स्वच्छ भारत की हवा – पिछले कई सालों से 2 अक्टूबर आते ही स्वच्छ भारत की हवा चलने लगती है।
नेता से लेकर अभिनेता तक सभी को याद आ जाता है कि स्वच्छ भारत पर पोस्ट करना है, वीडिया बनाना है, भाषण देना और कुछ सेल्फी लेनी है। कुछ दिनों में फिर ये मामला शांत हो जाएगा।
सरकार का भी यही रवैय्या है। पूरे साल स्वच्छ भारत पर सोने वाली सरकार बीच बीच में जरुर जात जाती है। जनता को स्वच्छ भारत के लिए प्रेरित करने के लिए सरकार इस दौरान पूरा प्रयास करती है लेकिन जब अपनी बात आती है तो उनके पास फाइलों की खानापूर्ती के अलावा कुछ भी नहीं।
हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने पूरे स्वच्छ भारत अभियान पर सवाल उठा दिए। जो सरकार लोगों को घर घर में टॉयलेट बनाने की बात कर रही है उसी के सरकारी दफ्तर में महिला अधिकारी के लिए टॉयलेट नहीं है।
मध्यप्रदेश के शिवपुरी में जब आदिम जाति क्लयाण विभाग में जिला संयोजक की तैनाती हुई तो उसे पता नहीं था कि सरकारी दफ्तर की हालत ऐसी होगी। कार्यभार संभालने के बाद जब वो टॉयलेट के लिए अपने जूनीयर अधिकारी से पूछा तो पता चला कि वहां लेडिस टॉयलेट नहीं है।
इस कारण जिला संयोजक शिवाली चतुर्वेदी को दिन में दो से तीन बार तो घर जाना पड़ता था। जब ये मामला कलेक्टर तक पहुंचा तो उन्होंने टॉयलेट की व्यवस्था करने की जगह उनका दफ्तर दूसरे दफ्तर में कुछ समय के लिए सिफ्ट करवा दिया।
टॉयलेट बनवाने पर कलैक्टर तरुण राठी का कहना है कि ‘जब बजट आएगा तो टॉयलेट बनवा दिया जाएगा। हमने बजट के लिए फाइल आगे भेज दी है।‘
क्या सरकार इसी तरह से हर घर में टॉयलेट का मिशन पूरा करेगी। जिस सरकार के अपने ही कार्यालय के टॉयलेट के लिए बजट नहीं है वो लोगों के टॉयलेट के लिए क्या कदम उठा रही होगी। सरकार को सिर्फ विज्ञापनों पर मिशन को चलाने की जगह जमीनी हकीकत पर काम करने चाहिए।
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