गंदगी कुछ नहीं है या सब कुछ में गंदगी है । यह शाश्वत् सत्य है कि विश्व में कुछ भी समाप्त नहीं होता है। प्रत्येक पद्धार्थ का रूपांतरण मात्र होता है ।
कल तक जो नया वस्त्र था अचानक आँच लग जाने से बेकार हो गया और गन्दगी के ढेर का हिस्सा बन गया।प्रकृति अपनी गति से उसका स्वरूप बदलेगी और वह किसी नये कलेवर में अपनी उपयोगिता प्राप्त कर लेगा।
यही चक्रवत घूमता संसार है ।मनुष्य तन के भीतर छुपी गंदगी का कोई पार नहीं । पूर्ण जीवन आत्मशोधन में बीत जाए तो भी गन्दगी ही बाक़ी है सगे सम्बंधी भी देह का यथासम्भव शीघ्र संस्कार करना चाहते हैं ।
सत्य है कि गंदगी को यथायोग्य स्थान पर पहुंचाना ही हितकर है ।
अब प्रश्न यह है कि यह कार्य कौन करे, कैसे करे।
श्रम विभाजन के अनुक्रम से यह वृहत् कार्य करने का दायित्व जिनके कन्धे पर है वही सामाजिक व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर खड़े हैं ।
एक बार कल्पना कीजिए कि इस वर्ग के अभाव में कैसी होती हमारी दुनिया।
गंदगी और कूड़े का पर्यायवाची !
लगातार सफाई के बाद भी गंदगी खत्म नहीं होती।
कारण एक ही है कि हम सब सफाई की अपेक्षा गंदगी फैलाने में अधिक योगदान कर रहे हैं और सफाई करने वालों पर अधिक बोझ डाल रहे हैं और स्वच्छताकर्मी का समुचित सम्मान भी नहीं करते हैं ।
स्वच्छता अभियान की सफलता के लिए पहली शर्त है कि श्रम की गरिमा के सिद्धांत का अनुपालन किया जाए।
सफाई कर्मी को समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त हो ।
गंदगी का उपचार करने वाला व्यक्ति घृणा का पात्र कदापि नहीं हो सकता।
प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है कि गंदगी न हो और गन्दगी दूर करने वाले की मेहनत को पहचानें और इस वृहत् कार्य में अपना योगदान करें ।