ENG | HINDI

डॉक्टरों की लापरवाही से इस महिला ने जो खोया, 17 साल बाद मिला ये मुआवजा, क्या उसकी भरपाई कर सकेगा !

डॉक्टरों की लापरवाही

डॉक्टरों की लापरवाही – हमारे देश में डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया गया है क्योंकि इन्हीं डॉक्टरों की बदौलत मरीज़ों को एक नई जिंदगी मिलती है लेकिन कभी-कभी इन्हीं डॉक्टरों की जरा सी लापरवाही मरीजों की जान लेने पर भी उतारू हो जाती है.

साल 2000 में महाराष्ट्र के दो डॉक्टरों के खिलाफ लापवाही का एक मामला सामने आया था, जब उन्होंने एक गर्भवती महिला के सिजेरियन के दौरान उसके पेट में कपड़ा छोड़ दिया था.

इस मामले में करीब 17 साल बाद राज्य उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग की नागपुर खंडपीठ ने डॉक्टरों को पीड़ित महिला को मुआवजा देने का आदेश दिया. लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि पीड़ित महिला ने जो खोया है उसकी भरपाई करने के लिए क्या ये मुआवजा काफी है.

डॉक्टरों की लापरवाही मां और बच्ची पर पड़ी भारी

दरअसल इस मामले में दोषी पाए गए दो डॉक्टरों को पीड़ित महिला और उसके पिता को 7 लाख रुपये मुआवजा देने के साथ ही मुआवजे पर 9 फीसदी ब्याज और 25-25 हजार रुपये दावा खर्च देने का आदेश दिया.

आपको बता दें कि ये पूरा मामला नागपुर का है जहां डॉक्टर शील लढ्ढा और डॉक्टर तिबड़ीवाल पर इलाज के दौरान लापरवाही बरतने के मामले में यह आदेश सुनाया गया है.

इन डॉक्टरों पर आरोप था कि सीजेरियन के दौरान ये दोनों रचना अग्रवाल नाम की पीड़ित महिला के पेट में कपड़ा भूल गए थे. जिसकी वजह से पीड़ित महिला की गर्भधारण क्षमता हमेशा के लिए खत्म हो गई तो वहीं उसकी नवजात बच्ची महिला का विषाक्त दूध पीने के चलते मानसिक और शारीरिक रुप से विकलांग हो गई.

आज से 17 साल पहले जनवरी साल 2000 में रचना अग्रवाल ने करीब 7 महीने का गर्भ ठहरने पर डॉक्टर शील लढ्ढा से अपना नियमित इलाज शुरू करवाया था. 15 फरवरी 2000 को जब रचना के पेट में दर्द होने लगा तब डॉक्टर लढ्ढा ने डॉ तिबड़ीवाल के सहयोग से सीजेरियन करने का फैसला किया.

सीजेरियन से रचना ने एक बेटी को जन्म दिया लेकिन इस ऑपरेशन के कुछ ही दिन बाद उसके पेट में दर्द होने लगा. जिसके बाद डॉ लढ्ढा और डॉ तिबड़ीवाल ने उसका अलग-अलग इलाज किया. लेकिन जब दो-तीन महीने तक आराम नहीं मिला तो उसे डॉक्टरों पर शक हुआ कि डॉक्टर उससे कुछ छुपा रहे हैं.

जिसके बाद रचना मुंबई पहुंची और 26 मई 2000 को उसका ऑपरेशन कर पेट से वो कपड़ा निकाला गया जो सिजेरियन के दौरान डॉक्टरों ने उसके पेट में छोड़ दिया था. कपड़ा तो पेट से निकल गया लेकिन रचना का वो अवयव काटना पड़ा जो गर्भधारण के लिए सबसे जरूरी होता है.

डॉक्टरों की लापरवाही को जानने के बाद पीड़ित रचना अग्रवाल और उसके पिता ने दोषी डॉक्टरों के खिलाफ एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी.

तब कहीं जाकर 17 साल बाद उसे इंसाफ मिला है. दोषी डॉक्टरों को पीड़ित महिला और उसके पिता को मुआवजा देने के इस आदेश के साथ नागपुर खंडपीठ के अध्यक्ष बी.एस. शेख व सदस्य एस.बी. सावरकर ने मामले का निपटारा कर दिया.

इस आदेश के तहत दोषी डॉक्टरों को पीड़ित महिला को संयुक्त या स्वतंत्र रुप से पांच लाख रुपये का मुआवजा देने के साथ इस राशि पर 15 फरवरी 2000 से पीड़ित महिला को राशि मिलने तक की अवधि तक 9 फीसदी ब्याज देना होगा.

इतना ही नहीं पीड़ित महिला के पिता को संयुक्त रुप से या स्वतंत्र रुप से दो लाख रुपये का मुआवजा देने के साथ ही राशि अदा होने तक की अवधि तक 9 फीसदी ब्याज देना होगा.

गौरतलब है कि एक लंबी लड़ाई के बाद डॉक्टरों की लापरवाही के लिए आखिरकार पीड़ित महिला को इंसाफ मिला लेकिन इस मुआवजे से ना तो उसके गर्भधारण की क्षमता वापस लौट सकती है और ना ही उसके विषैले दूध को पीकर शारीरिक और मानसिक रुप से विकलांग होनेवाली उसकी बेटी ठीक हो सकती है.