क्या कभी मरा हुआ इंसान भी किसी को रास्ता बता सकता है?
आप सोच रहे होंगे कि ये क्या बेवकूफों जैसा सवाल है, जो मर गया है वो कैसे किसो को रास्ता बताएगा, लेकिन इस दुनिया में कुछ ही असंभव नहीं है, बहुत सी ऐसी चीज़ें होती है जिसके बारे में आप सपने में भी नहीं सोच सकते है. एक ऐसी ही सच्चाई हम आपको बताने जा रहे हैं जिसके बारे में शायद आप कभी सोच भी नहीं सकते हैं.
माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई ना तो आसान है, ना ही सस्ती. फिर भी सालों से यहां लोग पर्वतारोहण के लिए जा रहे हैं. इस दौरान ट्रेकिंग करने वालों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. खराब मौसम, हिमस्खलन, खाने-पीने की समस्या, बर्फ की वजह से शरीर का सुन्न हो जाना और टेढ़े-मेढ़े रास्तों को पार करते हुए मंजिल तक पहुंचना आसान नहीं है. कई लोग बीच सफर ही यहां दम तोड़ देते हैं. दुर्भाग्यवश, कईयों को तो अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं होता…
माउंट एवरेस्ट पर कम से कम 200 लाशें ऐसी हैं जो बरसों से वहां पड़ी हुई हैं. करीब 26 हजार फीट की ऊंचाई पर मौत की वजह से उनके शव को नीचे लाकर या उसी जगह पूरे रीति-रिवाज से उनका अंतिम संस्कार करना मुमकिन नहीं. लिहाजा, अब उनका इस्तेमाल लैंडमार्क के तौर पर किया जाता है.
माउंट एवरेस्ट पर मौजूद कई लाशें अब अन्य पर्वतारोहियों को रास्ता दिखाती है।
लगभग हर लाश को एक नाम दिया गया है और उन्हें बतौर लैंडमार्क मानकर ट्रेकर्स आगे का रास्ता पता लगाते हैं. तस्वीर में दिख रही लाश को ‘ग्रीन बूट्स’ कहा जाता है. यह सेवांग पालजोर का शव है. उनकी मौत 1999 में आए तूफान की वजह से हो गई थी.
यह लाश एक महिला की है. उनका नाम Hannelore Schmatz था और वह जर्मनी की थीं. कहा जाता है कि चढ़ाई के वक्त वह बहुत थक गई थीं और आराम करने के लिए अपने बैग के सहारे लेट गईं. थोड़ी देर सुस्ताने के लिए वह वहां बैठी तो थीं, मगर कभी उठ नहीं पाईं. उसी अवस्था में उनकी जान चली गई. विशेषज्ञों के अनुसार, एवरेस्ट पर मौत की यह एक बड़ी वजह है. सोते वक्त कई लोगों की जान यहां जा चुकी है. कहा जाता है कि वह एवरेस्ट पर मरने वाली पहली महिला थीं।
दो पर्वतारोही जब हिमालय की चढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें रास्ते में एक महिला चीखती नजर आई. वह बर्फ में दबी हुई थी और रो रोकर गुजारिश कर रही थी ‘प्लीज मुझे बचा लो’. मगर उसे बचाना मुमकिन नहीं था. उस वक्त महिला को बचाते-बचाते खुद उन दोनों की जान भी चली जाती. लिहाजा, दोनों पर्वतारोही आगे बढ़ गए और महिला की मौत हो गई. मगर उन दोनों को अपने इस फैसले पर इतनी ग्लानी हुई कि उन्होंने आठ साल तक पैसे इकट्ठा किए और वापस वहां जाकर उस महिला का शव नीचे लेकर आए. फिर उसका सम्मानजनक अंतिम संस्कार किया.
ये खबर पढ़कर आपको भी हैरानी हुई होगी, मगर बार परिस्थियां हमारे वश में नहीं होती और हम चाहकर भी किसी की मदद नहीं कर पातें.
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