दिलीप टिर्की – भारत देश में आज भी ऐसे कई क्षेत्र है जो पिछड़े हुए हैं, इनके पिछड़े होने के कई कारण है जैसे- कुछ प्रदेश विकास के कारण पिछड़े हैं तो कुछ प्रदेश स्थानीय समस्याओं जैसे नक्सल, माओवाद के कारण पिछड़े हुए हैं।
जातियों में विशेष रूप से आदिवासियों को पिछड़ा माना जाता है और हो भी क्यों ना क्योंकि सदियों से इनका शोषण ही तो हुआ है।
लेकिन आज हम बात करने जा रहे हैं, आदिवासियों की एक पिछड़ी जात टिर्की के बारे में।
यूँ तो इतिहास के नज़रिए से देखा जाए तो तिर्की काष्ट भी पिछड़ी काष्ट में गिनी जाती है, लेकिन उड़ीसा में ऐसा नहीं है। क्योंकि यहाँ इस काष्ट ने हॉकी के खेल में एक ऐसा इतिहास रचा है, जिसे भुलाना नामुमकिन है। क्योंकि हॉकी को शीर्ष स्थान दिलाने के लिए उड़ीसा ने जो कार्य किया है शायद ही वह किसी दुसरे राज्य ने किया हो। उड़ीसा में अगर हॉकी की बात की जाए तो दिलीप टिर्की, इग्नांस तिर्की, प्रबोध टिर्की, सुभद्रा प्रधान, बिनीता टोप्पो, ब्रिजेन्द्र लकरा, ज्योति सुनीता कुल्लू, लज़ारस बरला इत्यादि ऐसे नाम है जिन्होंने अंतरास्ट्रीय स्तर पर इंडियन हॉकी को पहुँचाया है।
लेकिन आज हम बात करने वाले हैं पद्य बिभूषण से सम्मानित भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान दिलीप टिर्की के बारे में। दिलीप का जन्म उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले में 25 नवम्वर 1977 को हुआ था। दिलीप के पिता विन्सेंट तिर्की crpf के जवान थे तो वही माँ रेजीना तिर्की घर गृहणी। दिलीप का शुरूआती जीवन बड़ा ही शानदार रहा। माँ से संस्कार मिले तो वही पिता से हॉकी।
आपको बता दें कि दिलीप ने 15 साल कि उम्र में ही अपना पहला नेशनल लेवल का हॉकी मैच खेला था। और 1995 में इंग्लैंड के अगेंस्ट अपना पहला इंटरनेशनल हॉकी मैच खेला था। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि दिलीप टिर्की के नाम सबसे ज्यादा 412 हॉकी इंटरनेशनल मैच खेलने का रिकॉर्ड है। इसके अलावा दिलीप एक मात्र ऐसे ट्राइबल खिलाडी है जिन्होंने तीन ओलंपिक्स (1996 के एटलांटा ओलंपिक्स, 2000 के सिडनी ओलंपिक्स और 2004 में एथेंस ओलंपिक) में इंडिया को रिप्रेजेंट किया है।
दिलीप ने अपने हॉकी कैरिएर के साथ रेलवे और एयर इंडिया में भी काम किया है।1996 में दिलीप ने एयर इंडिया भुवनेश्वर में डिप्टी मेनेजर के पद पर अपनी सेवायें दी है।
हॉकी के क्षेत्र में दिलीप ने जो काम किये हैं, उसके सम्मान में दिलीप को सैकड़ों अवार्ड्स मिल चुके हैं, जिनमें से कुछ मुख्य सम्मान है-
1996 एकलव्य अवार्ड
2002 अर्जुन अवार्ड
2004 पद्म श्री
इसके अलावा दिलीप को ओडिशा लिविंग लीजेंड अवार्ड के साथ ढेरों अचिवेमेंट भी मिल चुके हैं।
दिलीप टिर्की की हॉकी प्लेयिंग स्ट्रेटजी को डिस्कस करते हुए बताएं तो गोल करने की टाइट मार्किंग स्किल को देखते हुए दिलीप टिर्की को वर्ल्ड के बेस्ट डिफेंडर में गिना जाता है।
फिलहाल 2010 में हेल्थ में प्रॉब्लम के कारण दिलीप टिर्की हॉकी से संन्यास ले चुके हैं। लेकिन उड़ीसा की राजनैतिक पार्टी बीजू जनता दल के प्रस्ताव पर 22 मार्च 2012 को दिलीप ने राजसभा ज्वाइन की। और अभी फिलहाल राजनीती से हॉकी को नई दिशा दे सकें इस प्रयास के साथ राज्यसभा के मेम्बर है।
भारतीय हॉकी टीम ने अब तक 8 गोल्ड मैडल जीत चुकी है, जो किसी भी देश की टीम से ज्यादा है. लेकिन हमारे देश में आज हॉकी के प्रति उदासीनता देखने को मिलती है. इसलिए आज जरूरत है कि हॉकी को आगे लाया जाए और एक बार फिर वही 1928 का इतिहास बनाया जाए।