डाबर घराने की लडकियाँ क्यों जमा कर रही हैं साबुन की टिकियाँ?
आज के युग में हर कोई अपनी – अपनी जिंदगी में व्यस्त है.
आज बढ़ती तकनीकी सुविधा के आगे लोग जरूरत की उन चीजों को नजरअंदाज कर जाते हैं, जो किसी के बहुत काम आ सकती है.
लेकिन 16 साल की एक लड़की ने जो कुछ किया, उसे जानकर आप भी कहेंगे कि अभी अच्छाई की कमी नहीं. इस छोटी सी उम्र में जहां लोग अपने आप में ही व्यस्त रहते हैं. वहां 16 साल की लड़की दिया ने ऐसा काम कर दिखाया, जो हमारे समाज के लिए मिसाल कायम करने वाला है.
आइए हम आपको बताते हैं कि आखिर 16 साल की दिया बरमन ने ऐसा क्या किया, कि हम उसके कायल हो जाएं.
सबसे पहले तो हम आपको बता देना चाहेंगे कि दिया बरमन डाबर ग्रुप के वाइस चेयरमैन अमित बरमन की बेटी हैं. दिया बरमन ने सिर्फ 16 साल की छोटी सी उम्र में अपना एक स्टार्टअप शुरू किया है. दीया की उपलब्धि और खास इसलिए हो जाती है, क्योंकि उनके नाम के साथ डाबर इंडिया का नाम भी जुड़ा हुआ है.
हाइजीन से जुड़ा है स्टार्टअप
काम की शुरूआत में दिया बरमन ने दिल्ली के सभी मेजर हॉस्पिटैलिटी चैन जैसे जेडब्ल्यू मैरियट, ओबेरॉय, रेडिसन ब्लू इत्यादि से इस्तेमाल में लाने के बाद बचे हुए साबुनों को जमा करने का काम शुरू किया. इसके बाद दिया ने उन साबुनों को एक ऐसी यूनिट में भेजा, जहां उसे गर्म करके दोबारा पिघला कर, फिर इन्हें फ्रेश कर, सोप का रुप दिया गया. इस सोप का नाम RogFree रखा गया. और इस RogFree के साबुनों को गांव के लोगों में फ्री में बांटा जा रहा है.
कहां से आया आइडिया
दिया बरमन का कहना है कि उनके दिमाग में यह आइडिया तब आया, जब एक बार व किसी होटल में हाथ धो रही थी. तभी दिया ने देखा कि हाउसकीपिंग स्टाफ ने वहां से साबुन को हटा दिया. और फिर वहां नया साबुन रख दिया. जबकि वो साबुन सिर्फ एक बार हीं इस्तेमाल किया गया था. तभी उनको लगा की हमारे देश में ना जाने ऐसे कितने लोग हैं, जिनके पास ये बेसिक चीजें उपलब्ध नहीं है. ये वजह है कि लोग बीमारियों का शिकार हो जाते हैं. बस वहीं से दीया ने ठान लिया कि बेकार पड़े साबुनों को नए तरीके से इस्तेमाल में लाकर समाज की भलाई में लगाया जा सकता है और व उस काम को करेंगी.
दीया ने दिल्ली में उस काम की शुरुआत की और बाद में रोग फ्री को मुंबई भी लाना चाहती है.
बाकि में दिया की सोच और उस सोच को अंजाम तक पहुंचाने का काम जो दिया नहीं किया है, वो काबिले तारीफ है.