पटाखे का आइडिया – दीवाली पर हर साले इतनी संख्या में पटाखे फोडे जाते हैं कि पूरा आसमान ही धुंध से भर जाता है।
पर्यावरण को पटाखों से प्रदूषित होते देख सुप्रीम कोर्ट ने दीवाली पर पटाखे जलाने को ही बैन कर दिया है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दीपावली के अवसर में ये पटाखे जलाने की शुरुआत कैसे हुई ?
इस बात का पता अब चल गया है कि दीवाली पर पटाखे का आइडिया कहाँ से आया? पटाखे का आइडिया कौन लाया ? ।
आइए जानते हैं पूरी खबर।
पटाखे का आइडिया –
कोरा पर पूछा सवाल
दरअसल एक शख्स ने सोशल साइट कोरा पर सवाल पूछा था कि दीवाली पर पटाखे जलाने की शुरुआत कैसे हुई और किसने की। अजीत नारायणन ने इस सवाल का जवाब दिया। आपको बता दें कि अजीत ने यूं ही जवाब नहीं दिया बल्कि उन्होंने पूरी छानबीन करने के बाद जवाब दिया और अपनी बात का ठोस आधार देने के लिए कई सोर्स और लिंक भी दिए।
कैसे पटाखे दीवाली से जुड़ गए
अजीत ने दीवाली से पटाखों के जुड़ने पर क्या जवाब दिया, आइए हम भी जान लेते हैं :
मुगलों के शासनकाल से पूर्व दीवाली पर पटाखे नहीं जलाए जाते थे। उस समय में सिर्फ दीये जलाकर ही दीवाली मनाई जाती थी। हालांकि, गुजरात के कुछ छोटे इलाकों में दीपावली पर पटाखे जलाए जाते थे। 1667 में औरंगजेब ने दीवाली पर दीयों और पटाखों के प्रयोग पर सार्वजनिक रूप से पाबंदी लगा दी थी। इसके बाद अंग्रेज आए और उन्होंने एक्स्प्लोसिव एक्ट पारित किया जिसके तहत पटाखों में इस्तेमाल होने चाले कच्चे माल को बेचने और पटाखे बनाने पर पाबंदी लगा दी गई थी।
साल 1923 में अय्या नादर और शनमुगा नादर ने इस दिशा में पहला कदम बढ़ाया। काम की तलाश में दोनों कलकत्ता गए और वहां दोनों ने माचिस की एक फैक्ट्री में काम शुरु किया। यहां काम करने के बाद दोनों अपने घर शिवकाशी लौट आए। यहां इन्होंने माचिक की फैक्ट्री लगाई। आपको बता दें तमिलनाडु में शिवकाशी स्थित है।
इसके बाद सन् 1940 में सरकार द्वारा एस्क्प्लोसिव एक्ट में संशोधन किया गया और एक खास स्तर के पटाखों पर से प्रतिबंध हटा दिया गया। नादर ब्रदर्स ने इसका फायदा उठाते हुए 1940 में पटाखों की पहली फैक्ट्री लगाई।
वो नादर ब्रदर्स ही थे जिन्होंने पटाखों को दीवाली से जोड़ने का पहला प्रयास किया था। माचिक की फैक्ट्री की वजह से उनके पास पहले से ही बड़ा मौका था। 1980 तक शिवकाशी में ही 189 पटाखों की फैक्टियां लग चुकी थीं।
आज भले ही हम दीवाली पर पटाखे जलाकर खुशियां मनाते हों लेकिन इतिहास में पटाखों का जिक्र 1940 से पहले नहीं मिलता है। इस तरह शिवकाशी से पटाखों की फैक्ट्री की शुरुआत हुई और इसके मालिकों ने पटाखों को दीवाली से जोड़ दिया। इस क्षेत्र में नाबालिग बच्चों का पटाखों की फैक्ट्री में काम करने का चलन भी खूब बढ़ा था लेकिन अब इसमें कमी आ रही है और इसकी वजह बच्चों का शिक्षा के प्रति बढ़ता रुझान है।
इस तरह से आया दिवाली पर पटाखे का आइडिया – ये सब बताने के बाद अजीत नारायणन ने दीयों से ही दीवाली मनाने का संदेश दिया जो कि बिलकुल सही है।
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