दिल्ली रेप वाली सिटी – दिल्ली हमारे देश की राजधानी नहीं, बल्कि रेप सिटी है.
जी हाँ, अब इसे अगर इसी नाम से पुकारा जाए तो गलत नहीं होगा. दिल्ली की बात ही कुछ ऐसी हो गई है. कभी ऐतिहासिक सिटी और राजधानी के नाम से मशहूर ये दिल्ली न जाने कब क्राइम नगरी बन गई, पता ही नहीं चला. दिल्ली की निराली वाली बात अब कहीं खो-सी गई है. वो दिल्ली, जो लोगों को दिल वाली लगती थी अब क्राइम वाली लगने लगी है. दिल्ली वही है, लेकिन उसका रूप बदल गया है.
अब दिल्ली को दुनिया में लोग दिल वाली नहीं बल्कि दिल्ली रेप वाली सिटी के नाम से जानते हैं.
दिल्ली रेप वाली सिटी –
कितने शर्म की बात है कि हमारी राजधानी ही सुरक्षित नहीं है.
जो हमारे देश का नेतृत्व करती है वही पापी बन गई है. आंकड़ों के लिहाज़ से दिल्ली में आए-दिन लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और रेप जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं. रात ८ बजे के बाद से शहर की गलियां और सड़कों पर इंसान नहीं बल्कि दरिन्दे घूमते हैं. इस शहर में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं. दिल्ली में अब भी हर रोज कम से कम 5 लड़कियां के साथ बलात्कार हो ही जाता है.
जी हां, हर रोज कम से कम 5 लड़कियों के साथ.
सुनकर आपको हैरानी जरूर हो रही होगी, लेकिन ये आंकड़े बिलकुल सच हैं और ये दिल्ली पुलिस के आंकड़े हैं, जो उसने इस साल की एनुअल प्रेस कांफ्रेंस में ये कहते हुए जारी किये है कि अब दिल्ली में महिलाएं सुरक्षित हैं. दिल्ली पुलिस के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो दिल्ली में रोज़ कम से कम ५ लड़कियों से बलात्कार होता है. हैरानी की बात ये है कि रेप के 96 फ़ीसदी घटनाओं में जानकार ही गुनहगार होते हैं. यही वजह है कि रेपिस्ट में सबसे ज़्यादा तादाद ‘फैमिली फ्रेंड्स’ की है.
इसका मतलब ये हुआ कि ये कुकर्म करने वाला कोई बाहरी नहीं बल्कि हमारे बीच का ही होता है, जो मौका देखकर लड़कियों पर वार करता है.
हो सकता है कि दिल्ली को ये बात गलत लगे कि हम दिल्ली रेप वाली सिटी कह रहे हैं, क्योंकि कहने को वो कह सकती है कि 2016 के मुकाबले 2017 में रेप, शील भंग और छेड़छाड़ यानी महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले जुर्म के मामलों में कमी आई है.
लेकिन सच्चाई तो ये है कि पिछले दो सालों में रेप के सिर्फ़ 15 मामले ही कम हुए हैं. ये कमी कोई कमी नहीं कहलाती.
आइए आपको बताते हैं कि कब कितने मामले हुए.
२०१६- 2 हज़ार 64 रेप की वारदातें हुई.
२०१७- 2 हज़ार 49 लड़कियां रेप का शिकार बनीं.
ये मामूली सा अंतर कोई अंतर नहीं है. रेप की कितनी घटनाएं तो दर्ज भी नहीं होतीं. समाज के डर के नाते लड़कियां पुलिस स्टेशन तक नहीं जातीं. वो घर में ही इसे चुपचाप सह लेती हैं. कई बार लड़कियों की चुप्पी का फायदा उठाकर उनपर दोबारा रेप अटेम्प्ट किया जाता है. लड़के उन्हें कमज़ोर समझ लेते हैं और उनपर दोबारा ट्राई करते हैं.
अगर आप भी दिल्ली में रहती हैं और अपनी सुरक्षा को लेकर बेपरवाह हैं, तो ये ठीक नहीं है. ये शहर शायद आपके लिए नहीं है. आप संभल जाएं और अपनी सुरक्षा खुद करें, क्योंकि दूसरा कोई आपकी मदद को आगे नहीं आएगा.
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