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आज की क्रैकिंग न्यूज़ : मरने के बाद डॉ कलाम और याकूब मेमन में हुयी मुलाक़ात
आइये आपको सुनाते है एक एकदम एक्सक्लूसिव मुलाक़ात के कुछ अंश
कलाम और याकूब दोनों का अंतिम संस्कार एक ही दिन किया गया था. दोनों की आत्माएं एक साथ ही ऊपर पहुंची. जन्नत और जहन्नुम का फैसला होने के लिए दोनों एक ही लाइन में लगे थे तो दोनों में बात होना लाजमी है.
तो वहां कलाम और याकूब के बीच जो बातें हुयी वो कुछ ऐसी थी
याकूब : अस्सलामालेकुम कलाम साहब, देखिये ख़ुदा का करिश्मा दोनों एक साथ ऊपर आये और एक ही लाइन में आगे पीछे खड़े है. देखा यहाँ सब बराबर है. कोई फर्क नहीं.
डॉ कलाम : मालेकुम सलाम याकूब, ये बात एक दम दुरुस्त है कि हम दोनों यहाँ एक साथ आये और एक ही लाइन में लगे है. फिर भी बहुत बड़ा फर्क है मुझे उम्र पूरी होने के बाद यहाँ बुलाया गया है और तुम्हे तुम्हरे कर्मों की सजा देकर यहाँ भेजा गया है.
याकूब खिसिया गया और बोला
याकूब : वो सब तो ठीक है, पर ये बताओ मैं भी मुसलमान तुम भी मुसलमान. फिर भी तुम्हारी मौत पर पूरा देश रोया पर मेरी मौत पर सिर्फ कुछ मौकापरस्त
डॉ कलाम : याकूब तुमने अपनी जिंदगी लगाई मज़हब की दीवार कड़ी करने में और हम जिन्दगी के आखिरी दिन भी लगे हुए थे उस मज़हब की दीवार को तोड़ने में. मजहब के नाम पर चाँद लोग भले आंसूं बहा ले तुम पर लेकिन प्यार और इंसानियत से बने रिश्तों के लिए पूरा हिंदुस्तान आंसूं बहाता है.
तिरंगा तुम्हारा भी उतना ही था और मेरा भी उतना ही. तुमने लेकिन सिर्फ एक रंग को अपना समझा और मैंने तीनो रंगों को साथ लाने के लिए जिंदगी लगा दी.
देश रो पड़ा था, जब मैं गिरा और फिर कभी ना उठ पाया . देश मुस्कुराया था जब तुमको लटकाया गया. देश का मान बढ़ाने के लिए मैंने अन्तरिक्ष यान से लेकर मिसाइल बनाये और तुमने बम गिराकर देश को ना भरने वाले घाव दिए.
मेरा काम पूरा हुआ और मैं राह दिखाते दिखाते गिर पड़ा. तुम्हे लटकाकर गिराया तुम्हारे गुनाहों के लिए. अब बताओ एक समय और एक ही कतार में खड़े है हम दोनों फिर भी कितना फर्क है तुम में और मुझ में.
याकूब दो पल को चुप रहा और फिर एक कुटिल हंसी हँसते हुए बोला
याकूब : बात तो आपकी एकदम सही है कलाम साहब. लेकिन लगता है आप अखबार नहीं पढ़ते ना ही आपको खबर है मेरे चाहने वालों की. आप राष्ट्रपति थे, भारत रत्न थे और तो और पूरे देश के चाहते थे फिर भी एक कोने में डाल दिया आपकी खबर को. ये जो देश है ना जिसका नाम भारत है वो तिरंगे के तीनों रंगों को भले ही साथ रखना चाहता हो पर ये जो बुद्धि, ज्ञान और धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करने वाले है ना इनको कलाम नहीं याकूब ही चाहिए.
तो ये थी ऊपर से कलाम और याकूब मेमन की खास बातचीत. कितनी गहरी बातें कह दी दोनों ने ही पर हम धरती पर रहने वाले समझदार ना इसे कल समझे थे ना ही आज समझेंगे ना ही आने वाले कल में.
समाचार समाप्त
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