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क्रैकिंग न्यूज़ एक्सक्लूसिव : ‘मन की बात’ या ‘मंकी बात’

एक बार फिर मैं ‘बसकर स्वामी ’ आपका स्वागत करता हूँ ND तिवारी इंडिया न्यूज़ पर.

आज  क्रैकिंग न्यूज़ एक्सक्लूसिव : ‘मन की बात’ या ‘मंकी बात ‘

और हमारे विशेष संवाददाता “खबीश कुमार ” आज कहेंगे अपने मन की बात

दर्शकों मैं खबीश कुमार आपका स्वागत करता हूँ आज के क्रैकिंग न्यूज़ विशेष में
(आगे बढ़ने से पहले एवरीबॉडी सिंग विथ मी  “पांच साल केजरीवाल केजरीवाल … पांच साल केजरीवाल केजरीवाल ”)

(अबे खबीश बंद कर जीत गया केजरीवाल अब निकल बाहर, सुबह सुबह आ जाता है ताड़ी चढ़ाकर..)

क्षमा बसकर वो क्या है ना मैं ज़मीन से जुड़ा सीधासाधा आदमी हूँ इसलिए भावनाओं में बह जाता  हूँ और हाँ दर्शकों आपके लिए खास मेरी नयी किताब ‘टूच्ची कहानियाँ’ खरीदना ना भूले

अब चलते है कार्यक्रम की और

इतवार को मन की बात सुनी ?

अरे मंकी बात नहीं मन की बात ... खामख्वाह जेल भिजवाने के काम कर रहे हो यार मैं मन की बात बोल रहा हूँ और आप हो कि उसे मंकी बना दे रहे हो … तुम्हारी या मेरी कही बात होती तो कोई हर्ज़ नहीं था उसे मंकी बात बोलने में, आखिर हम आम लोग गले में रस्सी डाले मदारी के मंकी ही तो है .

अरे आम लोग बोले तो मैंगो पीपल वो टोपी वाले आम लोग नहीं , उनका नाम मत लो उन आम आदमियों का नाम सुनकर तो बड़े बड़े बिदक जाते है  … अमां  यार क्यों हाथ धोकर पिटवाने के पीछे पड़े हो कभी मन की बात का मखौल तो कभी आम आदमी का नाम ले रहे हो  . चलो हटो भी अब हमें करने दो हमें अपनी मंकी बात …

अरे हमारे परिधानमंत्री जी माफ़ करियेगा प्रधानमंत्री जी वो इतने खूबसूरत- उम्दा कुरते और जैकेट पहनते है की हर बार प्रधानमंत्री की जगह परिधानमंत्री निकल जाता है.

वैसे कपडे पहनने में कोई बुराई भी नहीं है अरे भाई जब इतना घूमना फिरना पड़ता है तो कपडे तो नए नए पहनने ही पड़ेंगे न. अब ओबामा के घर अमरीका में और अपने अच्छे पड़ोसी चाइना में मौसम कोई फर्क है या नहीं

ये ओपोजिशन वाले तो निरे बुडबक है जो चिल्लाते रहते है .

और कुछ बोलने को नहीं मिला तो कपडे लत्ते पर ही शुरू हो जाते है . भाई देश के परिधानमंत्री है कोई मोहम्मद कैफ नहीं जो मैली कुचैली यूनिफार्म पहन कर पूरे मैच में इधर उधर गिरते पड़ते रहे .

वो सब जाने दो परिधानमंत्री जी चाहे मन की बात करे या धन की हमें कोई तकलीफ  नहीं.  हम तो खुश हो जाते है उनकी मन की बात सुन कर पर बस एक ही फांस लगती है मन की बात के बारे में पता चलने पर

अब वो तो ठहरे बड़े आदमी ऊपर से काम करने की धुन भी है.

सबसे बड़ी बात ना कोई आगे ना कोई पीछे पर लोगों का क्या जिनकी एक अदद बीवी और दो तीन बच्चे हफ्ते भर इसीलिए शांत रहते है की डैडी उनको सन्डे को 100 रुपये वाली सिनेमा 500 में दिखाने ले जायेगा और सवा रुपये की भुनी मक्की के दानों का सीना चौड़ा करके डेढ़ सौ रुपये देगा .

साहब आप इतने दयालु है की मिडिल क्लास और गरीबों की गाढ़ी कमाई  बचाने के लिए सन्डे के दिन ही मन की बात करते है. हम जैसे लोगों के दिल में तो लड्डू फूटने लगते है की चलो सन्डे को भी दफ्तर जाना होगा ब्रेकिंग दिखाने और टी आर पी लूटने के लिए और इस तरह न मल्टीप्लेक्स में जाकर किसी भाई या बादशाह की सड़ी फिल्म देखनी पड़ेगी न ही महंगे दाम वाले पॉपकॉर्न फांकने पड़ेंगे फिल्म की बोरियत से बचने के लिए.

वैसे बुरा ना मानो तो एक बात और कहता हूँ आज कल आपके मन की बात भी कभी कभी बोरिंग लगने लगती है, वो क्या है ना हमेशा वही सब बातें और टोन भी वही रहता है बोले तो पब्लिक को चेंज दीजिये कुछ.

