इस कलयुग में दीर्घायु का आशीर्वाद न मिल रहा हो तो, इसके लिए आप को ऐसे मंदिर जाना होगा जहा पर आपको दीर्घायु प्रात हो सकती है.
पहले जमाने में लोगों का खान पान सबसे पोष्टिक था. उनके काम करने के तरीके और काम ऐसे होते थे की वे शारीरिक तौर पर एकदम फिट रहते थे. महिलाएं भी घर के मसाले बनवाने से लेकर खाना पकाना और खेती करना सब काम खुद करती थी. कोई प्रदुषण नहीं था इस लिए स्वास्थ्य कुछ अधिक ही अच्छा रहता था उन दिनों.
समय के मुताबिक़ आधुनिक बदलाव दिखने लगे है
जिस कारण सेहत बिगड़ने लगी है साथ में तनाव से भी दिमाग पर काफी बुरा असर हो रहा है. परिणाम यह की बीमारियों को बुलावा हमही इंसानों ने दिया है. जो कभी नहीं सुने ऐसी बीमारिया भी लोगों की जान ले रही है.
जैसे ही जमाना बदल गया है कर्म तो और भी बुरे होते जा रहे है. अनेक कारणों से उम्र में इजाफा नहीं हो रहा है. ऐसे में लम्बी आयु किसी को चाहिए तो दीर्घेश्वरनाथ मंदिर जाना चाहिए.
दीर्घेश्वरनाथ मंदिर
दीर्घ उम्र का आशीर्वाद दिए जाने से मंदिर का नाम दीर्घेश्वरनाथ पड़ा.
उत्तर प्रदेश में स्थित देवरिया के सलेमपुर मझौली राज स्थित दीर्घेश्वरनाथ मंदिर की यही खासियत है. जो भी इस मंदिर में जा कर पवित्र मन से भगवान शिव के दर्शन करता है, उसकी उम्र बढ़ जाती है.
कई बरस पहले कहा जाता था कि यहां पर भगवान शिव कुछ युगों पहले स्वयंभू शिवलिंग के रूप के उत्पन्न हुए थे. जंगल के बीचो बीच इस जंगल में लोग जाने से तब डरते थे. मगर भगवान शिव यहा दीर्घ आयु होने का आशीर्वाद देते है, इस लिए लोग इस मंदिर का रुख करने लगे है.
मंदिर से जुडी कहानी?
महाभारत काल में यह कौरवों और पांडवों के आराधना का केंद्र हुआ करता था ये स्थल.
अश्वत्थामा बड़े ही पराक्रमी ऋषिकुमार माने जाते थे. वह गुरू द्रोणाचार्य और गुरूमाता कृपि के पुत्र थे. अश्वत्थामा इसी दीर्घेश्वरनाथ मंदिर में आकर अपने आराध्य भगवान शिव की आराधना किया करते थे. किंतु अश्वत्थामा को दीर्घ आयु का आशीवाद उनके पिता ने दिया था. लेकिन दीर्घेश्वरनाथ मंदिर के पुजारी का कहना है कि अमर अश्वत्थामा शिव की आराधना यहा करता था इस लिए यह स्वयंभू शिवलिंग मंदिर को अधिक शक्ति प्राप्त है.
यह बता दू कि पुराण में अश्वत्थामा की मौत के बारे में कही लिखा नहीं है वो आज भी अमर है.
दीर्घेश्वरनाथ मंदिर में आज भी आते है अश्वत्थामा
अश्वत्थामा शिव भक्त है और यही वजह है वो हर साल शिव्राती के एक दिन पहले रात्रि के तीसरे पहर में आते हैं. जिस पद्धति से वे तब पूजा करते थे ठीक उसी तरह अभी भी श्वेत कमल सहित दूसरे पूजा संसाधनों से भगवान की पूजा करते हैं. जब सुबह मंदिर के द्वार खोले जाते है तब मालुम होता है कि शिवलिंग की पूजा की गई है.
अश्वत्थामा को देखने के लिए कई प्रयास किए गए यहा तक की मंदिर के द्वार ताले से बंद किए थे, बावजूद इसके अश्वत्थामा कैसे अंदर जाकर पूजा करता है यह पहेली आज तक नहीं सुलझी है.
मंदिर तक आप उत्तर प्रदेश के देवरिया से सलेमपुर तक बस या ट्रेन से पहुंचना होता है. वहां से 7 किमी दूर मझौली राज कस्बे में आने पर बाबा का यह मंदिर पड़ता है. यहां पर आने और यहां से जाने के लिए सुबह 7 बजे से लेकर रात के 8 बजे तक ऑटो या बस मिल जाते हैं. अगर आपको भी दीर्घ आयु चाहिए तो इस प्राचीन मंदिर के अवश्य दर्शन करना चाहिए, जहा अश्वत्थामा भी आज तक पूजा का नियम नहीं तोड पाया.