आजकल देशभर में सिर्फ एक ही मुद्दा जोरों पर है और वो है गौ रक्षा का मुद्दा. गौरक्षा का मुद्दा इतना ज्वलंत है कि इसका नाम सुनते ही लोग बगैर कुछ सोचे समझे मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं.
एक ओर जहां देश का एक बड़ा तबका गौरक्षा कानून बनाने की वकालत कर रहा है तो वहीं एक तबका ऐसा भी है जो गौरक्षा कानून बनाने के पक्ष में नहीं है.
अब को आलम है कि गौ रक्षा के नाम पर गौ रक्षक सड़कों पर उतरकर हिंसात्मक रवैया अपना रहे हैं. अब जब बात गौरक्षा की हो रही है तो चलिए एक बार विस्तार से हम आपको इस पूरे मुद्दे से रूबरू कराते हैं.
100 सालों से भी ज्यादा पुराना है ये मुद्दा
दरअसल साल 1882 में गौरक्षा की राजनीति स्वामी दयानंद ने आर्य समाज से शुरू की थी. हालांकि उस समय ये मुद्दा राजनीतिक ना होकर सामाजिक और धार्मिक हुआ करता था.
बताया जाता है कि गौरक्षा में राजनीति ने साल 1950 से अपने पैर पसारने शुरू किए थे. कहा जाता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक गुरु गोलवलकर गौरक्षा के मुद्दे से खासे प्रभावित थे और उन्होंने इसे अपने एजेंडे में भी शामिल कर लिया. यही वो दौर था जब गौरक्षा के मुद्दे पर राजनीति शुरू हुई.
साल 1966 में दिल्ली में गौहत्या के खिलाफ बिल लाने के लिए संघ और विहिप द्वारा सर्वदलीय गौरक्षा महा अभियान समिति के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन आयोजित किया गया था.
गाय के नाम का इस्तेमाल करके हिंसा और वोट बटोरने की राजनीति के चलते ही पिछले साल जुलाई महीने में राजस्थान की सबसे बड़ी सरकारी गौशाला में 100 से भी ज्यादा गायों के मरने की खबरें सामने आई थीं. वहीं कानपुर की गौशाला में भी सैकड़ों गायों के मरने की खबरें मिली.
जब गौरक्षा के नाम पर गौरक्षकों ने की हिंसा की हदें पार
हिंदू संगठनों ने हमेशा से गौरक्षा के लिए अपनी आवाज उठाई है लेकिन इसकी आड़ में तमाम कट्टरपंथी छोटे-छोटे हिंदू संगठनों के लोगों ने हिंसा भी फैलाई है.
– साल 2016 का दादरी कांड इस बात का सबूत है कि एक अफवाह ने किस तरह एक शख्स की जान ले ली. जी हां, दादरी में अखलाक नाम के एक शख्स की कथित रुप से घर में गौमांस रखने की अफवाह पर जान ले ली गई.
– 27 जुलाई 2016 को मध्यप्रदेश के मंदसौर में दो महिलाओं की रेलवे स्टेशन पर सिर्फ इसलिए पिटाई कर दी गई क्योंकि कहा ये जा रहा था कि ये दोनों महिलाएं अपने साथ गौ मांस लेकर जा रही थीं.
– 20 जुलाई 2016 को गुजरात के उना में दलित समुदाय के 7 लोगों की गौरक्षकों ने जमकर पिटाई की. क्योंकि वो एक मरी हुई गाय की खाल निकाल रहे थे.
– 22 जून 2016 को उत्तरप्रदेश के मथुरा में एक ट्रक में आग लगाने की घटना सामने आई थी. लोगों ने नेशनल हाइवे नंबर 2 को ब्लॉक कर दिया था क्योंकि वहां ट्रक में करीब 30 मरी हुई गायें थीं.
– 10 जून 2016 को गुड़गांव गौरक्षा दल के सदस्यों द्वारा कथित बीफ स्मगलर्स को जबरदस्ती गाय का गोबर और मूत्र पिलाने की घटना सामने आई थी.
– 3 जून 2016 को राजस्थान के प्रतापगढ़ में बजरंग दल और गौरक्षा दल के करीब 150 लोगों ने गाय का ट्रांसपोर्ट करनेवाले 3 लोगों की बुरी तरह से पिटाई की और उनमें से एक शख्स के पूरे कपड़े उतार दिए थे.
– गौरक्षा के नाम पर हिंसा फैलाने के मामले में साल 2016 में झारखंड में दो तस्करों को पीट पीटकर मार डाले जाने और बाद में उन्हें पेड़ से लटकाने की घटना भी सामने आई थी.
गौ हत्या के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी कानून की मांग
हाल ही में गुजरात विधानसभा में गौ सुरक्षा सुधार बिल पास किया गया है. जिसके तहत गौ मांस के साथ पकड़े जानेवाले को जमानत नहीं मिल सकती है. इसके साथ ही गौ हत्या करते हुए पकड़े जाने पर दोषी को उम्रकैद की सजा दी जाएगी.
आपको बता दें कि देश के 29 राज्यों में से 18 राज्यों में गौ हत्या पर या तो पूरी तरह से पाबंदी है या फिर इसपर आंशिक रोक है. जबकि 10 राज्यों में गाय, बछड़ा, बैल, सांड और भैंस को काटने और उनका मांस खाने पर बैन नहीं है.
गौ हत्या को लेकर भले ही हमारे देश में कड़े कदम उठाए जाते रहे हों, लेकिन इसके बाद भी भारत सबसे ज्यादा ‘बीफ’ निर्यात करने वाले देशों की सूची में शामिल है.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में गौ हत्या के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी कानून की वकालत की और कहा कि इस बुराई का अंत होना चाहिए.
वहीं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मस्लिमी के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने गौ रक्षा कानून पर ऐतराज जताया है. उन्होंने यह दलील पेश की है कि मजहब और आस्था के नाम पर कोई कानून नहीं बन सकता.
उधर केंद्र ने अतिउत्साही गौरक्षकों के खिलाफ नकेल कसते हुए सभी राज्यों से कहा है कि वह ऐसे किसी भी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं करें जो गौरक्षा के नाम पर कानून अपने हाथ में लेते हैं. केंद्र ने ऐसा करने वाले अपराधियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की हिदायत दी है.
ऐसे में सवाल उठता है कि गौरक्षा कानून की मांग को लेकर गौरक्षा के नाम पर कानून को हाथ में लेना और हिंसा को बढ़ावा देने की राजनीति किस हद तक जायज है.