अरुणिमा सिन्हा – दुनिया में कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता है क्योंकि हौसले और जुनून के दम पर दुनिया जीती जा सकती है.
वैसे भारत में हौसले और जुनून की मिसाल पेश करनेवाली कई अनोखी कहानियां सुनने को मिलती है जो दूसरों के लिए प्रेरणादायक होती है.
आज हम आपको एक ऐसी महिला के हौसले की दास्तान बताने जा रहे हैं जिसने एक हादसे में अपना एक पैर खो दिया लेकिन वो दुनिया के सबसे ऊंची जगह माउंट एवरेस्ट पर फतह करना चाहती थी. उसने अपने इस जुनून को कम नहीं होने दिया और हौसले के दम पर उसने अपनी मंजिल आखिरकार पा ली.
हादसे में अरुणिमा सिन्हा ने एक पैर गंवा दिया
उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर की रहनेवाली अरुणिमा सिन्हा साल 2011 में एक हादसे की शिकार हो गई थीं. लखनऊ से दिल्ली जाते समय कुछ गुंडों ने चलती ट्रेन से उन्हें फेंक दिया था.
अरुणिमा सिन्हा की मानें तो वो पूरी रात मदद के लिए चिखती-चिल्लाती रही. चूहे उनके घायल पैरों को कुतरते रहे और करीब 49 ट्रेनें उनके सामने ट्रैक से होकर गुजरी. लेकिन सुबह जब कुछ गांववालों ने उन्हें देखा तो उन्हें पास के अस्पताल में ले गए.
आपको बता दें कि इस हादसे में अरुणिमा सिन्हा को अपना एक पैर गंवाना पड़ा और उनके दूसरे पैर में रॉड लगाई गई. हांलाकि इस तरह के हादसों के बाद जिंदगी रुक सी जाती है लेकिन अरुणिमा ने अपनी जिंदगी से हार नहीं मानी और ना ही अपनी विकलांगता के आगे बेबस हुईं.
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करके रचा इतिहास
हादसे में एक पैर गंवाने के बाद भी अरुणिमा सिन्हा ने अपने अंदर बसे जुनून को बरकरार रखा और इस घटना के महज दो साल के भीतर उन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची जगह माउंट एवरेस्ट पर फतह कर ली और तिंरगा फहराया.
दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर चढ़ाई करके अरुणिमा ने पहली अपंग महिला पर्वतारोही बनकर इतिहास रच दिया. यह सब अगर मुमकिन हुआ है तो सिर्फ अरुणिमा सिन्हा के हौसले और हिम्मत की वजह से.
अपने दर्द और कमजोरी की परवाह ना करते हुए अरुणिमा ने अपना यह सफर सिर्फ माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्होंने इसके बाद भी अलग-अलग महाद्वीपों के पांच दूसरी चोटियों की भी चढ़ाई की.
अरुणिमा सिन्हा ने अपने आर्टिफिशियल पैर के दम पर अब तक माउंट एवरेस्ट के अलावा अफ्रीका के माउंट किलिमंजारो, ऑस्ट्रेलिया के माउंट कोजिअस्को, दक्षिण अमेरिका के माउंट अकोंकागुआ, इंडोनेशिया के कारस्टेन्ज पिरामिड और यूरोप के माउंट एलब्रस की चढ़ाई कर ली है.
अरुणिमा ने विकलांग बच्चों को लिया है गोद
अपना एक पैर गंवाने के बाद अरुणिमा सिन्हा विकलांग लोगों के लिए कुछ करना चाहती हैं उनकी इच्छा है कि वो विकलांग लोगों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय खेल एकेडमी की स्थापना करें. अरुणिमा की मानें तो इसके लिए उन्होंने कानपुर के पास उन्नाव में जमीन भी खरीद ली है.
आपको बता दें कि अरुणिमा ने लखनऊ में करीब 120 विकलांग बच्चों को गोद लिया है और हर संभव तरीके से उनकी मदद कर रही हैं ताकि ये बच्चे अपनी विकलांगता को ताकत बनाकर अपने सपनों को नई उड़ान दे सकें.
वाकई में अरुणिमा सिन्हा की ये कहानी उन लोगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है जिनकी जिंदगी किसी हादसे के बाद रुक जाती है और विकलांगता उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है.