जैसा की विद्या जी ने गन्दी फिल्म में कहा था …

अरे गन्दी फिल्म मतलब ‘वो’ वाली फिल्म नहीं. अब हिंदी का झंडा ऊँचा करने के लिए कभी कभी अंग्रेजी में डंडा हो जाता है हमसे और अर्थ का अनर्थ हो जाता है

गन्दी फिल्म से तात्पर्य था दी डर्टी पिक्चर .. उसमे कहा है ना की एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट…

जैसे फिल्म जगत में तीन खान है एंटरटेनमेंट के लिए वैसे ही राजनीति में आप, रागा, और टोपी वाले गुस्सेल आदमी एरर आदमी नहीं आम आदमी है. अब छुट्टी बिताने के बाद रागा तो कुरते की बाहें चढ़ाकर फुल एंटरटेनमेंट दे रहे है गाँव गाँव स्पोर्ट्स शूज पहन कर.

लगता है मम्मी जी ने छोटा भीम की ब्लू रे दिलाने का वादा किया है और टोपीवाले सर तो बिना किसी वादे के ही एंटरटेनमेंट देते रहते है. उनका तो सीधा फंडा है की कोई देखे ना देखे ऐसी लो बजट फिल्म बनाओ के बस हंगामा हो जाये.

लगता है आप थोड़े पिछड़ गए इस रेस में. पिछले साल क्या कमल का … सॉरी कमाल का परफॉरमेंस था पर इस साल थोडा ठंडा परफॉरमेंस है. इतना घूम रहे है तो दो चार वर्ड्स इधर उधर के देशों के बोल लिया कीजिये मन की बात में .. वैसे भी जनता को क्या खाक कुछ समझ आता है  या फिर मन की बात के बीच में एक आध गाना वाना हो जाये .. किसान तो ऐसे ही मरे जा रहे है उनको एक आध चुटकुले सुना कर हंसी से मरने दीजिये.

इस से कम से कम उनके मरने का दोष सरकार, अकाल, क़र्ज़ की जगह हंसी पर आएगा .

ये मीडिया वाले और पत्थरकार भी इतिहास के मास्टर साब की तरह हर दो सेकंड में ऑफ टॉपिक हो जाते है चलो गाडी को वापस में ट्रैक पर लाते है तो हम कहाँ थे.

ओह हाँ मेरी मंकी बात और सन्डे का स्यापा

वो  बात ऐसी है कि हम लोग तो झेल लेते है क्योंकि ओवर टाइम मिल जाता है और आप तो जानते है एक्स्ट्रा इनकम के लिए तो सरकारी अफसर तक अपनी बीवियों को साड़ियाँ बेचने में लगा देते है किटी पार्टी के बहाने  तो हम सब तो मामूली मिडिल क्लास है .

वैसे आपका बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहूँगा के अब तक आठ बार मन की बात करके आपने तकरीबन मेरा 10-12 हज़ार रूपया बचा दिया …सन्डे के सन्डे ऊपर से ओवर टाइम का बोनस अलग.

सोच रहा हूँ की इस मुनाफे से एक चाइना वाला मोबाइल फ़ोन खरीद लेता हूँ.

जिससे कंप्यूटर के कीबोर्ड पर पटर पटर किये बिना ही मॉडर्न परजीवी सॉरी मॉडर्न बुद्धिजीवी की तरह फ़ोन से ही ज्ञान चिपका दू लोगों को . और छोटा मोटा ट्विटर फेसबुक का सेलेब्रिटी बन जाऊं. एप्पल खरीदने की औकात नहीं अपनी इसलिए नाशपाती बोले तो “पीअर फ़ोन ” खरीद लिया.

जाते जाते आखिरी बात आप वो गुलाबी कुरता और काली अचकन ज्यादा पहना करे आपका चेहरा दमकता हुआ लगता है और रंग भी निखर कर बाहर आता है  टी आर पी अच्छी आती है .

आज के लिए इतना ही कुछ उंच नीच हो गयी हो तो क्षमा कर दीजियेगा वैसे तो आप बड़े दिल वाले है 56 इंच के सीनें में दिल भी तो उसी अनुपात का होगा न इसलिए पूरी उम्मीद है की आप इस तुच्छ मंकी की मन की बात का बुरा नहीं मानेंगे.

बस जाते जाते एक दरख्वास्त है की अपने बाबा बेबियों बोले तो साधू साध्वियों को भी बोले की ज्यादा उत्तेजित न हो पढ़कर क्योंकि तिलक टोपी से डर नहीं लगता साहब पर त्रिशूल तलवार से लगता है.

पर मज़बूरी है दो जून की रोटी के लिए करना पड़ता है …. आपकी सेवा में,

संविधान का सो कॉल्ड चौथे स्तम्भ का कंगुरा मीडिया मजदूर  ….

नोट –  एनिमल वेलफेयर वालों के डर से लिखना पड़ रहा है… इस पोस्ट में किसी भी मंकी के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया गया है .

“नोट – ये आर्टिकल सिफ हास्य व्यंग्य के लिए है अन्यथा ना ले ”

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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Yogesh Pareek

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