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शुरूआती हिंदू मृत शरीरों को गाड़ते थे, जलाते नहीं थे!

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सनातन धर्म में ऐसी कई मान्यताएं हैं जिनका आरंभ कब हुआ था किसी को नहीं पता, लेकिन आज भी, हज़ारों सालों बाद दुनिया भर के सनातनी इन सभी मान्यताओं का आदर से पालन करते हैं.

ऐसी कई मान्यताओं में से एक है कि एक इंसान के मर जाने के बाद उस इंसान के शरीर को जला देना चाहिए. रोज़ हज़ारों हिंदू मरते हैं और हज़ारों चिताएं जलती हैं लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि ऐसा भला क्यों होता है?

हिंदू मृत शरीरों को इसलिए जलाते हैं क्योंकि एक मान्यता है कि अंदर बसी आत्मा, शरीर में इतने समय तक रहने के बाद, शरीर से उसका जुड़ाव हो जाता है और अगर किसी मृत शरीर को गाड़ा जाए तो आत्मा इतनी जल्दी उस शरीर का पीछा नहीं छोड़ती, इसलिए हिंदू मान्यताओं में मृत शरीरों को जलाया जाता है ताकि आत्मा को बिना किसी दिक्कत के मुक्ति मिल जाए.

ये सब पढने के बाद आपके दिमाग में एक और सवाल उठ रहा होगा!

फिर बच्चों के और साधुओं के मृत शरीरों को क्यों नहीं जलाया जाता है?

साधुओं के मृत शरीरों को इसलिए नहीं जलाया जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है की उनकी आत्मा तो वैसे ही घनी तपस्या की वजह से मुक्त होती है और बच्चों के मृत शरीरों को इसलिए गाड़ सकते हैं क्योंकि आत्मा और शरीर का घनिष्ट जुड़ाव नहीं होता!

जब 20वी सदी में मोहन जो दारो में खुदाई हुई थी तो पुरातत्त्ववेत्ताओं ने एक ऐसी बात खोज निकाली जिसे काफी समय तक दबाया गया था. वहाँ, खुदाई में मिले इंसानी शरीर के अवशेषों की वजह से पता चला था कि इस इलाके में रहनेवाले, इंद्र और पशुपतिनाथ की पूजा करनेवाले लोग मृत शरीरों को गाड़ा करते थे.

यानी इससे यह बात एक हद तक सिद्ध हो जाती है कि सनातनी/हिंदू मृत शरीरों को गाड़ा करते थे.

अब इसमें कितनी सच्चाई है, इसका पता तो अब कोई नहीं लगा सकता लेकिन खुदाई और खोज-बीन में मिली चीज़ों की वजह से, मृत शरीरों को गाड़नेवाली बात पर विश्वास न करना हज़म नहीं होता है.

मरने के बाद शरीर को गाड़ें या शरीर को जलाएं, सभी धर्मों का मतलब एक ही होता है.

हिंदू मानते हैं कि आत्मा को शरीर से मुक्ति मिलती है और इसाई मानते हैं कि जब विश्व ख़त्म होनेवाला होगा तो स्वयं भगवान् इन सभी शरीरों के अंदर जान फूकेंगे. दोनों का मतलब एक ही है, मृत शरीरों की इज्ज़त करना.

पढने के लिए धन्यवाद!