‘मंदिर’, श्रद्धा और इज्ज़त का प्रतीक है. भगवान का घर है. लोगों के हर दुःख और पीड़ा को मिटा सकने वाली ताकत है इसमें. बच्चा पैदा नहीं होता तो मंदिर चले जाओ, काम में सफलता नहीं मिलती तो मंदिर चले जाओ. देखिये, भगवान इस दुनिया नामक गाँव का मुखिया है जो यहाँ रहने वाले सभी लोगों के मसले हल करता है. समझे?
मंदिर पहुँचने पर लोगों के आत्मविश्वास में ऐसे कमाल का इजाफा होता कि मानो वे उस मंदिर के पुजारी ही बन गए हो.
इस पोस्ट में मंदिर में लोगों से की गई तरह-तरह की हरकतों का विस्तार से विवरण किया गया है.
1. धक्का-मुक्की
गणेश चथुर्ती के समय मुंबई के परमपूज्य गणपति लालबाग में विराजमान होते हैं. हर साल यहाँ बाप्पा की झलक पाने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए लाखों भक्तों का तांता लगा रहता है. इन लाखों लोगों में, बाप्पा का आशीर्वाद लेने के लिए धक्का-मुक्की ना हो, ऐसा होना तो नामुमकिन रहा. और कई मंदिर और धार्मिक जगहें हैं जहां लोगों की धक्का-मुक्की जोरो-शोरो से देखी जा सकती है. ख़ासकर ‘कुम्भ’ का मेला.
2. ऊबे हुए पंडितों की हरकतें.
बेचारे पंडित! दिन भर सारी की सारी भीड़ के दान को भगवान की मूर्ति तक पहुंचाना और फिर उन सभी भक्तों को भगवान का अनमोल प्रसाद बिना रुके देना कोई ऐरे-गैरों का काम थोड़ी न है. लेकिन हर आदमी(पंडित) की एक सीमा होती है. कई भक्त तो ऐसा सुनने में आता है कि पंडितों को चिढा-चिढा कर भागते हैं. भला बताओ, ऐसे में आदमी भगवान की सेवा कैसे करे?
3. भुक्कड़ महाशयों की भीड़.
ऐसे लोगों की कमी नहीं जो सिर्फ प्रसाद खाने के लिए मंदिर में आते-जाते हैं. श्रद्धा तो बस एक बहाना है, असल में तो प्रसाद खाना है. एक तो मंदिर का प्रसाद होता ही स्वादिष्ट है. ऐसे में रहा नहीं जाता. और ऊपर से मुफ्त का होता है. तो क्यों अपना हक ना जमाएं?
4. चप्पल चोर
एक कहावत है, “मंदिरों से चप्पल चुराए नहीं जाते, जिनको ज़रुरत होती है वे ले लेते हैं.” काफी लोगों की चप्पलें चुरा ली जाती हैं और जिनकी चप्पलें चुरा ली जाती हैं वे दूसरों के चप्पल चुरा लेते है. माफ़ कीजियेगा, ‘ज़रुरत होती है इसलिए ले लेते हैं’.
5. मंत्र हैं या गानें?
जोर-जोर से, गला फाड़ कर मंदिरों में मंत्रों या श्लोकों का वर्णन करना तो लोगों की पुरानी आदत रही है. लोग इस तरह मंत्र/श्लोक सुनाते हैं कि मानो किसी कोर्ट में वे खुद के वकील हैं और अपनी बेगुनाही साबित करने की भरपूर कोशिश करने में जुटे हैं.
6. मैं तो लेट कर ही नमन करूंगा.
जो लोग मंदिरों में भगवान की मूर्ति के सामने लेट कर नमन करते हैं, वे सबसे खतरनाक भक्तों की श्रेणी में आते हैं. ज़रा सोचिए, अगर कोई भक्त बेचारा मूर्ति पर हार-फूल चढाने जा रहा हो और उसके सामने अचानक से एक आदमी पेट के बल लेट जाए और कभी ना ख़त्म होने वाली अर्चना में लग जाए. बेचारे पिछले भक्त की क्या हालत होती होगी?
7. प्यार हमारा धर्म है.
लडकियों को टापने के बहाने मंदिरों में आए लोगों से सदा बचकर रहिए. बढ़िया कपडे पहने, लाइन में सबसे पहले घुसकर मत्थे पर टीका लगवा लिया और लगे लड़कियों को ताड़ने. ‘सदभावना’ की ऐसी की तैसी यार. हम तो सिर्फ लड़कियों की पूजा करेंगे.
सबका अपना-अपना अलग अंदाज़ होता है. जी हाँ! मंदिरों में भी. मुझे पूरा यकीन है आपका भी ऐसे लोगों से पाला पड़ा ही होगा. खैर, मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों पर जाओ तो कृपया शुद्ध मन से जाओ. वरना फ़िज़ूल की श्रद्धा भावना से जाने का क्या फायदा?