आज जहां भी देखा जाए वहां सिर्फ महिलाओं के हक की बात की जाती है. इतना ही नहीं महिलाओं के हक में कई कानून भी बनाए गए हैं ताकि किसी भी महिला के साथ कोई नाइंसाफी ना हो सके.
ऐसा बहुत कम ही देखने या सुनने को मिलता है कि कोई मर्दों के हक के लिए लड़ाई लड़ता है. लेकिन हम आपको बता दें कि हमारे हिंदुस्तान में ही एक ऐसी महिला है जो मर्दों के हक की लड़ाई लड़ती है.
आखिर क्यों ये महिला महिलाओं के बजाय मर्दों के हक की लड़ाई लड़ती है चलिए हम इस पूरी खबर से आपको रूबरू कराते हैं.
पुरुष भी होते हैं प्रताड़ना का शिकार
दरअसल चंडीगढ़ में रहनेवाली दीपिका नारायण नाम की महिला ने पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई की फिर इंफोसिस में जॉब किया. लेकिन उन्हें ये जॉब रास नहीं आया इसलिए ये जर्नलिज्म में आ गईं.
जर्नलिज्म में आने के बाद दीपिका ने एक टीवी चैनल में काम किया लेकिन उसे भी छोड़कर मर्दों के अधिकारों के लिए लड़ने लगीं.
दीपिका की मानें तो उन्होंने नौकरी के दौरान देखा कि महिलाएं तो दुखी होती ही हैं लेकिन पुरुष भी महिलाओं की तरह ही प्रताड़ना के शिकार होते हैं. महिलाओं के हक के लिए तो हर कोई लड़ता है लेकिन पुरुषों के न्याय के लिए कोई नहीं लड़ता. यह सोचते हुए दीपिका नारायण ने मर्दों को न्याय दिलाने का बीड़ा उठाया है.
लंबे समय से पुरुषों के हक की लड़ रही हैं लड़ाई
दीपिका नारायण पुरुषों के अधिकारों के लिए लंबे समय से आवाज उठा रही हैं. वो दहेज प्रताड़ना कानून के तहद फंसाए गए पुरुषों को कानूनी मदद मुहैया कराती हैं.
दीपिका नारायण का कहना है कि धारा 498A (दहेज कानून) का कुछ महिलाओं द्वारा दुरुपयोग किया जाता है. इस काम केअलावा वो डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाती हैं.
दरअसल साल 2011 में दीपिका के एक रिश्तेदार की शादी टूटी थी और उसकी बीवी ने पूरे परिवार के खिलाफ दहेज का मामला दर्ज करा दिया था. तब उनके परिवार ने बड़ी रकम देकर इस मामले को खत्म किया. बस तभी से दीपिका नारायण के मन में ये बात घर कर गई थी कि वो इस कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए लड़ेंगी.
इस घटना के बाद से दीपिका नारायण ने दहेज प्रताड़ना पर अपनी रिसर्च शुरू की और यह पाया कि ज्यादातर दहेज प्रताड़ना के मामले झूठे हैं.
महिला संगठनों ने किया विरोध
आपको बता दें कि साल 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद दुष्कर्म रोकने के लिए भी संसद ने कठोर कानून बनाए. दीपिका ने इसका भी जमकर विरोध किया. उनका मानना है कि कई औरतों द्वारा इन कठोर कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है और पुरुषों को बेवजह फंसाया जा रहा है.
हालांकि कुछ महिला संगठनों ने दीपिका नारायण का विरोध भी किया और दीपिका पर महिला विरोधी होने के आरोप भी लगाए हैं.
बहरहाल भले ही कोई दीपिका नारायण का कितना भी विरोध क्यों ना करे लेकिन दीपिका ने पुरुषों को न्याय दिलाने का बीड़ा उठाया है जिसे वो बखूबी निभा रही हैं.
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