अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि देश के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया जाए, स्क्रीन पर तिरंगा भी दिखाया जाए और इसके सम्मान में दर्शको को खड़ा होना पड़ेगा।
इस फैसले को लेकर लोगों की मिली जुली प्रतिक्रिया आई।
लेकिन शायद आप नहीं जानते होंगे कि 1986 में केरल का एक परिवार राष्ट्रगान न गाने के अपने फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गया और फैसला भी उनके हक में सुनाया गया।
जाने क्या था पूरा मामला –
1985-86 में एक क्रिश्चियन परिवार (वी जे इमेनुल) राष्ट्रगान न गाने के अपने निर्णय पर अडिग था।
यह परिवार ईसाई धर्म को मानता था और ‘गॉड’ के अलावा किसी की प्रार्थना करने को राजी नहीं था। 1985 में उनके तीन बच्चे कोट्टयम जिले के एक हिंदू संगठन द्वारा चलाए जा रहे स्कूल एनएसएस हाईस्कूल में शिक्षा प्राप्त करते थे। एक दिन तीनों को स्कूल से इसलिए निष्कासित कर दिया गया, क्योंकि वे तीनों राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े तो होते थे लेकिन उसे गाते नहीं थे।
मामला संसद तक गया –
यह बात इतनी बढ़ गई कि इसकी गूंज संसद तक भी पहुंच गई थी।
उस वक्त कांग्रेस के विधायक रहे वीसी कबीर ने यह मुद्दा विधान सभा में उठाया। वहीं, तत्कालीन शिक्षा मंत्री टीएम जैकब ने भी शिकायत की। राज्य सरकार ने जांच कमेटी बिठाई, जिसमें बच्चों द्वारा राष्ट्रगान के अपमान करने को लेकर कुछ साबित नहीं हो सका।
लिखित में कहा गया कि ‘आगे से राष्ट्रगान गाएंगे’ –
उसके बाद जाँच कमेटी द्वारा तीनों बच्चों को लिखित में ‘आगे से राष्ट्रगान गाएंगे’ देने को कहा गया। कमेटी की इस बात को इमेनुल और उनके परिवार ने मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने हाई कोर्ट जाने का फैसला लिया जहां उनकी याचिका को दो बार ठुकरा दिया गया और फिर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
और सुप्रीम कोर्ट ने कहा-
1986 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस परिवार के हक में फैसला सुनाते हुए कहाः- “इस वक्त हम कह सकते हैं कि ऐसा कहीं लिखा नहीं है कि राष्ट्रगान बजने के दौरान उसे गाना जरूरी है। अगर कोई उसके सम्मान में खड़ा हो जाता है तो उतना बहुत है।” फैसला अपने पक्ष में आने के बाद बच्चों को दोबारा स्कूल में बुला तो लिया गया, लेकिन उस माहौल में उनका मन नहीं लगा। वह सिर्फ एक दिन ही स्कूल गए और फिर उसके बाद दोबारा कभी स्कूल नहीं गए।
आज भी उनके परिवार से कोई राष्ट्रगान नही गाता –
एक 1985 का वक़्त और एक आज का। आज इमेनुल के आठ पोता-पोती हैं, जो स्कूल तो जाते हैं, लेकिन उनमें से भी कोई राष्ट्रगान नहीं गाता। इस बारे में इमेनुल बताते है कि इन बच्चों के स्कूल में दाखिले से पहले ही स्कूल प्रसाशन को सारी बातें बता दी गई और कोर्ट का ऑर्डर भी दिखा दिया गया। अभी तक किसी तरह की कोई दिक्कत सामने नहीं आई।
और अब इस परिवार के मुखिया ने कहा-
केरल के इसी परिवार के मुखिया वी जे इमेनुल ने सुप्रीम कोर्ट के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान जरूरी करने पर अपनी बात रखी है। वी जे इमेनुल कहते हैं- “हम लोग राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े होते ही हैं। हमें इससे कोई परेशानी नहीं है। वैसे भी तब ही तो गाना है जब सिनेमा हॉल में जाएंगे।” साथ ही आगे उन्होंने कहा-“राष्ट्रगान गाने से उसका सम्मान करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। तमाम राष्ट्रीय प्रतीकों का भी आदर करना हमारी कर्तव्य है।”
खैर, बात जो भी है लेकिन हमारा मानना है कि देश का सम्मान किसी भी धर्म से ऊपर है।
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