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इन लोगो को देखकर आप भी जिंदगी की हर चुनौती को आसानी से स्वीकार करना सीख जायेंगे!

हारकर जीतना

यूँ तो ज़िन्दगी मुश्किल नहीं, लेकिन आसान भी नहीं.

जिंदगी के लिए जैसा नजरिया रखोगे, ज़िन्दगी आपको वैसी दिखेगी.

कुछ लोगो के पास सबकुछ होकर भी हार जाते है और कुछ लोगो के पास कुछ नही होकर भी सब कुछ जीत जाते हैं.

हारकर जीतनाज़िन्दगी में हारता वही है जो हार मानता है क्योकि हारकर जो चलना और दौड़ना जानता है उनके लिए उनकी हार ही जीत का कारण बन जाती है. 

आज हम आपको कुछ ऐसे लोगो के बारे में बताएँगे जो हार मानने वालों के लिए आदर्श है.

आइये जानते हैं कौन है वो लोग जिनका मकसद था हारकर जीतना

 

डॉ सुरेश आडवाणी

सुरेशजी जब आठ साल के थे तब उन्हें पोलियो हो गया था, जिनके कारण उन्हें विकलांग की श्रेणी में रख दिया गया. लेकिन उन्होंने इस विकलांगता को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दी. ज़िन्दगी की कठिनाई और चुनौतियों को स्वीकार करते हुए खुद को सक्षम इंसानों की श्रेणी से ऊपर खड़ा कर दिया और कैंसर चिकित्सा विज्ञानियों के साथ अपनी जगह बना ली. इतना ही नहीं बल्कि उन्हें भारत में हेमतोपोइएतिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण प्रारंभ किया. भारत में इसका श्रेय भी इनको ही है. इनका कैंसर विज्ञान क्षेत्र में  उल्लेखनीय योगदान है. यह पहले ऑन्कोलॉजिस्ट हैं, जिन्होंने भारत में सफलतापूर्वक एक बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया. सुरेशजी को 2002 और 2012 में पद्म श्री व पद्म भूषण का सम्मान दिया गया.

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