धर्म और भाग्य

मरने के बाद यहाँ देनी होती है मनुष्‍य की आत्‍मा को हाजिरी !

धर्मेश्‍वर महादेव मंदिर – हिंदू धर्म में तीर्थस्‍थलों और मंदिरों का विशेष महत्‍व है।

इस धर्म को मानने वाले लोग हर मंदिर में माथा टेक कर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना करना चाहते हैं। देशभर में स्‍थापित सभी मंदिरों और तीर्थस्‍थलों की स्‍थापना के पीछे कोई ना कोई कहानी या कथा जुड़ी हुई है। इन मंदिरों की स्‍थापना किसी उद्देश्‍य से की गई थी या फिर इनसे कोई ना कोई पौराणिक कथा संबंधित है।

देश में इतने मंदिर हैं कि सभी को देख पाना हर इंसान के लिए संभव नहीं है। सभी जानते हैं कि जीवन के बाद मृत्‍यु तो आनी ही है और मृत्‍यु को कोई नहीं रोक सकता है। जीवन है तो मृत्‍यु भी होगी ही। मृत्‍यु के देवता है यमराज जिनसे हर कोई डरता है।

धरती पर यमराज जी का ही एक मंदिर है, धर्मेश्‍वर महादेव मंदिर, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इस धर्मेश्‍वर महादेव मंदिर में कोई जाना तो नहीं चाहता लेकिन जाना पड़ता है। यमराज का ये मंदिर हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में स्थित भरमौर नामक स्‍थान पर है। इस धर्मेश्‍वर महादेव मंदिर की खासियत है कि यहां लोग बाहर से ही प्रणाम करके चले जाते हैं और मंदिर के अंदर प्रवेश नहीं करते हैं।

धर्मेश्‍वर महादेव मंदिर देखने में आम घरों की तरह है जिसे यमराज का घर का कहा जाता है।

इस मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्‍त का कक्ष कहा जाता है। चित्रगुप्‍त, यमराज के सचिव हैं जो जीवात्‍मा के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं।

मान्‍यता है कि जब किसी मनुष्‍य की मृत्‍यु होती है तो यमराज के दूत उस व्‍यक्‍ति की आत्‍मा को पकड़ कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्‍त के सामने प्रस्‍तुत करते हैं। यहां पर चित्रगुप्‍त जीवात्‍मा को उनके कर्मों का पूरा ब्‍योरा देते हैं। इसके बाद चित्रगुप्‍त के सामने के कक्ष में आत्‍मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को यमराज की कचहरी कहा जाता है।

किवंदती है कि इस धर्मेश्‍वर महादेव मंदिर में यमराज कर्मों के अनुसार आत्‍मा को अपना फैसला सुनाते हैं। इस मंदिर में चार अदृश्‍य द्वार हैं जो स्‍वर्ण, रजत, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्‍मा को कर्मों के अनुसार इन्‍हीं द्वारों से स्‍वर्ग या नर्क में ले जाते हैं।

गरुड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वार का उल्‍लेख किया गया है। कहते हैं कि मरने के बाद मनुष्‍य की आत्‍मा यहीं आती है और इसी स्‍थान पर उसके कर्मों का निर्णय होता है।

मनुष्‍य को यमराज और चित्रगुप्‍त दोनों मिलकर उसके अच्‍छे और बुरे कर्मों का फल देते हैं। जिसने जैसे कर्म किए होंगें उसे यहां पर वैसा ही फल मिलेगा। कहते हैं कि यमराज किसी को भी उसके कर्मों का फल देने में नरमी नहीं बरतते हैं।

इसी मंदिर से जीवात्‍मा की स्‍वर्ग और नर्क की यात्रा शुरु होती है। स्‍वर्ग में जीवात्‍मा को कई प्रकार के सुख मिलते हैं तो वहीं नर्क में कई तरह की यातनाएं दी जाती हैं।

यमराज यानि मृत्‍यु के देवता का धर्मेश्‍वर महादेव मंदिर होने के कारण लोग बाहर से ही माथा टेक कर चले जाते हैं। मंदिर के अंदर प्रवेश करने का मतलब है मृत्‍यु को निमंत्रण देना।

Parul Rohtagi

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