गाय का अर्थशास्त्र – पिछले 50 सालों में गाय के अर्थशास्त्र में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिला हैI
भारतीय संस्कृति में गाय की पूजा हमेशा से की जाती रही है क्योंकि इससे धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की पूर्ति की जा सकती थीI
धर्म की बात की जाए तो सामलाती या साझा चारागाहों में चराई करके गाय गोबर का उत्पादन किया करती थी जिससे भूमि उर्वरक बनती थीI गाय दूध देती थी और बैल पैदा करती थीI बैल से खेती करवाई जाती थी जिसे अर्थ के रूप में समझा जा सकता हैI वहीं, ज्ञात हो कि गाय के दूध में सॉलिड नॉन फैट की मात्र ज़्यादा पाई जाती है जो व्यक्ति के बुद्धि के विकास में मददगार होती हैI गाय का दूध पीने से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है इसे काम कहा जा सकता हैI गौरतलब है कि गाय के स्पर्श से व्यक्ति का भगवान से संपर्क बनता है जिसे मोक्ष कहा गया हैI
ऐसे ही गाय से चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करने में सहायता मिलती थीI
गाय का अर्थशास्त्र – वर्त्तमान स्थिति में समलाती चारागाह लगभग लुप्तप्राय हो गए हैंI जहाँ पहले इन्हीं चरागाहों से चारा चर करके गाय अपना पेट भरकर आया करतीं थीं वहीं अब गाय केवल भूसे पर आश्रित हो गईं हैंI पूर्व में गाय को अतिरिक्त भोजन नहीं देना पड़ता था व घास को ही गाय दूध एवं गोबर में परिवर्तित कर दिया करती थीI गाय के गोबर से ही खाद बनती थी जो खेत को उर्वरक बनाती थीI आज के हालात ये हो गए हैं कि सामलाती चारागाहों पर बाहुबलियों ने अपना कब्ज़ा जमा लिया हैI जिससे अब गायों को चराने के लिए घास उप्लब्ध नहीं हो पा रही है और वे इन मौजूदा हालातों में भूसे पर निर्भर हो गईं हैंI फिर चरागाहों के अभावों में गोबर का उत्पादन भी कम हो गया हैI गायों से उप्लब्ध गोबर भी खेतों की उर्वरकता को बनाए रखने में पर्याप्त नहीं हो पा रहेI गाय को पालने का चलन भी धीरे-धीरे ख़त्म होता जा रहा हैI अंततः किसानों को रासायनिक फ़र्टिलाइज़र का सहारा लेना पड़ रहा हैI इसी के साथ ही आज ट्रैक्टरों ने बैलों का भी लगभग सफाया कर दिया हैI
वर्त्तमान परिद्रश्य देखा जाए तो शहरों में रोज़गार होने के कारण गांवों से लोगों का पलायन तेज़ी से हो रहा हैI जिससे अब गांवों में श्रमिक नहीं के बराबर रह गए हैंI वहीं, बच्चों के पढ़ने-लिखने से अब उनसे चराई नहीं करवाई जा रहीI फलस्वरूप गाय को चराई के लिए ले जाना कठिन हो गया हैI गाय को चरना पसंद है वहीं भैंस की प्रकृति अलग है उसे चरने के लिए कहीं ले जाने की आवश्यकता नहीं पड़तीI इसके अलावा भैंस के दूध में फैट गाय के दूध से ज़्यादा होता है जो आज के उपभोगता की पसंद बन चुका हैI इन अनेक वजहों के कारण किसान भैंस को ज़्यादा प्रमुखता दे रहा है जिससे गायों की संख्या दिन-ब-दिन कम होती जा रही हैI आज धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की चौकड़ी में अर्थ कहीं कमज़ोर पड़ गया हैI
सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों को दुरुस्त करना होगा जिससे किसान को गायों को पालने में घाटा न होI गांवों के सामलाती चारागाहों को विकासवाद एवं माफियाओं से मुक्ति दिलानी होगीI इसके लिए सभी राज्य सरकारों को मिलके सामलाती भूमि को लैंड यूस में अमूलचूल बदलाव करने पड़ेंगे और शहरी कार्यों के लिए ऐसी भूमियों का उपयोग बंद करना होगाI
ये है गाय का अर्थशास्त्र – रासायनिक फ़र्टिलाइज़र को सब्सिडी देने की बजाए आज भूसे को सब्सिडी देनी चाहिए जिससे बैल को उपयोग में लाया जा सकेI रही बात सरकार के गोहत्या के प्रतिबंध पर तो वे चाहे जितने भी प्रतिबंध लगा लें, गाय का अर्थशास्त्र बताता है कि अगर गाय को घाटे का सौदा समझेंगे तो उनका संरक्षण मुमकिन नहीं हो पाएगाI
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