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कटक का ये चाय वाला कर रहा है गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम

डी प्रकाश राव

डी प्रकाश राव – दुनिया में कुछ इंसान ऐसे होते हैं जो दूसरों की हंसी में अपनी खुशी ढूंढ़ते हैं और ऐसे लोग अपने लिए नहीं दूसरों के लिए ही जाते हैं।

एक ऐसे ही शख्स हैं डी प्रकाश राव. कटक में चाय बेचने वाले प्रकाश राव अपने लिए नहीं बल्कि गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए जी रहे हैं. चलिए आपको मिलवाते हैं बच्चों के मसीहा बने प्रकाश राव से.

ओडिशा की राजधानी से करीब 30 किलोमीटर दूर बसे शहर कटक में सड़क के किनारे बसी एक झोपड़पट्टी में 61 साल के डी प्रकाश राव रहते हैं. उन्होंने कभी कॉलेज में कदम नहीं रखा फिर भी अच्छी हिन्दी और अंग्रेज़ी बोल लेते हैं. बीते लगभग 50 सालों से वो चाय बेचते आ रहे हैं. लेकिन उनके लिए चाय बेचना अपनी कमाई का ज़रिया नहीं है बल्कि ग़रीब बच्चों को पढ़ाई में मदद करने का ज़रिया है.

डी प्रकाश राव

60 साल के डी प्रकाश राव जब 6 साल के थे, तब उनके पिता ने ये कहकर पढ़ाई छुड़वा दी थी कि, पढ़ाई में सिर्फ़ पैसा बर्बाद होता है, इससे कुछ हासिल नहीं होता. तब से लेकर आज तक राव चाय बेचने का काम कर रहे हैं. मगर उनके मन को हमेशा एक बात कचोटती रहती थी कि वो कभी पढ़ नहीं पाए. राव ये बात भलि-भांति समझ गए थे कि एक अच्छा और ख़ुशहाल जीवन बिताने के लिए पढ़ाई ज़रूरी है. इसलिए मन में ठान लिया कि वो ग़रीब बच्चों की पढ़ाई का प्रबंध करेंगे.

काम मुश्किल था, मगर इरादे मज़बूत थे. इसलिए वो इसमें सफल भी हुए. राव पिछले 17 वर्षों से कटक के स्लम एरिया के बच्चों की पढ़ाई का ख़र्च उठा रहे हैं. उन्होंने यहां एक छोटा सा स्कूल खोला है, जिसमें 4 टीचर्स हैं. बच्चों की पढ़ाई और शिक्षकों के वेतन की सारी ज़िम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है.

डी प्रकाश राव

ये काम इतना आसान भी न था. उनका कहना है कि पहले इन बच्चों के माता-पिता इन्हें पढ़ने के लिए उनके स्कूल में नहीं भेजते थे. बच्चे भी खेल-कूद में लगे रहते. मगर जब राव ने बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खाना देना शुरू किया, तब बच्चे स्कूल आने लगे. एक ग़रीब परिवार के बच्चों की सबसे बड़ी ज़रूरत खाना ही होता है. वो यहां पूरी होने लगी और शिक्षा का रास्ता भी खुल गया.

डी प्रकाश राव ने इन बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा देने के बाद इनका दाखिला पास के ही सरकारी स्कूल में करवाया, ताकि उनकी पढ़ाई जारी रहे. हाल ही में हुए ‘मन की बात’ कार्यक्रम में पीएम मोदी ने इनका ज़िक्र किया था. तब से लोग इन्हें जानने लगे हैं.

डी प्रकाश राव

ANI से बात करते हुए राव ने कहा- ‘मैं नहीं चाहता था कि पैसे की तंगी की वजह से इन बच्चों की पढ़ाई छूटे. इसलिए मैंने अपने टी-स्टॉल और स्कूल के बीच समय को बांट लिया है. आज मेरे स्कूल में 70-75 बच्चे पढ़ते हैं. चाय की दुकान से सीज़न में मैं 700-800 रुपये कमा लेता हूं और ऑफ़-सीज़न में 600 रुपये. पैसे की चिंता नहीं है, मैं बस भविष्य में इन बच्चों को कुछ बनते हुए देखना चाहता हूं.’

अगर डी प्रकाश राव जैसे कुछ और लोग समाज में हो जाए तो यकीनन देश का कोई भी बच्चा अनपढ़ नहीं रहेगा.