ये सच्ची कहानी सुनकर आप भी कहेंगे कि ‘अगले जनम मोहे बिटिया ही दीजो’
आज भी डिमांड जोरो पर है कि घर में पहले बेटा ही जन्मे. उसके बाद ही बेटी जनम ले सकती है. कहने के लिए समाज बहोत मॉडर्न हो गया है लेकिन अभी भी सच्चाई से लोग कोसो दूर है.
अभी भी देश के कई ऐसे पिछड़े इलाके है, जहां बेटियों का गला दबा दिया जाता है, उन्हें पैदा होते ही जान से मार दिया जाता है.
ऐसा करनेवालो को ये ताज़ा किस्सा गौर से पढना चाहिए.
हमें यकीन है कि इस बेटी का बलिदान देखकर आप भी बेटों की अपेक्षा अपनी बेटियों से बेइंतिहा प्यार करने लगेंगे.
खबर भोले बाबा की नगरी बनारस से है. बनारस के मिर्जापुर में रहने वाली वीणा उपाध्याय ने देश की सभी बेटियों का सर गर्व से उठा दिया है.
दरअसल 28 साल की वीणा उपाध्याय ने अपने 60 साल के पिता को अपना लीवर दान दिया है.
कुछ दीनो पहले मिर्जापुर के अंतर्गत आने वाले बहुआर गावं के पूर्व प्रधान रविप्रकाश त्रिपाठी के लीवर में अचानक सुजन आ गई. डॉक्टर को दिखाने पर पता चला कि उस लीवर को बदलना होगा, वरना उनकी दर्दनाक मौत हो सकती है.
कष्टकारी बात तो ये है कि रविप्रकाश के दोनों ही बड़े बेटो ने उन्हें लीवर देने से इनकार कर दिया. दोनों बहुएं भी अपने रस्ते चलती बनी.
ऐसे में अपने पिता की जान बचाने के लिए उनकी एकलौती बेटी वीणा उपाध्याय ने वो कदम उठाया, जो सिर्फ बेटी ही कर सकती है.
वीणा ने अपने जीवन की चिंता किए बगैर अपना लीवर पिता रविप्रकाश को दान कर दिया और ये साबित कर दिया की बेटियाँ माँ-बाप पर बोझ कतई नहीं हो सकती.
आसान नहीं था वीणा का लीवर देना
हम जितना आसान सोच रहे है, उतना आसान नहीं था वीणा का अपने पिता को लीवर देना.
वीणा उपाध्याय की 2 बेटियाँ भी है. वीणा पेशे से टीचर है. उनके ससुर हमेशा बीमार होते है. सांस का देहांत हो चुका है. यानि घर की सारी ज़िम्मेदारी वीणा पर है. बावजूद इसके वीणा ने लीवर देने का पक्का इरादा किया.
वीणा ऑपरेशन थियेटर में मुस्कुरातें हुए गई
वीणा उपाध्याय के ससुर और उनके पतिदेव मनीष का महत्वपूर्ण योगदान है इस लीवर ट्रांसप्लांट में.
ससुर श्रीपति उपाध्याय कहते है कि ऑपरेशन थियेटर में जाते समय वीणा ने मेरा और मेरे बेटे का पैर छुकर आशीर्वाद लिया और फिर हम सभी की तरफ देखते हुए हँसते-हँसते ऑपरेशन कराने चली गई. ऐसी बहु इश्वर सभी को दे.
जिस बाप ने कभी अपनी बेटी को कलेजे के टुकड़े की तरह प्यार किया था, आज उसी बेटी ने अपने पिता को अपना कलेजा ही निकाल कर दे दिया है.
कुल 11 घंटे ऑपरेशन चला और सफल भी हुआ. अब इस वक्त वाराणसी के मेबांता अस्पताल में बाप-बेटी धीर-धीरे स्वस्थ हो रहे है.
आज ये बेटी का बलिदान लेख को लिखते हुए मै खुद को धन्य समझ रहा हूँ.
बेटी का बलिदान देखकर आप भी कहेंगे अगले जनम भी मोहे बिटिया ही दीजो !
वैसे आप क्या कहते है, ये हमारे लिए अहम् है…
धन्यवाद !
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