भ्रष्टाचार से निपटने के लिए – आज कल भारत देश में भ्रष्टाचार को लेकर तरह-तरह के अभियान चल रहे हैं.
अगर सामाजिक नज़रिए से देखा जाए तो करप्शन से सबसे ज्यादा भारतीय युवा परेशान है। क्योकि आज कल के युवा एक स्वस्थ और आज़ाद सोच रखने वाला है, लेकिन कहीं ना कहीं ये सोच सिर्फ अपने स्वार्थों तक सीमित है। लेकिन फिर भी अक्सर मीडिया में ऐसे किस्से नज़र आते हैं, जिससे युवाओं की गति-विधियों को लेकर तरह-तरह की बातें उठने लगती है।ये गतिविधियाँ कभी देश के हित में होती है, जैसे छतरपुर का गब्बर काण्ड, तो कभी देश विरोधी होती है जैसे जे.एन.यू का कन्हैया.
खैर जो भी हो इन सबका सीधा संवंध जागरूकता से जुड़ा हुआ है, मतलब जिसकी जितनी सोच है वह उतना जागरूक है।
आज हम बात करने वाले हैं, भ्रष्टाचार से निपटने के लिए – भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए आन्दोलन कर रहे युवाओं के बारे में। जी हाँ, मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में आज कल एक आन्दोलन चल रहा है, जिसका नाम है “गब्बर इज बेक” उन्होंने इस सन्दर्भ में एक नारा भी तैयार किया है, जो इस प्रकार है-
‘तुम कितने गब्बर पकड़ोगे
हम हर घर से गब्बर लायेंगे’
ऊपर लिखा हुआ यह नारा युवाओं के मन में जन्में विद्रोह की भावना को साफ़-साफ़ प्रदर्शित कर रहा है।
इस आन्दोलन के कारणों की विवेचना की जाए तो आपको बता दे कि युवाओं का आरोप है कि डॉक्टर लोग 3 रूपए की दवाई तीन सौ रूपए में बेंचते हैं। और ऊपर से अपने मरीज पर ध्यान भी नहीं देते हैं, इसलिए डॉक्टरों की मनमानी रोकने के लिए यह आन्दोलन किया जा रहा है।
इस आन्दोलन की शुरुआत के बाद से अब तक स्थानीय पुलिस द्वारा दो लोगों को पकड़ा जा चूका है, जिनके हाँथ इस पूरे आन्दोलन की कमान थी, इस कारण शहर के युवाओं के मन में प्रशासन के लिए और भी ज्यादा रोष पनप चूका है। और इसलिए ये युवा तरह-तरह की नारेवाजी के साथ डॉक्टरों के प्रति अपना रोष प्रकट कर रहे हैं।
गब्बर इज़ बेक फिल्म से प्रभावित ये युवा पूरी तरह से गब्बर बन चुके हैं और अपने दम पर अपने पूरे जिले को भ्रष्टाचार से निपटने के लिए – भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का संकल्प ले चुके है। अब देखना ये हैं कि आखिर बुंदेलखंड के ये युवा कहाँ तक पहुँच पाते हैं, और कहाँ तक अपनी सफलता की राह मुकम्मल कर पाते हैं, खैर जो भी हो चाहे आज के युवा भ्रष्टाचार से निपटने के लिए लड़ रहे हो, या फिर अपने नैतिक स्वार्थ के लिए उन पर पुलिस का दबाव अक्सर देखा जाता है।
वहीँ आजकल फिल्में भी सीधे आम-आदमी के जीवन से जुडी हुई है, फिल्मों में दिखाई जाने वाली गतिविधियाँ फिर चाहे वह फैशन को लेकर हो या फिर सामाजिक जीवन को लेकर परदे पर दिखाई जाने वाली चीजों की नक़ल आज कल आम बात हो गई है, और अगर ऐसे में युवा समाज सुधार के लिए फ़िल्मी तरीकों का सहारा लेते हैं तो उसमें कोई गलत बात नहीं होगी।
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