किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है…
अनाड़ी फिल्म का ये गीत तो आपने कई बार सुना और देखा होगा. इस गीत में राजकपूर इंसानियत को ब्यान करते हैं और अपनी हँसी से औरों को हँसाने की एक प्यारी-सी बात हमको सुनाते हैं. पर आज का हमारा समाज बदल चुका है. आज हम 21वीं सदी में हैं और यहाँ सिर्फ अपना सोचा जाता है. आज कोई बड़ा ऑफिसर बनना चाहता है, तो कोई बड़ा बिज़नेसमेन, कोई नेता और अभिनेता. इंसान इस भागती दौड़ती दुनिया में कितना खो चुका है, इसका अनुमान शायद इंसान को भी नही है.
पर वो कहते हैं ना, हर कोई एक जैसा नहीं होता है. कुछ लोगों को ऊपर वाला बनाकर भेजता ही औरों के लिए है. चलिए आपको मिलाते हैं हम आज के राजकपूर से. दूसरों की सेवा में, इस व्यक्ति ने अपना पूरा जीवन लगा दिया है. इस व्यक्ति का नाम है आशीष गौतम.
आशीष जी जीवन में नेता बन सकते थे, ये आईएस भी बन सकते थे. 22 अक्टूबर, 1962 को जन्मे श्री आशीष गौतम प्रारंभ से ही आध्यात्मिक सोच के व्यक्ति हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए., एल.एल.बी. करने के बाद वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने। 1988 से 1995 तक प्रचारक रहने के बाद भगवान में इनका मन होने के कारण वे हिमालय क्षेत्र में घुमने के लिए निकल गए। शुरुआत में ये हरिद्वार में रहें, जब एक दिन आशीष जी चंडीघाट के पुल पर खड़े थे, वहां इन्होनें काफी संख्या में कुष्ठ रोगी देखे. ये रोगी यहाँ अपनी मौत का इंतज़ार कर रहे थे. वैसे यदि आप भी कभी हरिद्वार या ऋषिकेश जाते हैं तो आपको भी ये लोग यहाँ काफी संख्या में दिखेंगें. पर आपने कभी ये नही सोचा होगा, जो आशीष जी ने सोचा. यहाँ इन लोगों की सेवा करने का जो इनका फैसला था, वो आशीष गौतम जी जैसा एक व्यक्ति ही ले सकता था, क्योंकी तब इनपर इन लोगों की सेवा करने के लिए ना तो धन था, ना ही कोई जमीन, जहाँ ये अपना कैंप बना सकते हों. पर इन्होनें हार नही मानी. इन्होनें ये तय कर लिया था, कि अब अगर जीना है, तो इन्हीं की खातिर जीना है.
प्रारंभ में इन्होनें अपना काम एक झोपड़ी बनाकर शुरू किया. दवा का इंतजाम आस-पास से ही किया गया. 12 जनवरी, 1997 को दिव्य प्रेम सेवा मिशन का जन्म हुआ। क्योकि अब कुष्ठ रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही थी. दिव्य प्रेम सेवा मिशन में क़रीब 80 परिवार रहते हैं. इन परिवारों में बच्चे और बड़े समेत लगभग 210 सदस्य हैं. कुछ कुष्ठ रोगियों से आप यदि बात करना चाहते हैं, तो आप लोग ऐसा कर सकते हैं. पर आपको दिल का इतना पक्का होना चाइये कि आप इनके आसूंओं को अपने हाथों से साफ़ कर सकें. ये लोग बोलते हैं कि उन्हें समाज में से बाहर निकाल कर फेंक दिया जाता है। इसके बाद वह बतातें हैं कि कुछ सरकारी सहायता तो ज़रूर मिलती है, लेकिन वह परिवार के भरण-पोषण के लिए नाकाफी है. कुष्ठ रोग होते ही घर से इन लोगों को निकाल दिया जाता है, यहाँ तक कि महिलाओं के साथ भी ऐसा ही किया जाता है. ऐसे ही लोगों को जगह देता है, दिव्य प्रेम सेवा मिशन. मिशन को किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता प्राप्त नहीं हुई, ये सारा कार्य आशीष जी और उनके साथियों ने किया है, जो हर पल मानव की सेवा करने में लगे हुए हैं.
सरकार ने वैसे तय किया है कि प्रति 10,000 लोगों में से कुष्ठ रोग के एक मामले से ऊपर आंकड़ा नहीं होना चाहिए. लेकिन वर्ष 2011-12 के दौरान कुष्ठ रोग के 1,26,800 नए मामले सामने आए और दुनिया भर में 2,44,796 मामलों में भारत में 1,33,717 मामले देखे गए. आंध्रप्रदेश में कुष्ठ रोगियों की संख्या में 14.7 फीसदी बच्चों की भागीदारी है. उत्तर प्रदेश के 45 जिलों के 200 क्षेत्रों में कुष्ठ रोग का फैलाव तेजी से हो रहा है. आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष 2008 से 2010 तक औसतन 27 हजार, नए लोग इस बीमारी के चपेट में आए हैं. अधिकारियों के अनुसार प्रत्येक साल 1 लाख 34 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं. दिल्ली के 2, उत्तराखंड के 1, बिहार के 38, उड़ीसा के 22, महाराष्ट्र के 21, झारखंड के 18, छत्तीसगढ़ के 12, असम के 4, मध्य प्रदेश के 11, गुजरात के 9 जिले इस बिमारी की चपेट में आज भी शामिल हैं. दूसरे स्थान पर बिहार है, जहां औसतन 21 हजार नए मामले सामने आए हैं। जम्मू कश्मीर जैसे राज्य में पहले कुष्ठ रोगी नहीं मिलते थे, लेकिन अधिकारियों के अनुसार वर्ष 2010 में 211 मरीज सामने आए.
जब दिव्य प्रेम सेवा इन लोगों की सेवा कर रहा था, तब ये देखा गया कि कुष्ठ रोगियों के बच्चे, हरिद्वार में भीख मांगते हैं, और यहाँ अनाथ बच्चों की संख्या भी काफी बढ़ चुकी है. तब मार्च, 1998 में कुष्ठ रोगियों के 15 बच्चों को लेकर चंडीघाट में ‘सेवा कुंज’ के नाम से एक छात्रावास प्रारंभ किया गया. सन् 2002 में मिशन ने हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर 15 बीघे जमीन खरीदी और वहां वंदे मातरम् कुंज के नाम से एक विधिवत छात्रावास प्रारंभ किया. कुष्ठ रोगियों और आस-पास की उपेक्षित बस्तियों के बच्चों के लिए ‘माधव राव देवले शिक्षा मंदिर’ नामक विद्यालय चलाया जा रहा है.
इसके अलावा यहाँ अब महिलाओं के लिए लघु एवं कुटीर उद्योग की भी शुरुआत कर दी गयी है. जहाँ कढ़ाई, स्क्रीन प्रिंटिंग, अगरबत्ती बनाना, गुलाब की खेती आदि का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
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