पति की पिटाई – भारत में एक समय ऐसा भी था जब महिलाओंको पुजा जाया करता था.
यह समय आज से कई सैकडो साल पहले इस धरती पर से खत्म हो चुका है. अब भारत एक ऐसा देश माना जाता है जहां विश्व भर में महिलाएं सबसे असुरक्षित हैं.
हमारे देश में महिलाएँ सड़कों पर तो सुरक्षित थी ही नहीं, अब अपने घरों में भी उनके साह हिंसा बढ़ती जा रही है.
जी हाँ दोस्तों भारत की कम से कम एक-तिहाई शादीशुदा महिलाएँ पति की पिटाई का शिकार होती हैं और कइयों को तो पति की पिटाई की आदत भी पड जाती है. जब इन घरेलू हिंसा का शिकार हुई महिलाओं से पूछा जाता है की वह अपने पति के खिलाफ पुलिस में क्यों नहीं जाती तो उनका एक ही जवाब होता है की पति तो मारते ही हैं इसके ये मतलब थोड़ी की घर के आदमी को घर से ही निकाल दिया जाए. ये जवाब जितना आप पढ़ कर चौके हैं उतना ही हम सुन कर चौंक गए थे.
भारत में करीब एक-तिहाई शादीशुदा महिलाएं पति की पिटाई की शिकार हैं और कई महिलाओं को पति की पिटाई से कोई गुरेज भी नहीं है. एक अध्ययन ने अपने विश्लेषण में यह बात कहते हुए लैंगिक आधार पर हिंसा को देश की सबसे बड़ी चिंता में से एक बताया है. वडोदरा के गैर सरकारी संगठन ‘सहज’ ने ‘इक्वलमीजर्स2030′ के साथ मिलकर यह अध्ययन किया है. ‘इक्वलमीजर्स 2030′ नौ सिविल सोसायटी और निजी क्षेत्र के संगठनों की ब्रिटेन के साथ वैश्विक साझेदारी है.
जहां एक तरफ महिलाओं की सड़कों पर असुरक्षित रहने के विषय को देश की सबसे बड़ी चिंता बताया जाता है वही एक अध्ययन के मुताबिक विश्लेषण में यह बात कही गई है की उतनी ही असुरक्षित आज की भारतीय महिलाएँ अपने घरों में भी हैं. और यह घरेलू हिंसा देश की सबसे बड़ी चिंता में से एक है. जब लोगों को इस बात का एहसास हुआ की महिलाओं के साथ शादी के बाद ये घरेलू हिंसा बढ़ती जा रही है और वह अपने पतियों के खिलाफ बेबस हैं तो एक गैर सरकारी संगठन ‘सहज’ने ‘इक्वलमीजीर्स 2030’के साथ मिलकर एक अध्ययन शुरू किया.
सहज का कहना है की यह मिशन उनको इसलिए शुरू करना पड़ा क्योंकि कोई भी सरकार इस विषय में ठोस कदम नहीं उठा रही थी. हमने महिलाओं की मदद करने के लिए नौ सिविल सोसायटी और निजी क्षेत्र के संगठनो की ब्रिटेन के साथ वैश्विक साझेदारी की है.
सहज ने अपनी रिपोर्ट में बताया की भारत में एक तिहाई विवाहित महिलाएँ रोज अपने पति की पिटाई का शिकार होती हैं और कई महिलाओं ने तो इस पिटाई को स्वीकार भी लिया है. सरकार द्वारा लाए गए ‘बेटी पढाओ, बेटी बचाओ की पहल ने देश भर में महिलाओं की बहुत मदद की थी, इस आंदोलन की बदौलत आज को भारत में कई ऐसी बेटियां हैं जिनका गला कोख में नहीं दबाया गया और वह अपने सपने पूरे करने में कामयाब भी हुई. लेकिन पितृसत्तात्मक रवैया महिलाओं के सामाजिक दर्जे को लगातार कमतर कर रहा है.
अगर इस विषय में जल्द ही सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए तो शायद ये आँकड़े कुछ वर्षो में और भी ज्यादा ना बढ़ जाए.
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