दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उसकी दिल्ली सरकार ने ना जाने दिल्ली के किस कोने में सर्वे कराया कि दिल्ली वाले आड-ईवन से खुश है और अब हर महीने सड़कों पर निजी गाड़ियाँ 15 दिन इसी स्कीम के तहत निकला करेंगी.
लेकिन क्या हमारे मुख्यमंत्री इन 15 दिनों खुद अपनी गाड़ी का इस्तेमाल छोड़कर सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग कर पायेंगे?
नहीं वह खुद अपनी गाड़ियों से ही खाली सड़कों के मजे लेंगे. उनके विधायक भी जो अब वीआईपी बन चुके हैं वह भी आराम से ऑफिस पहुँच जाया करेंगे.
ऐसा लगता है जैसे कि वह यह योजना सिर्फ और सिर्फ अपने आराम के लिए लागू कर रहे हों.
ऐसा हम इसलिए बोल रहे हैं क्योकि यदि दिल्ली की जनता के लिए सार्वजनिक यातायात अच्छा और दुरुस्त होता तो वैसे ही कोई निजी वाहनों का प्रयोग नहीं करता. लेकिन दिल्ली के कई इलाकों में इस स्कीम से समस्या ही खड़ी होने वाली है. खुद वातानुकूलित कमरों में बैठे दिल्ली सरकार के हमारे नेता इस समस्या को नहीं समझ सकते हैं.
दिल्ली के यमुनापार इलाकों में जनता इन पन्द्रह दिन सही से रोने वाली है. यहाँ न मेट्रो है और ना ही अच्छी बस सर्विस हैं. ऐसे और भी कई इलाके हैं जहाँ जनता की परेशानी देखने कोई नहीं आने वाला है.
हाल ही में जब जूता मारा गया अरविन्द केजरीवाल को!
अभी जब इस स्कीम की घोषणा केजरीवाल कर रहे थे तो उनके ऊपर एक व्यक्ति ने जूता मारा था. वह व्यक्ति जोर-जोर से चिल्ला रहा था कि सीएनजी वाले वाहनों के स्टीकर को बाटने में घोटाला हो रहा है. आपको बता दें कि अगर किसी का वाहन सीएनजी से चलता है तो उसको एक स्टीकर गाड़ी पर लगाना होता है जो दिल्ली का परिवहन विभाग देता है.
अब यही स्टीकर 2000 रुपैय में उन वाहनों को भी बांटा जा रहा है जो सीएनजी से नहीं चलते हैं. इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी मुख्यमंत्री पर इस व्यक्ति ने दी है.
लेकिन इसका कोई असर मुख्यमंत्री पर नहीं हुआ था. इसलिए मजबूरन उस व्यक्ति को यह गलत कदम उठाना पड़ा.
अब लोग खरीद रहे हैं ज्यादा गाड़िया !!!
15 अप्रैल से शुरू हो रहे आड-ईवन के कारण दिल्लीवासी अब दो-दो गाड़ियाँ खरीद रहे हैं. नार्मल दिनों में घरों से दो-दो गाड़ियाँ निकलती हैं. जहाँ पहले एक घर में एक गाड़ी थी अब दो हो गयी हैं और नार्मल दिनों में सड़कों की हालत और भी खराब हो रही हैं.
जो करना चाहिए था वह नहीं कर पाए मुख्यमंत्री
अपनी नाकामी को छुपाते हुए मुख्यमंत्री यह काम कर रहे हैं. जबकि वह दिल्ली के लिए नई बसें दे सकते थे और कई तरह की नई मेट्रो चलवा सकते थे. छोटे सार्वजनिक वाहनों को सड़कों पर ला देते ताकि जनता आराम से सफ़र कर पाती लेकिन दिशाहीन शासन की वजह से मुख्यमंत्री बस काम नहीं हल्ला मचाने का काम कर रहे हैं.
सरकारी विज्ञापनों से जनता का ध्यान भंग कर रहे हैं जबकि सरकार ने चुनावों में किया अपना कोई भी वादा पूरी तरह से पूरा नहीं किया है.
तो कुल मिलाकर आने वाले पंद्रह दिनों 15 अप्रैल से जनता की बैंड बजना तो अब निश्चित हो चुका है.