. पढने वाले और स्लो टाइप के लोग इस तरह के संवाद को न ही बोल पाते हैं और न ही समझ पाते हैं. उनके लिए ये दुनिया ईब और अजनबी होती है. अब आप सोचो कि आप किस तरह के हो.